जिस सीआर पार्क के दुर्गा पंडाल में PM मोदी आज करेंगे पूजा, क्या है वहां का इतिहास?
Delhi CR Park Durga Puja History प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दिल्ली के मिनी बंगाल कहे जाने वाले सीआर पार्क में दुर्गा पूजा पंडाल में पूजा करने जाएंगे। सीआर पार्क में दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है। यहां पीढ़ियों से बसे बंगाली परिवारों ने अपनी परंपरा को संजोया है। दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल में बंगाली कवियों की कविताओं लोकनृत्य और लोकसंगीत का आयोजन किया जाता है।

शालिनी देवरानी, दक्षिणी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार शाम दिल्ली के 'मिनी बंगाल' कहे जाने वाले सीआर पार्क में आयोजित दुर्गा पूजा पंडाल में पूजा करने पहुंचेंगे। पीएम मोदी के आगमन को लेकर स्थानीय लोगों में बहुत उत्साह है। पुलिस ने बताया कि मंगलवार शाम करीब सात बजे प्रधानमंत्री दुर्गा पूजा में शामिल होंगे। आइए जानते हैं कि दिल्ली के सीआर पार्क में दुर्गा पूजा का इतिहास क्या है...
लाल किला और इंडिया गेट दिल्ली की ऐतिहासिक पहचान हैं और वैसे ही बंगाली संस्कृति का जीवंत अहसास 'चितरंजन पार्क' है। हर साल शारदीय नवरात्र में ये स्थान मानो कोलकाता का अक्स बन जाता है, तभी तो इसे मिनी बंगाल भी कहा जाता है। पंडालों में बोधन के साथ श्रद्धा और परंपरा से मां दुर्गा का आह्वान होता है।
सबरंग के लिएसीआर पार्क स्थित काली मंदिर में दुर्गा पूजा के लिए तैयारी करती महिलाएं। सौ.मंदिर
गली-गली बंगाली छठा में डूबी होती है। ढाक की गूंज। भव्य पंडालों की दिव्य जगमगाहट। हवा में घुली खिचड़ी व लाबड़ा की खुशबू… हर आगंतुक को अनुभूति कराती है… आतिथ्य अभिनंदन है…आप बंगाल की दुर्गा पूजा में हैं। आज, नवरात्र के षष्ठी व्रत के साथ बंगाली दुर्गा पूजा उत्सव शुरू हो रहा है तो आइए सबरंग के आज के अंक में दिल्ली के इस मिनी बंगाल की परंपराओं से रूबरू होते हैं:
चितरंजन पार्क
जहां पीढ़ियों से बसे बंगाली परिवारों ने यहां परंपरा को संजोने के साथ समृद्ध भी किया है। दक्षिणी दिल्ली में बसी इस छोटी सी बंगाली दुनिया के लिए दुर्गा पूजा धार्मिक अनुष्ठान, संस्कृति, कला और परंपरा यानी वो सब कुछ है जो हमे हमारी प्रकृति से जोड़े रखे।
पंडालों में भव्य मूर्तियां, रंग-बिरंगी सजावट और शाम को होने वाले सांस्कृतिक उत्सव हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जहां बच्चों की हंसी, बुजुर्गों की सुनहरी यादें और युवाओं का उत्साह सभी एक संग घुलमिल जाता है। सिंदूर खेला की उमंग, धुनुची नृत्य की लय- हर रस्म में श्रद्धा और उल्लास।
घरों में पारंपरिक मिठाइयां, पापड़ और व्यंजनों की खुशबू से गलियां महकती हैं। पूरे दिन का माहौल एक खूबसूरत कहानी की तरह चलता है। सुबह आराधना, शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम और रात को पंडालों की रोशनी में भक्तों का उत्साह।
पंडाल में आपको कोई कैमरे और मोबाइल में इस रंग-बिरंगे उत्सव को कैद करता दिखेगा, तो कोई परिवार अपनी पीढ़ियों की परंपरा को निभाते हुए आनंद लेता हुआ। कहा जा सकता है यहां की नवरात्र की रौनक संस्कृति की जीवंत धरोहर है, जिसमें नई पीढ़ी भी जड़ों और परंपरा से जुड़ जाती है।
परंपरा की जड़ों से सजे भव्य समारोह
दिल्ली में दुर्गा पूजा की परंपरा की जड़ें चितरंजन पार्क से ही जुड़ी हैं। यहीं से दुर्गोत्सव की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे यह पूरे एनसीआर का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आकर्षण बन गया। यहां आने वाले हर शख्स के लिए यह पूजा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, घर से दूर भी अपनत्व का अनुभव है।
चितरंजन पार्क का दुर्गोत्सव, यह संदेश देता है कि परंपरा चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो, अगर उसे दिल से जिया जाए तो वह मिटती नहीं, बल्कि और गहरी जड़ें हो जाती हैं। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सीआर पार्क में तीन दुर्गा पूजा समितियां इस साल अपना स्वर्णिम आयोजन कर रही हैं। इसे खास बनाने के लिए कई विशेष तैयारियां की गई हैं।
श्री दुर्गा पूजा समिति की ओर से मुर्शिदाबाद के महिषादल राजबाड़ी की थीम पर तैयार किया गया है भव्य पंडाल। विपिन शर्मा
पंडाल बनाने में कितने रुपये हुए खर्च?
