दिल को सारकोइडोसिस के खतरों से बचाएगा AIIMS का स्कीनिंग एलगोरिदम, हार्ट फेल्योर का खतरा होगा कम
एम्स दिल्ली के डॉक्टरों ने दिल में सारकोइडोसिस की पहचान के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। यह तकनीक मौजूदा स्क्रीनिंग विधियों से 30% अधिक प्रभावी है। सारकोइडोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो दिल को कमजोर कर सकती है। नई विधि में ब्लड जांच और इकोकार्डियोग्राफी शामिल हैं जो आसान और सुलभ हैं जिससे समय पर पहचान और इलाज संभव है और हार्ट फेलियर से बचाव हो सकता है।

रणविजय सिंह, नई दिल्ली। दिल खराब होने का एक कारण सारकोइडोसिस बीमारी भी बनती है। लेकिन दिल में इस बीमारी की जल्दी पहचान आसान नहीं होती। मौजूदा समय में इस बीमारी की स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीक से बहुत मरीजों में यह बीमारी पहचान नहीं हो पाती।
दिल को सारकोइडोसिस के खतरों से बचाने में होगा मददगार
इससे दिल खराब (हार्ट फेल्योर) होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके मद्देनजर एम्स ने दिल के मरीजों में सारकोइडोसिस की स्क्रीनिंग के लिए एक एलगोरिदम विकसित किया है, जो वर्तमान समय में स्क्रीनिंग के लिए अपनाई जा रही तकनीक की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक मरीजों के दिल में इस बीमारी की पहचान कर पाने में सक्षम है। इसलिए एम्स का यह स्क्रीनिंग एलगोरिदम दिल को सारकोइडोसिस के खतरों से बचाने में मददगार होगा।
एम्स के कार्डियोलाजी व पल्मोनरी मेडिसिन के डॉक्टरों ने मिलकर अध्ययन किया है, इंटरनेशनल जर्नल आफ कार्डियोवैस्कुलर इमेजिंग में प्रकाशित हुआ है। एम्स के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. अंबुज राय ने बताया कि सारकोइडोसिस एक आटोइम्यून बीमारी है। इसके कारण लिम्फ नोड बड़े होकर गांठ बन जाते हैं।
धीरे-धीरे कम हो जाती है दिल की कार्य क्षमता
फेफड़े में यह बीमारी अधिक होती है। इससे पीड़ित करीब 80 प्रतिशत मरीजों में यह बीमारी फेफड़े में पाई जाती है। लेकिन कई मरीजों में यह बीमारी दिल में फैल जाती है। इससे दिल की कार्य क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है। इस वजह से मरीज को हार्ट फेल्योर की बीमारी हो जाती है।
इसके अलावा कई मरीजों में यह बीमारी दिल की धड़कन अनियंत्रित होकर अचानक हृदय गति रुकने का कारण भी बनती है। ऐसे में दिल मेंं यह बीमारी होने पर मरीजों के लिए यह जानलेवा भी साबित होती है।इसलिए इसका समय से इलाज जरूरी होता है।
कैसे होती है दिल में सारकोइडोसिस की जांच?
डॉ. अंबुज राय ने बताया कि कार्डियक एमआरआइ से दिल में सारकोइडोसिस की जांच होती है। एक तो यह जांच महंगी है, दूसरी बात यह कि इसकी सुविधा भी बहुत कम है। इस वजह से अभी स्क्रीनिंग के लिए हार्ट रिदम सोसायटी (एचआरएस) का एलगोरिदम इस्तेमाल होता है। इसमें मरीज में दिल की बीमारी से संबंधित लक्षण, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी व सामान्य इकोकार्डियोग्राफी की जाती है।
एम्स ने ब्लड जांच ट्रोपोनिन, एनटी प्रो-बीपीएन व इकोकार्डियोग्राफी जीएलएस (ग्लोबल लांगिट्यूडनल स्ट्रेन) को मिलाकर एक अलग स्क्रीनिंग अलगोरिदम बनाया। इसका 100 मरीजों पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में एचआरएस स्क्रीनिंग से 24 प्रतिशत व एम्स के स्क्रीनिंग अलगोरिदम से 32 प्रतिशत मरीजों के दिल में सरकोईडोसिस होने की बात पता चली।
दिल में सारकोइडोसिस की पहचान कर पाने में सक्षम
इसके बाद जांच में एचआरएस स्क्रीनिंग में पॉजिटिव पाए गए 23 और एम्स स्क्रीनिंग एलगोरिदम में पाजिटिव पाए गए 30 मरीजों में सारकोईडोसिस होने की पुष्टि हुई। इस तरह एम्स का स्क्रीनिंग अलगोरिदम 30 प्रतिशत अधिक मरीजों के दिल में सारकोइडोसिस की पहचान कर पाने में सक्षम पाया गया।
डॉ. अंबुज राय ने बताया कि ट्रोपोनिन व एनटी प्रो-बीपीएन ब्लड जांच है और इकोकार्डियोग्राफी की नई मशीनों में जीएलएस जांच का विकल्प होता है। इसलिए ये जांच आसानी से हो सकती है। इससे अधिक मरीजों की पहचान कर जल्दी इलाज शुरू हो सकता है। इससे मरीज को सारकोइडोसिस के कारण हार्ट फेल्योर होने जैसी स्थिति से बचाया जा सकेगा।
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