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    AIIMS: स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा, मरीजों के स्वास्थ्य को बड़ा खतरा; डॉक्टरों के पर्चे को लेकर हो जाएं सावधान

    Updated: Tue, 13 May 2025 09:58 AM (IST)

    एक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग एक तिहाई दवा पर्चियों पर दवाओं की खुराक नहीं लिखी होती है जिससे मरीजों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। डिजिटल प्लेटफार्म के इस्तेमाल और पर्चियों की निगरानी से ऐसी गलतियों को रोका जा सकता है। डॉक्टरों द्वारा लिखी गई पर्चियों में पर्ची पर एक तिहाई से ज्यादा दवाओं की नहीं लिखी होती है डोज जो चिंता का विषय है।

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    पर्ची पर एक तिहाई से ज्यादा दवाओं की नहीं लिखी होती है डोज। फाइल फोटो

    रणविजय सिंह, नई दिल्ली। इसे अस्पतालों में मरीजों की भीड़ का असर कह लें या अधिक से अधिक मरीजों को देखने का डाक्टरों पर दबाव, लेकिन एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मरीजों की पर्ची पर लिखी गई करीब एक तिहाई दवाओं की डोज नहीं लिखी होती है। यह मरीजों की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

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    एम्स व तेलंगाना के एक अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। अध्ययन में कहा गया है कि 64.5 प्रतिशत दवा की ही डोज लिखी गई थी। अध्ययन में चिंता का सबसे बड़ा विषय इसे पाया गया।

    पर्चियों की निगरानी आसान नहीं

    हाल ही में यह अध्ययन इंडियन जर्नल आफ फार्माकोलाजी में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में कहा गया है कि डिजिटल प्लेटफार्म इस्तेमाल से पर्ची में इस तरह की गलतियां रुक सकती हैं। साथ ही डाक्टरों द्वारा लिखी गई पर्चियों की निगरानी भी हो सकती है। इससे एंटीबायोटिक दवा के अत्यधिक इस्तेमाल को रोकने में भी मदद मिलेगी। मैनुअल तरीके से डाक्टरों द्वारा मरीजों को लिखी गई पर्चियों की निगरानी आसान नहीं है।

    पिछले वर्ष जून से अगस्त के बीच 3,158 मरीजों की पर्ची जुटाकर यह अध्ययन किया गया। इसमें छह माह के बच्चे से लेकर 75 वर्ष तक के बुजुर्ग मरीजों को लिखी गई पर्चियां शामिल थीं, जिसमें 51.3 प्रतिशत मरीज पुरुष और 48.7 प्रतिशत मरीज महिलाएं थीं।

    इनमें 21.8 प्रतिशत मरीज बच्चे, 73.3 प्रतिशत व्यस्क और 4.9 प्रतिशत बुजुर्ग थे। उन मरीजों को कुल 6,683 दवाएं लिखी गई थीं। हर पर्ची पर तीन से चार (औसतन 3.2) दवाएं लिखी गई थीं। 37.5 प्रतिशत दवाओं का ही जेनेरिक नाम लिखा गया था। 62.5 प्रतिशत दवाओं का ब्रांडेड नाम लिखा गया था।

    वहीं, पर्ची पर लिखी गई 36.7 प्रतिशत दवाएं ही आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) में दर्ज थीं। ऐसे में एनएलईएम सूची से बाहर की महंगी दवाएं अधिक लिखी जाती हैं। 24.9 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं लिखी गईं। सर्जरी के मरीजों को 46.9 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं लिखी गई थीं, यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक से ज्यादा है।

    यह बात लिखी गई थी

    बताया गया कि आफ्लोक्सासिन व आर्निडाजोल और एमोक्सिसिलिन व पोटेशियम क्लैवुलैनेट के संयुक्त डोज की एंटीबायोटिक अधिक लिखी गई थी। पर्ची पर लिखी गई 35.5 प्रतिशत दवाओं की डोज नहीं लिखी गई थी। 89.5 प्रतिशत दवाओं के लेने की अवधि व 88.7 प्रतिशत दवाओं को दिन में कितने बार लेना है यह बात लिखी गई थी। 10.5 प्रतिशत दवाओं कितने समय तक लेना है और 12.3 प्रतिशत दवाओं को दिन में कितने बार लेना है यह नहीं लिखा गया था।

    अध्ययन में शामिल डाक्टर बताते हैं कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के दिशानिर्देश के अनुसार दवाओं का जेनेरिक नाम अंग्रेजी के बड़े अक्षर में लिखा जाना चाहिए, लेकिन इस नियम का ठीक से पालन नहीं होता।

    एनएलईएम में दर्ज दवाओं की कीमत कम होती है और कीमतें नियंत्रित होती हैं। एक अन्य अध्ययन में बताया गया कि अस्पतालों में मरीजों की भीड़ अधिक होने से डाक्टर एक मरीज को देखने के लिए 1.9 मिनट से तीन मिनट का ही समय दे पाते हैं।

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    वहीं, ऐसी स्थिति में जल्दबाजी में पर्ची में त्रुटि होने की संभावना अधिक होती है। इसलिए मरीजों को आवश्यकता के अनुसार, कम से कम दवाएं और एनएलईएम दर्ज दवाओं को लिखने का चलन बढ़ाना होगा। साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं का समुचित इस्तेमाल आवश्यक है।

    डाक्टरों की लिखावट कई बार केमिस्ट भी ठीक से नहीं पढ़ पाते। दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में डाक्टर ने मरीज को विटामिन की दवा लिखी थी, लेकिन केमिस्ट उसे कैंसर की दवा दे दी। दोनों दवाओं का नाम मिलता जुलता है। मरीज विटामिन समझकर छह माह तक कैंसर की दवा लेता रहा। इससे किडनी खराब हो गई। दवा की डोज नहीं लिखने से भी परेशानी हो सकती है। दुनिया में सड़क हादसे व सिर में चोट से अधिक मौतें गलत इलाज के कारण होती हैं, लेकिन देश में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है। इसलिए मेडिकल पर्ची को डिजिटल बनाना जरूरी है। पर्ची के विश्लेषण के लिए एक साफ्टवेयर भी तैयार किया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से इसे सभी अस्पतालों में लागू कराने का प्रयास किया जा रहा है।' - डा. वाईके गुप्ता, प्रमुख अध्ययनकर्ता व एम्स के फार्मोकोलाजी के पूर्व विभागाध्यक्ष