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    Delhi: बहाल किया जाएगा ऐतिहासिक बारापुला पुल का पुराना स्वरूप, 400 साल पुराना है इसका इतिहास

    Updated: Mon, 12 Aug 2024 01:12 AM (IST)

    निजामुद्दीन इलाके में स्थित तकरीबन 400 वर्ष पुराने ऐतिहासिक बारापुला पुल को जल्द ही उसके पुराने स्वरूप में बहाल किया जाएगा। एलजी वीके सक्सेना ने एक सप ...और पढ़ें

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    बारापुला पुल पर जोर शोर से चल रहा है इसके जीर्णोद्धार का कार्य। सौजन्य: राजनिवास

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। निजामुद्दीन इलाके में स्थित तकरीबन 400 वर्ष पुराने ऐतिहासिक बारापुला पुल को जल्द ही उसके पुराने स्वरूप में बहाल किया जाएगा। एलजी वीके सक्सेना ने एक सप्ताह के भीतर रविवार को दूसरी बार इस पुल का दौरा किया और इसकी बहाली के लिए किए जा रहे कार्यों की प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने पहली बार बीते रविवार को यहां का दौरा किया था।

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    अतिक्रमण की वजह से यह पुरानी और ऐतिहासिक संरचना जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी थी। आलम यह था आसपास के इलाकों के कचरे और मलबे की वजह से यह कूड़ा घर में तब्दील हो गई थी। एलजी ने मिशन मोड में यहां से अतिक्रमण हटाने और पुल के जीर्णाद्धार का निर्देश दिया।

    एएसआई को सौंपा काम

    रविवार को एलजी ने करीब 200 मीटर लंबे इस पुल को जीर्णोद्धार के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सौंप दिया। एलजी के साथ इस दौरान मुख्य सचिव नरेश कुमार और एएसआई के महानिदेशक डा युद्धवीर सिंह रावत भी शामिल थे, जिन्होंने तीन माह में इस ऐतिहासिक पुल की पूर्ण रूप से बहाली का आश्वासन दिया।

    पुल की मूल संरचना रहेगी बरकरार

    सक्सेना ने एएसआई को पुल की मूल संरचना को बरकरार रखते हुए, इसके जीर्णोद्धार का काम करने और इसके बाद यहां पर लाइट की पूरी व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया है।

    सक्सेना ने पुल के नीचे बहने वाले नाले से गाद निकालने और अतिक्रमण हटाने के लिए किए गए संयुक्त प्रयास के लिए, सभी संबंधित एजेंसियों- नगर निगम, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग, रेलवे और एएसआई की सराहना भी की।

    क्या है इस पुल का इतिहास

    गौरतलब है कि इस पुल को करीब 400 वर्ष पूर्व सम्राट जहांगीर के सरंक्षण में मीनार बानू आगा ने बनवाया था। इसके बारह खंभों और 11 मेहराबों की वजह से इसको बारापुला का नाम दिया गया था।

    इतिहासकारों के अनुसार यह पुल सन् 1628 में बनाया गया था और इसके और हुमायूं के मकबरे के बीच की चौड़ी सड़क पर एक कतार से पेड़ हुआ करते थे। इसे कभी दिल्ली के सबसे खूबसूरत पुलों में से एक माना जाता था।

    माना जाता है कि मुगलों द्वारा इस पुल का उपयोग दिल्ली से तत्कालीन राजधानी आगरा के रास्ते में आने वाली यमुना को पार करने और निजामुद्दीन की दरगाह तथा हुमायूं के मकबरे तक पहुंचने के लिए किया जाता था। यह पुल वास्तुशिल्प, इंजीनियरिंग और राजमिस्त्रियों द्वारा किए गए निर्माण का एक नायाब नमूना है, जो अब अतिक्रमण और निर्माण के कारण छिपा हुआ था।