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    Delhi Air Pollution: पांच साल पहले भी इसी दिन बनी थी कृत्रिम वर्षा की योजना, लेकिन बादल दे गए थे गच्चा, ऐसे होती है Artificial बारिश

    By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Thu, 09 Nov 2023 06:08 AM (IST)

    Delhi Air Pollution प्रदूषण से निजात के लिए आइआइटी कानपुर ने ही दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का सुझाव दिया है। आइआइटी कानपुर पिछले पांच साल से भी ज्यादा समय से कृत्रिम वर्षा पर काम कर रहा है। इस साल जुलाई में उसने इसका सफल प्रशिक्षण भी कर लिया है। बताया जा रहा है कि क्लाउड सीडिंग के लिए कुछ जरूरी अनुमति भी आइआइटी कानपुर के पास है।

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    Delhi Air Pollution: पांच साल पहले भी इसी दिन बनी थी कृत्रिम वर्षा की योजना

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पांच साल पहले 2018 में भी दिल्ली को वायु प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए 21 नवंबर को ही कृत्रिम वर्षा की तैयारी की गई थी। इसरो का विशेष विमान भी ले लिया गया था और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से अनुमति भी मिल गई थी, लेकिन तब बादल गच्चा दे गए थे। जैसा अनुमान था कि 21 नवंबर को दिल्ली के ऊपर बादलों की भारी जमावड़ा रहेगा, वैसा नहीं हुआ। मौसम विभाग के पूर्वानुमान फेल हो गए। इसके चलते कृत्रिम वर्षा की सारी योजना भी धरी की धरी रह गई। प्रदूषण के स्तर में गिरावट की आस को बादलों ने बिन बरसे ही धो दिया। ऐसे में इस बार भी यह योजना मूर्त रूप ले पाएगी या नहीं, कहना मुश्किल है।

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    दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का सुझाव

    गौरतलब है कि इस बार भी प्रदूषण से निजात के लिए आइआइटी कानपुर ने ही दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का सुझाव दिया है। आइआइटी कानपुर पिछले पांच साल से भी ज्यादा समय से कृत्रिम वर्षा पर काम कर रहा है। इस साल जुलाई में उसने इसका सफल प्रशिक्षण भी कर लिया है। बताया जा रहा है कि क्लाउड सीडिंग के लिए कुछ जरूरी अनुमति भी आइआइटी कानपुर के पास है।

    एक विशेष मौसम की जरूरत

    विज्ञानियों के अनुसार कृत्रिम बारिश करवाने के लिए एक विशेष मौसम की जरूरत होती है। इसके बादल और हवा में नमी होना जरूरी है। साथ ही उपयुक्त हवाओं का होना भी जरूरी है। जुलाई में जब यह वर्षा करवाई गई थी तो बहुत छोटे हिस्से में करवाई गई थी। मानसून की वजह से उस समय हवाएं, बादल और नमी तीनों ही थे।

    दिल्ली में नवंबर के दौरान वर्षा काफी कम होती है

    अब यह भी देखना होगा कि क्या सर्दियों के शुरूआती महीनों में यह तकनीक प्रभावी रह सकती है या नहीं। इस समय हवाएं कम होती है। दिल्ली में नवंबर के दौरान वर्षा काफी कम होती है। वहीं इस पूरी प्रक्रिया के लिए राष्ट्रीय राजधानी में विमान उड़ाने के लिए डीजीसीए के अलावा गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार विशेष सुरक्षा समूह सहित कई मंजूरी लेनी होंगी।

    अनुकूल मौसमी परिस्थिति का इंतजार

    आइआइटी कानपुर के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल इस पूरे प्रोजेक्ट को देख रहे हैं। अधिकारियों के अनुसार आइआइटी कानपुर से प्रस्ताव मिलने के बाद आइआइटी और दिल्ली सरकार को इसके लिए एमओयू साइन करना होगा। इसके बाद आवश्यक अनुमति की जरूरत पड़ेगी। फिर अनुकूल मौसमी परिस्थिति का भी इंतजार करना होगा।

    कैसे होती है कृत्रिम बारिश

    कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है, जिससे कृत्रिम वर्षा होती है। कृत्रिम वर्षा मानव निर्मित गतिविधियों के माध्यम से बादलों को बनाने और फिर उनसे वर्षा कराने की क्रिया को कहते हैं। कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है। क्लाउड-सीडिंग का पहला प्रदर्शन जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, आस्ट्रेलिया में किया गया था।

    यहां पर बता दें कि अमूमन बारिश तब होती है जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर की ओर उठती है। ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में और सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदें इतनी बड़ी हो जातीं हैं कि वे अब और देर तक हवा में लटकी नही रह सकतीं हैं, तो वे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं। इसे ही सामान्य वर्षा कहते हैं, लेकिन कृत्रिम वर्षा में इस प्रकार की परिस्तिथियां हम इंसानों द्वारा तकनीकी ढंग से पैदा की जातीं हैं। कृत्रिम वर्षा से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है। बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है।

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