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    Delhi AIIMS: एम्स में मरीज को पूरा बेहोश किए बगैर हुई रीढ़ की सर्जरी, कुछ घंटे बाद ही हुई छुट्टी

    By Jagran NewsEdited By: Geetarjun
    Updated: Tue, 20 Dec 2022 12:19 AM (IST)

    एम्स में डाक्टरों ने रीढ़ की बीमारी से पीड़ित 40 वर्षीय महिला मरीज को पूरा बेहोश किए बगैर सर्जरी की। सर्जरी के दौरान महिला मरीज जागती रही। फिर भी एम्स के आर्थोपेडिक विभाग के डाक्टर रीढ़ में स्क्रू व रॉड डालकर सर्जरी करने में काम रहे।

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    एम्स में मरीज को पूरा बेहोश किए बगैर हुई रीढ़ की सर्जरी, सर्जरी के कुछ घंटे बाद ही हुई छुट्टी

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। एम्स में डाक्टरों ने रीढ़ की बीमारी से पीड़ित 40 वर्षीय महिला मरीज को पूरा बेहोश किए बगैर सर्जरी की। सर्जरी के दौरान महिला मरीज जागती रही। फिर भी एम्स के आर्थोपेडिक विभाग के डाक्टर रीढ़ में स्क्रू व रॉड डालकर सर्जरी करने में काम रहे। यह सर्जरी करीब डेढ़ माह पहले हुई थी।

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    सर्जरी के कुछ ही घंटे बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। एम्स के डाक्टरों का दावा है कि देश ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया की जागते हुए मरीज की रीढ़ का यह पहला मामला है।

    आर्थोपेडिक विभाग के विभागाध्यक्ष डा. राजेश मल्होत्रा और एनेस्थिसिया विभाग के विशेषज्ञ डा. पुनीत खन्ना के नेतृत्व में यह सर्जरी की गई। आर्थोपेडिक विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. भावुक गर्ग ने कहा कि पीड़ित महिला के रीढ़ की हड्डी का एल-4 वर्टिब्रा अपनी जगह से खिसक गया था। इसकी सर्जरी के लिए मरीज को बेहोश करके सर्जरी करनी पड़ती है।

    पहली बार मरीज के स्पाइन में इंजेक्शन से एनेस्थीसिया की दवा दी गई। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड की मदद से दवा देकर रीढ़ के आसपास की मांसपेशियों को सुन्न किया गया। इसके बाद चीरा लगाकर मरीज की रीढ़ की हड्डी के एल-4 व एल-5 वर्टिब्रा में स्क्रू व रॉड डालकर उसे ठीक किया गया। इसके बाद महिला मरीज को चार घंटे डाक्टरों की निगरानी में अस्पताल में भर्ती रखा गया है।

    रीढ़ की हड्डी में एनेस्थीसिया की दवा का असर खत्म होने के बाद मरीज को वापस घर भेज दिया गया। इस सर्जरी के बाद रीढ़ की अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित चार मरीजों की भी इस तरह की सर्जरी हो चुकी है। सामान्य तौर पर इस तरह की सर्जरी में मरीज को तीन से चार दिन अस्पताल में भर्ती रखा जाता है।

    अस्पताल में भर्ती रहना मरीज के लिए एक कड़वा अनुभव होता है। इसके अलावा अस्पताल में सर्जरी के बाद की जटिलताओं का जोखिम भी अधिक होता है। इसके अलावा मरीजों का दबाव अधिक होने से मरीजों को बेड मिलना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में डे-केयर के आधार पर सर्जरी से अधिक मरीजों का इलाज सुनिश्चित किया जा सकता है।