देशभर के सीएससी बाल विद्यालयों में डिजिटल पढ़ाई करेंगे बच्चे, ऑग्मेंटेड रियलटी आधारित चार एप तैयार
इस लैब में आइआइटी के विज्ञानी एप तैयार करने में जुटे। सीएससी बाल विद्यालयों में तीन से छह साल तक के बच्चे पढ़ते हैं। ये अधिकतर ग्रामीण इलाकों में खुले हैं। करिकुलम तैयार करते समय इन सब बातों का ध्यान रखा गया।

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। केंद्रीय इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत देशभर में (common service center)कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) संचालित होते हैं। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के मकसद से सीएससी एकेडमी के अधीन बाल विद्यालय भी चलाए जाते हैं। इन बाल विद्यालयों में छह साल तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं। आइआइटी दिल्ली नई शिक्षा नीति के अनुसार इन बाल विद्यालयों में पढ़ाई का खांका तैयार करने में मदद कर रहा है। छात्रों के हाथों में डिजिटल डिवाइस (digital device)भी पहुंचने शुरू हो गए हैं।
छात्र अब डिजिटल पढ़ाई करेंगे। आइआइटी ने ऑग्मेंटेड रियलटी आधारित चार एप तैयार भी कर दिए हैं। प्रो. ज्योति कुमार ने बताया कि कॉमन सर्विस सेंटर एकेडमी और आइआइटी दिल्ली (IIT Delhi) के बीच करिकुलम को लेकर एक करार हुआ था। जिसके तहत आइआइटी दिल्ली में एक डिवाइन (डिजाइन एंड इनोवेनेशन इन वीएलई इंडिजिनस नेटवर्क इकोसिस्टम) लैब स्थापित किया।
इस लैब में आइआइटी के विज्ञानी एप तैयार करने में जुटे। सीएससी बाल विद्यालयों में तीन से छह साल तक के बच्चे पढ़ते हैं। ये अधिकतर ग्रामीण इलाकों में खुले हैं। करिकुलम तैयार करते समय इन सब बातों का ध्यान रखा गया।
ऑग्मेंटेड रियलटी आधारित चार एप तैयार
सीएससी बाल विद्यालयों में बच्चे टैबलेट बेस्ड पढ़ाई कैसे करें? इसका खाका डिवाइन लैब में तैयार किया गया। आइआइटी विज्ञानी अब तक ऑग्मेंटेड रियलटी आधारित चार एप किए तैयार कर चुके हैं। ऑग्मेंटेड रियलटी वह तकनीक है जो डिवाइस का इस्तेमाल करके डिजिटल कटेंट को रियल वलर््ड के जैसा दिखाता है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि यह किसी पशु, पक्षी, पौधे, फूल का बिल्कुल नैसर्गिक थ्री डी मॉडल बनाता है।
ताकि पढ़ाई करते समय बच्चे को असल का अनुभव हो। आइआइटी ने वर्णमाला का एक एप भी बनाया है। जो बच्चे को रोचक अंदाज में वर्णमाला सिखाती है। मसलन, टैब की स्क्रीन पर अ लिखकर आएगा। जैसे ही बच्चा स्क्रीन टच करेगा अनार समेत अ वर्णमाला से जुड़ी अन्य चीजों की तस्वीर उभर कर आएगी। आडियो और वीडियो का संमिश्रण बच्चों को अच्छा लगेगा।
अन्य एप में पालतू जानवर, जंगली जानवर, चार पैर के जानवर, घरेलू, जंगली जानवरों में अंतर आदि बताए गए हैं। शरीर के अंग पर भी एप बन चुका है। छोटी बाल कविताएं भी एप के जरिए बच्चा पढ़ सकेगा। ऐसे भी एप बनाए गए हैं, जो तस्वीरों को स्कैन कर उनसे संबंधित चित्र या व्यक्ति के बारे में बताते हैं। जैसे यदि कोई छात्र ब्लैकबोर्ड पर लिखे फ को स्कैन करेगा तो टैब या मोबाइल स्क्रीन पर फ तो लिखकर आएगा ही साथ ही फौजी या इससे जुड़ी अन्य चीजें भी पता चल सकेंगी।
दस देशों में पढ़ाई के तरीके का अध्ययन
आइआइटी के प्रोफेसर ने दुनिया के दस देशों में बच्चों को पढ़ाने के तरीके का अध्ययन किया। प्रो. ज्योति कुमार कहते हैं कि अध्ययन के जरिए हम यह पता लगाना चाहते थे कि इन देशों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है। उनका करिकुलम क्या है़। अध्ययन में पाया गया कि बच्चों के विकास में प्रकृति के योगदान पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
प्रकृति आधारित अध्ययन है। इसके अलावा मानसिक विकास में तकनीकी किस कदर सहायक हो सकती है, यह पता लगाया गया। बच्चों में जीवन मूल्य कैसे विकसित किए जाएं। नई शिक्षा नीति कहती है कि शिक्षा के माध्यम से जीवन मूल्यों का विकास आवश्यक है। ये चीज बच्चों को कैसे पढ़ाई जाए, इस पर ध्यान दिया जा रहा है।
बदलेगा पढ़ाई का ढर्रा
आइआइटी और सीएससी की कोशिश है कि पढ़ाई का तरीका बदले। बच्चा प्रतिदिन कक्षा में आए और कुछ सीखे। उसे केवल शिक्षक को सुनना ना पड़े बल्कि वो खुद उत्साहित होकर पढ़ाई करे। पढ़ाई के प्रति उत्सुकता और जिज्ञासा पैदा हो। बाल विद्यालय खोलने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए ही आवेदन करना होता है। जो भी चाहता है विद्यालय खोलना, उसे सीएससी की शर्तों का पालन करना होता है। सीएससी टीचर ट्रे¨नग देती है। वर्कशाप कराती है, अध्ययन सामग्री भी दी जाती है।
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