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    Digital Arrest: डरावना है साइबर लुटेरों का नेटवर्क, चंद मिनटों में ठग लेते हैं करोड़ों रुपये; ये टिप्स करेंगे आपकी मदद

    साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करके लोगों से लाखों और करोड़ों रुपये की ठगी कर रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होता है कि कोई भी एजेंसी डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है। अगर आपके पास भी कोई ऐसी कॉल आए और आपको डिजिटल अरेस्ट करने की बात कहे तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इस रिपोर्ट को पढ़कर आपको साइबर क्राइम से बचने में काफी मदद मिलेगी।

    By Jagran News Edited By: Kapil Kumar Updated: Tue, 10 Dec 2024 09:02 AM (IST)
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    साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट लोगों को ठगी का शिकार बना रहे हैं। जागरण फोटो

    अजय राय, नई दिल्ली। न जान न पहचान पर हर कोई एक-दूसरे के लिए काम कर रहा...ऐसा है साइबर लुटेरों का नेटवर्क। कड़ी दर कड़ी जुड़ती जाती है, लेकिन एक दो से ज्यादा को न कोई जानता है न पहचानता है, लेकिन सभी बैंकों में अलग-अलग लोगों का करंट एकाउंट खुलवाते हैं और इसके जरिये एक-दूसरे को फायदा पहुंचाते हैं। यह किसी को नहीं पता होता है कि इस नेटवर्क की शुरुआत कहां से हुई और यह कहां पर खत्म होता है। सबको खाता खुलवाने पर एक निश्चित रकम जरूर मिल जाती है।

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    ऐसे झांसे में लेते हैं साइबर अपराधी

    साइबर लुटेरों का रैकेट नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी की तर्ज पर काम करता है, लेकिन फर्क इतना है कि इसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता। मेहनत कम और ज्यादा मुनाफे के चक्कर में समान्य लोग भी झांसे में आ जाते हैं और साइबर लुटेरों के स्लीपर सेल की तरह काम करने लगते हैं। इसमें बैंक में करंट एकाउंट खुलवाने पर पैसे निर्धारित रहते हैं। एक खाते पर पांच हजार रुपये तक दिए जाते हैं। जैसे-जैसे खातों के संख्या बढ़ती है, पैसे भी उसी हिसाब से बढ़ते जाते हैं।

    इससे ऊपर बैठे व्यक्ति को इसकी कीमत और भी ज्यादा मिलती है। ऐसे ही यह आसानी से पैसा बनाने का क्रम एक से दूसरे, तीसरे तक शहर दर शहर बढ़ता रहता है। इस धंधे में पैसा कमाने की शर्त सिर्फ खाता खुलवाना है, चाहे देश के किसी भी हिस्से में खुले।

    ऐसे चलता है पूरा नेटवर्क

    इसके पहले की कड़ी में बैठा व्यक्ति अपने से ऊपर वाले अगर सौ बैंक खाते खुलवाने का अघोषित टेंडर लेता है तो बदले में लाखों रुपये लेता है। यही अपने नेटवर्क के लोगों को प्रति खाते पैसा देता है। उससे ऊपर भी कोई बैठा व्यक्ति सौ-सौ खाते खुलवाने का जिम्मा कई लोगों को दे चुका होता है। ऐसे यह क्रम ऊपर से नीचे की कड़ी में अलग-अलग शहरों में चलता रहता है।

    गरीबों को लेते हैं झांसे में...

    बैंक खाता खोलने के लिए अधिकांश रेहड़ी-पटरी, रिक्शे व ठेले वालों को बरगलाया जाता है। उन्हें खाता खुलवाने के नाम पर बताया जाता है कि सरकार गरीबों को पैसे देगी, साथ ही अन्य सुविधाओं के लिए सब्सिडी भी देगी। वो इसी खाते में आएंगी।

    इसके बाद उनके सभी जरूरी दस्तावेज लेकर बैंक कर्मियों के साथ साठगांठ करके करंट एकाउंट खुलवाने से लेकर उसमें आनलाइन लेन-देन की सुविधा और पासर्वड हासिल कर लिया जाता है। अब खाता खुलवाने वाले को कड़ी में अपने से ऊपर वाले को ये सारी जानकारी देनी होती है।

    इसके बात इसके बदले में तय पैसे उसे मिल जाते हैं और खाते की सारी जानकारियां उसी क्रम में ऊपर तक पहुंच जाती है। इसके बाद इन्हीं खातों का उपयोग साइबर लुटेरे लूटी गई रकम को घुमाने में करते हैं।

