दिल्ली में आज भी जीवित है ब्रिटिश-कालीन शाही परंपरा, मां दुर्गा की प्रतिमाएं 'डाकर साज' से होती हैं सुसज्जित
दिल्ली के पंडालों में आज भी ब्रिटिश काल की डाकर साज की परंपरा जीवित है। माँ दुर्गा की प्रतिमाएँ विशेष आभूषण कला से सजी हैं जो डाक के माध्यम से जर्मनी से मंगाई जाती थी। शोलापिथ एशिनोमिन प्रजाति के पौधे से बने आभूषण प्रतिमा को दिव्य रूप देते हैं। दिल्ली के कुछ पंडालों ने आधुनिकता में भी इस शाही परंपरा को कायम रखा है।

शशि ठाकुर, नई दिल्ली। दिल्ली की आधुनिकता के शोर के बीच मध्य दिल्ली के पंडालों में आज भी ब्रिटिश- कालीन परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं। जो भक्तों को इतिहास की ओर खींच ले जाते है। यहां स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमाएं साधारण साज-सज्जा से नहीं बल्कि एक विशेष, रहस्यमय आभूषण कला से सजी हैं। जिसे 'डाकर साज' कहा जाता है। ये साज कभी हजारों मील दूर से डाक के माध्यम विशेष रुप से दुर्गा पूजा के लिए मंगाए जाते थे।
डाकर साज की कहानी बेहद दिलचस्प है। इस नाम के पीछे की वजह यह है कि ब्रिटिश काल में मां दुर्गा को सजाने का यह विशेष सामान डाक के माध्यम से जर्मनी से मंगाया जाता था। इसी 'डाक' के जुड़ाव ने इसे डाकर साज नाम दिया। यह अद्भुत साज शोलापिथ एशिनोमिन प्रजातियों का एक सूखा दूधिया- सफेद स्पंजी पौधा होता है। जिसे शोला और इंडियन कार्क भी कहा जाता है।
इसे कला की वस्तुओं में दबाया और आकार दिया जा सकता है। एशिनोमिन की लकड़ी दुनिया की सबसे हल्की वस्तु होती है। शोला दलदली जलभराव वाले क्षेत्रों में जंगली बढ़ता है। जिसे तैयार करने में लंबा समय लगता है। इससे बने आभूषण मां दुर्गा की प्रतिमा को एक अलौकिक रूप प्रदान करते है।
सिविल लाइन्स दिल्ली पूजा समिति के सचिव मोनिश चक्रवर्ती ने बताया कि वह इस वर्ष अपनी 116 वीं दुर्गा पूजा मना रहे हैं। यह प्रथा मूल रूप से 16 वीं सदी में कोलकाता में शुरू हुई थी। डाकर साज प्रतिमा पर रोशनी और छाया का जादुई प्रभाव पैदा करता था। जिससे देवी के मुखौटे और आभूषण बनाए जाते है।
हालांकि, 19वीं सदी के बाद से आधुनिकता का चलन बढ़ने के साथ ही मां की प्रतिमा को सजाने के लिए विभिन्न पूजा समितयों ने सोने- चांदी के आभूषणों का अधिक प्रयोग करना शुरू कर दिया है, लेकिन दिल्ली के कुछ पंडालों ने आज भी इस शाही परंपरा को जिंदा रखा है।
वहीं, आरामबाग पूजा समिति के अध्यक्ष अभिजीत बोस ने बताया कि पंडाल में सुबह पूजा के बाद शाम का माहौल और भी रोमांचक होता है। शाम को दुर्गा मां की आरती के बाद महिलाओं और युवतियों ने ढाक की थाप पर एक घंटे तक ऊर्जा से भरा धुनुचि नृत्य प्रस्तुत किया।
जो दिल्ली में बंगाली संस्कृति की रौनक को और बढ़ाता है। इसके बाद बंगाल से आए संगीत कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करते है। इस दौरान पंडाल में भक्त भारी संख्या में उपस्थित रहते है।
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