Qutub Minar News: क्या है कुतुबमीनार का सही इतिहास? 900 वर्ष बाद अधूरा नहीं पूरा सच जानना चाहता है देश
Delhi Qutub Minar News महरौली स्थित कुतुबमीनार के बारे की उत्सुकता बढ़ गई है। रोजाना पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। पर्यटक भी जानना चाहते हैं कुतुबमीनार का सही इतिहास क्या है? पूछने पर वे कहते हैं कि इसकी सच्चाई से पर्दा उठना जाहिए।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। उपजे विवाद के बाद विश्व धरोहर कुतुबमीनार में पर्यटकों की संख्या अचानक बढ़ गई है। पिछले चार दिन से यहां पहले की अपेक्षा प्रतिदिन 500 से लेकर 600 तक और पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है।पहुंचने वाले पर्यटकों के बच्चे अपने परिजनों से पूछ बैठते हैं कि यह कुतुबमीनार है तो सूर्य स्तंभ कहा है? कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में लगी मूर्तियों को लेकर विवाद गरमाने के बाद अब कुतुबमीनार को लेकर भी विवाद शुरू हो चुका है।
इस विवाद ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा के बयान के बाद तूल पकड़ा है, जिसमें उन्होंने इस कुतुबमीनार को सूर्य स्तंभ के नाम से एक वेधशाला बताया है। उनके अनुसार इसे कुतुबद्दीन ऐबक ने नहीं, उससे 700 साल पहले राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने आचार्य वाराहमिहिर के नेतृत्व में बनवाया था। कई अन्य शोधकर्ता भी यही बात दोहराते हैं।
इस विवाद के बाद इस भीषण गर्मी में भी अन्य स्मारकों की अपेक्षा इस स्मारक में पर्यटकों की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि दिल्ली के अन्य स्मारकों में गर्मी के चलते पर्यटक पहुंचने कम हुए हैं।कुतुबमीनार में दिल्ली के रहने वाले पर्यटकों के अलावा राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल और हरियाणा से भी पर्यटक पहुंच रहे हैं।पर्यटक सीधे कुतुबमीनार के पास पहुंचते हैं, जहां वह इस बात पर चर्चा करते हैं कि यह कुतुबमीनार है या वेधशाला।
जिन बिन्दुओं को आधार मानकर शोधकर्ता कुतुबमीनार के सूर्य स्तंभ होने का दावा कर रहे हैं, उन पर भी वे लोग चर्चा करते हैं।कुतुबमीनार पर बने झरोखों और बेल बूटों, घंटियों और कमल के फूलों को लेकर भी बात करते हैं। मीनार पर उन्हें पहचानने का प्रयास करते हैं। इसके बाद वे उस कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में पहुंचते हैं जिसमें हिन्दू व जैन धर्म से संबंधित भगवानों की मूर्तियां लगी हैं।
हालांकि इससे पहले भी पर्यटक यहां कुतुबमीनार को ही देखने पहुंचते थे, मगर अब विवादित मस्जिद भी उनके एजेंडे में शामिल हो रही है। कुतुबमीनार वेधशाला ही है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारी के के राजदान ने भी कुतुबमीनार के वेधशाला होने के धर्मवीर शर्मा के दावे का समर्थन किया है।
राजदान इन दिनों बंगलुरु में रह रहे हैं। वह कुतुबमीनार स्मारक परिसर के 2006 के करीब इंचार्ज रहे हैं। वह कहते हैं कि वह इस दौरान कई बार कुतुबमीनार के अंदर गए हैं और संरक्षण कार्य कराए जाने को लेकर भी मीनार का निरीक्षण किया। वह कहते हैं कि उनके समय में कुतुबमीनार में संरक्षण कार्य जरूर नहीं हो सका, मगर उन्होंने मीनार के अंदर झरोखों के ऊपर तथा अन्य स्थानों पर लिखावट को देखा है। उसे देखकर ऐसा लगता है कि इस लिखावट को किसी उद्देश्य के लिए उपयोग में लाया जाता होगा।
उन्होंने कहा कि उनका इस लिखावट को पढ़ने का कभी उद्देश्य नहीं रहा, मगर यह पक्का है कि लिखावट मौजूद जरूर है।उन्होंने कहा कि मेरी समझ से धर्मवीर शर्मा जी जो कह रहे हैं वही सही है, इसके वेधशाला होने की पूरी संभावना है।
काली मां की विभिन्न मुद्रा में मूर्तियां राजदान कहते हैं कि राजा अनंगपाल द्वारा लगवाए गए लौह स्तंभ के पास वाले मस्जिद के ढांचे में काली मां भी की विभिन्न मुद्रा में मूर्तियां हैं।कहीं पर उनका रौद्र रूप दिखता है, वह राक्षसों का संहार करते हुए दिख जाती हैं तो कहीं वह शांत मुद्रा में हैं। मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया जा चुका है इसलिए सामान्य तौर पर चित्र बहुत स्पष्ट नहीं होते हैं, मगर ध्यान से देखने पर चित्रों की वास्तविकता का अहसास होता है।