    साइबर लुटेरों का यह बेहद जटिल नेटवर्क

    इस तरह के खातों में साइबर ठग एक शहर से दूसरे शहर में पैसे घुमाते हैं। पुलिस जब तक एक खाते तक पहुंचती है, तब तक पैसा किसी अन्य खाते में जा चुका होता है। खाताधारक को भी नहीं पता होता कि उसके साथ क्या धोखाधड़ी हो गई है। साइबर लुटेरों का यह बेहद जटिल नेटवर्क है। ऐसे में जरूरी है कि लोग सावधानी बरतें।

    यह सभी को समझना चाहिए कि सरकार कोई भी सहायता राशि सेविंग खाते में देती है, करंट एकाउंट में नहीं देती। यदि खाता खुलवाना भी है तो सीधे बैंक जाना चाहिए, किसी बिचौलिए की मदद नहीं लेनी चाहिए। साथ ही बैंक से खाते की जानकारी, एटीएम और पासवर्ड खुद लेना चाहिए और वो किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए। - नीरज चौधरी, सहायक पुलिस आयुक्त, साइबर सेल, दिल्ली पुलिस

    केस स्टडी....

    तीन दिन तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर 58 लाख ठगे

    मैं घर पर अकेली थी। बीते तीन नवंबर की दोपहर फोन आया। फोन करने वाले ने खुद को टेलीकाम डिपार्टमेंट, मुंबई का अधिकारी बताया। नाम पूछा गया और बताया गया कि आधार नंबर का उपयोग करके मुंबई के लुईसवाड़ी थाने में इस्लाम नवाब मलिक नामक व्यक्ति ने 311 बैंक खाते खोले हैं, जिनका दुरुपयोग हो रहा है। इसके बाद फोन को मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारी से जोड़ दिया गया। उसने अपना नाम सब-इंस्पेक्टर विक्रम सिंह बताया। इसके बाद आधार कार्ड, परिवार के कितने लोग हैं सहित अन्य कई जानकारी पूछी।

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    इसके बाद कहा कि अगर वह जांच में सहयोग नहीं करती हैं, तो उनका मोबाइल नंबर दो घंटे में बंद हो जाएगा और उन्हें मुंबई आना पड़ेगा। इसके बाद वाट्सएप पर वीडियो काल किया गया। सामने एक पुलिस वाला बैठा था। उसने कहा कि ऑनलाइन पूछताछ की जा रही है।

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    बताया कि मैं बहुत डर गई थी। डरा-धमकाकर वीडियो काल पर बने रहने के लिए मजबूर किया और मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स की तस्करी में फंसाने के लिए कहा। डर की वजह से उनके बताए बैंक खाते में तीन दिन में 58 लाख रुपये डाल दिए। इसके बाद जब मैंने बेटी से बात की तो उसने कहा कि यह ठगी का तरीका है, जिसके बाद थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई।  (जैसा की डिजिटल अरेस्ट रहीं 58 वर्षीय एमवी लक्ष्मी ने रायपुर से बताया)

    विशेषज्ञ की टिप्स

    •  रोजमर्रा के जीवन में साइबर सुरक्षा को जीवन जीने की शैली के रूप में स्वीकार्य करना होगा।
    •  अंजान लोगों से फोन पर कोई बात न करें।
    •  अंजान नंबर से आने वाले वीडियो काल को न उठाएं।
    •  अपने डिवाइस को सुरक्षित रखें, अच्छा एंटी वायरस डालें, अच्छा फायरवाल डालें।
    •  अपने डाटा का बैकअप हर हफ्ते या 15 दिन में जरूर लें।
    •  आनलाइन ट्रांजेक्शन केवल उन्हीं वेबसाइट पर करें जो एचटीटीपीएस से प्रारंभ हों।
    •  अगर आप आनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं तो एसएमएस सेवा जरूर लें।
    •  अगर आपके क्रेडिट या डेबिट कार्ड से कोई अनावश्यक ट्रांजेक्शन हुआ है तो तुरंत पुलिस के साथ ही बैंक में भी रिपोर्ट करें।
    •  अगर आपके साथ ठगी हुई है तो राष्ट्रीय साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 और राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड पोर्टल पर तुरंत शिकायत करें।

    किसी भी अनजान व्यक्ति से बैंक खाता न खुलवाएं, इसके लिए सीधे बैंक जाएं। - पवन दुग्गल, साइबर अपराध और साइबर कानून विशेषज्ञ

    दैनिक जागरण साइबर क्राइम को लेकर अपने पाठकों को जागरूक करने के लिए 'लुटेरा ऑनलाइन: सतर्क रहें' नाम से जागरुकता अभियान चला रहा है। साइबर ठगी को लेकर जागरुकता अभियान 'लुटेरा ऑनलाइन: सतर्क रहें' सीरीज का पार्ट-4 कल पढ़िए www.jagran.com पर...