Delhi: पुराने किले पर स्थापित होगा आजादी से पहला टूटा गुंबद, मुगलों से जुड़ा है इमारत का इतिहास
अब आप पुराना किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करेंगे तो दरवाजे के ऊपर गायब गुंबद की कमी नहीं खलेगी। एएसआइ गायब हो चुके इस गुंबद को फिर से स्थापित करने की योजना बना रहा है। यह गुंबद आजादी से पहले का टूट चुका है जिसकी पुष्टी आजादी के बाद पाकिस्तान से आकर पुराने किले में ठहरे लोगों ने की है।
वी के शुक्ला, नई दिल्ली। अब आप पुराना किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करेंगे तो दरवाजे के ऊपर गायब गुंबद की कमी नहीं खलेगी। एएसआइ गायब हो चुके इस गुंबद को फिर से स्थापित करने की योजना बना रहा है। यह गुंबद आजादी से पहले का टूट चुका है, जिसकी पुष्टी आजादी के बाद पाकिस्तान से आकर पुराने किले में ठहरे लोगों ने की है।
इन लोगों से पुराना किला में ठहराए जाने के समय के फोटो का निरीक्षण कराया गया था। उस वक्त के फोटो में भी गुंबद नहीं था। पुराना किला में बड़ा दरवाजा इस किले की भव्यता को दर्शाता है। यह वह दरवाजा है, जहां से किले में प्रवेश करते हैं। किले के बाहर और अंदर प्रवेश करने के बाद दरवाजे के ऊपरी भाग पर नजर डालने पर इस गुंबद की कमी खलती है।
सुरक्षा के लिहाज से बनाए गए थे गुंबद
बताया जाता है कि किला बनवाए जाने के समय सुरक्षा के लिहाज से दरवाजे के ऊपर दो गुंबद बनाए गए थे। इसमें चार- चार दरवाजे हैं, जिनमें सैनिक तैनात रहते थे, जो किले के बाहरी इलाके के अलावा अंदरूनी हिस्सों पर भी नजर रखते थे। ये गुंबद उस समय सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण माने जाते थे। ये गुंबद हुमायूं और शेरशाह सूरी दोनों के शासनकाल में सुरक्षा चौकी के रूप में उपयोग किए गए मगर अंग्रेजों के शासन में किले को बहुत नुकसान पहुंचा। कालांतर में दो में से एक गुंबद और उस तरफ का पूरा हिस्सा ढह गया।
जटिल है गुंबद को स्थापित करना
एएसआइ के दिल्ली मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद प्रवीण सिंह कहते हैं कि गुंबद को स्थापित करना थोड़ा जटिल कार्य है। हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं, हमारी योजना गिर चुके गुंबद को फिर से स्थापित करने की है।
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खोदाई में मिले है कुषाण और मौर्य काल के प्रमाण
पुराना किला को पहले शेरगढ़ और शेर किला भी कहा जाता था। यह दिल्ली के पुराने किलों में से एक है। यहां 2,500 वर्षों से लगातार बसावट के प्रमाण मिले हैं। वर्तमान किला हुमायूं के समय में बनना शुरू हुआ था और इसका निर्माण शेर शाह सूरी के अधीन भी जारी रहा।
यह किला अपने आप में एक इतिहास है। दिल्ली का यह पहला किला है जिसका मुगलों से बहुत पहले का लंबा इतिहास है, इसके पूरे प्रमाण हैं। वर्ष 1955 से लेकर अभी तक छह बार इसके इतिहास के साक्ष्य जुटाने के लिए खोदाई हुई है।
इस बार हुई खोदाई में अभी तक करीब 2000 साल पहले से यहां बसावट के प्रमाण मिल चुके हैं। जो कुषाण काल से संबंधित हैं। इस काल के प्रतापी शासक कनिष्क रहे हैं। इससे पहले की हुई खोदाई में मौर्य काल के भी यहां प्रमाण मिल चुके हैं।
मौर्य साम्राज्य के पहले शासक चंद्रगुप्त मौर्य थे, जिन्होंने चाणक्य की सहायता से उस समय मगध पर शासन करने वाले नंद वंश के राजा घनानंद को पराजित किया था और अपना राज्य स्थापित किया था।
सम्राट अशोक इस वंश से सबसे प्रतापी शासक हुए हैं। हालांकि, इस वंश की पुराना किला से शासन करने की जानकारी नहीं है मगर उनके समय के निर्माण के प्रमाण यहां मिले हैं। उनसे पहले पुराना किला के टीले पर बने महल से पांडवों ने अपनी राजधानी चलाई है।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार यह वही स्थान है, जहां पांडवों की राजधानी थी। इस समय को पांच हजार साल पुराना माना जा रहा है।
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