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    सीएसई ने बताया भीषण गर्मी और लू से बचाव के लिए किस तरह से घरों की बनावट में किया जाए सुधार, जानें डिटेल

    By Vinay Kumar TiwariEdited By:
    Updated: Wed, 11 May 2022 12:52 PM (IST)

    शहरों में घरों की बनावट और सघन आबादी के कारण कंक्रीट के जंगल के निर्माण में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। सीएसई की रिपोर्ट का दावा- घरों की बनावट व सघन ...और पढ़ें

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    सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने पिछले सप्ताह अपनी एक रिपोर्ट जारी की है।

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। भीषण गर्मी और लू से बचाव के लिए घरों की बनावट में सुधार की जरूरत है। घरों को इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए और ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिससे गर्मी का मुकाबला किया जा सके। इस आशय का दावा सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने पिछले सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में घरों की बनावट और सघन आबादी के कारण कंक्रीट के जंगल के निर्माण में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इससे शहरों में ऐसी जगहें बढ़ रही हैं जहां अर्बन हीट आईलैंड का प्रभाव दिख रहा है।

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    दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई महानगर में किए गए अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट का दावा है कि वहां शहरी क्षेत्रों में दिन का तापमान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में एक से तीन डिग्री तक ज्यादा दर्ज किया गया, जबकि रात में यह अंतर 12 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता दिखा। सीएसई के मुताबिक घरों की बनावट और उसके निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री में बदलाव करके घरों को लू और गर्मी से मुकाबला करने में सक्षम बनाया जा सकता है। इससे घरों को ठंडा करने में खर्च होने वाली बिजली भी बचेगी।

    नए भवनों में ऊर्जा लाक-इन को रोकने, पुराने भवनों को गर्म करने वाले वातावरण का सामना करने और ऊर्जा की खपत कम करने के लिए रेट्रोफिटिंग का सहारा लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट बताती है कि मौसम अनुकूल किफायती घर बनाने के मामले में अभी भी जागरूकता का अभाव है। ज्यादातर घर ऐसे बनाए जा रहे हैं कि जहां कम जगह में भी अधिकाधिक आबादी को बसाया जा सके। जलवायु परिवर्तन और महामारी के असर को दरकिनार किया जा रहा है।

    सीएसई के मुताबिक घर बनाते समय शहर की भौगोलिक स्थिति और स्थानीय मौसम को ध्यान में रखना भी जरूरी है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि घरों में आइसोलेशन के लिए कमरों और क्रास वेंटिलेशन की जरूरत सबसे अधिक है। कहीं भी घर इसी तरह से बनाए जाएं कि उनमें अधिक एरोसोल न बनने पाए। यह तभी मुमकिन है, जब घर खुला हो, उसमें ताजी हवा अंदर आ सके। यदि घर में ताजी हवा नहीं आ पा रही है तो ऐसे घरों में अच्छे फिल्टर भी लगाने की जरूरत है। इसके लिए अब दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है। मौजूदा दिशा-निर्देश इन जरूरतों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। खराब तरीके से बने घर हवा से फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ाते हैं।

    सीएसई के सुझाव

    साइट ले-आउट प्लान :

    साइट को ध्यान में रखते हुए ही बिल्डिंग के ले-आउट प्लान बनने चाहिए। मध्यम ऊंचाई वाली बिल्डिंग इसका बेहतर उदाहरण है।

    बिल्डिंग डिजाइन :

    खिड़कियों को ओपन स्पेस की तरफ बनाना चाहिए। कामन एरिया की तरफ खिड़की बनने से लोग एकांत की तलाश में खिड़कियां बंद रखते हैं। बिल्डिंग को इस तरह डिजाइन किया जाना जाए कि अधिक से अधिक फ्लैट्स को ओपन स्पेस की तरफ खिड़कियां मिलें। खिड़कियों के साइज भी कमरों के साइज के हिसाब से तय करने होंगे, ताकि कमरों के अंदर की हवा ताजी हवा से बदल सके।