बी ब्लॉक चितरंजन पार्क दुर्गा पूजा समिति के महासचिव आशीष सोम बताते हैं कि 1976 में बतौर वालंटियर पूजा समिति से जुड़े थे। समय के साथ ये आयोजन भव्य स्वरूप ले चुका है। पहले इसी मैदान के एक कोने में छोटा सा पंडाल लगता था, जिसका खर्च 20 से 22 हजार आता था।
आज पूरे मैदान में पंडाल ही सवा करोड़ का बना है। अध्यक्ष अमित राय का कहना है कि पहले पिताजी समिति में थे और अब मैं हूं। ये दुर्गा पूजा हमारे लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि अपनी पहचान संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने का जरिया है।
सक्रियता से जिम्मेदारी निभा रहे युवा गौरव भट्टाचार्य का कहना है कि हमारे बड़े-बुजुर्गों ने बंगाल की विरासत को सहेजकर रखा है अब आगे ले जाना हमारी जिम्मेदारी है, इसलिए आफिस के साथ दुर्गोत्सव की तैयारी में पूरा सहयोग देता हूं।
पीढ़ियों को विरासत से जोड़ते कार्यक्रम
समाज के बुजुर्गों का मानना है कि पूजा पंडाल सिर्फ देवी का आह्वान नहीं करते, बल्कि वह मंच भी बनते हैं जहां अपनी भाषा, परंपरा और पहचान को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाता है। यही वजह है कि दुर्गा पूजा के दौरान पूजा-अर्चना के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रौनक भी बिखरती है।
सीआर पार्क स्थित काली मंदिर सोसायटी में पारंपरिक तरीके से तैयार किया गया भव्य पंडाल। जागरण
बंगाली कवियों की कविताओं पर आधारित प्रतियोगिताएं युवाओं को साहित्य से जोड़ती हैं, तो लोकनृत्य और लोकसंगीत उन्हें अपनी मिट्टी की धड़कन सुनाते हैं। वहीं, धुनुची नृत्य की थिरकन और अल्पोना की कला यह साबित करती है कि परंपरा आज भी हर दिल में सांस ले रही है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सहयोग दे रहीं दिप्ती चटर्जी और अरुंधती बर्मन का कहना है कि इन आयोजनों का मकसद केवल मनोरंजन भर नहीं है। जब बच्चे कविता पढ़ते हैं या पारंपरिक परिधान पहनकर मंच पर उतरते हैं, तो वे अनजाने ही उस धरोहर को आत्मसात कर रहे होते हैं, जिसे पीढ़ियों ने सहेजकर रखा है। यहां होने वाले फैशन शो में भी यह संदेश छिपा है कि परंपरा और आधुनिकता का संगम ही संस्कृति को जीवित रखता है।
मिलकर सजाते हैं माता का दरबार
बंगाली समाज की मान्यता है कि दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल में विराजमान मां दुर्गा अपने मायके आती हैं। यही कारण है कि उनके स्वागत की तैयारियों में पूरे समुदाय की सहभागिता झलकती है। कारीगर प्रतिमा गढ़ते हैं, पंडाल सजाते हैं और दूसरी तैयारियों को अंतिम रूप देते हैं। वहीं पुरुष मिलकर भव्य तैयारी करते हैं और सारी व्यवस्थाओं में जुट जाते हैं।
सीआर पार्क स्थित काली मंदिर में दुर्गा पूजा के लिए तैयारी करती महिलाएं। सौ.मंदिर
उधर, महिलाएं भी पंडाल की सजावट से लेकर स्वादिष्ट व्यंजन बनाने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारियों में सक्रिय रहती हैं। रंग-बिरंगे अलंकरण, मनभावन पकवान और उल्लास से भरे कार्यक्रम मिलकर एक ऐसा वातावरण रचते हैं जिसमें हर कोई मां के स्वागत में डूब जाता है।
दुर्गोत्सव की तैयारियों में जुटीं अनीता हल्दर, सरिता दास और इशानी दत्ता बताती हैं, माता के स्वागत में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए हम तन-मन से प्रयास करते हैं। घरों में तो उत्साह का अलग ही रंग होता है, लेकिन पंडालों में ऊर्जा अलग ही होता है। पूजा, सजावट, कार्यक्रम और आनंद मेला हर तैयारी में हम अपनी भूमिका निभाते हैं ताकि आयोजन भव्य और यादगार बने।
संस्कृति और स्वाद का 'आनंद मेला'
दुर्गा पूजा… इसका सबसे खास हिस्सा पारंपरिक भोग और पकवान भी हैं। इन्हीं पलों को जीवंत करने आता है आनंद मेला। इसमें महिलाएं अपने घरों से पारंपरिक बंगाली व्यंजन तैयार कर लाती हैं। खिचड़ी, सब्जियों का मिश्रण लाबड़ा, टमाटर-खजूर की मीठी चटनी, खीर, मिठाई और पायेश- ये सभी व्यंजन मिलकर उस स्वाद की दुनिया रचते हैं, जो हर किसी को अपनी संस्कृति से जोड़ देता है।
यहां सजे व्यंजनों के स्टाल से अपनेपन, साझेदारी और सामूहिकता की खुशबू महकती है। आनंद मेला इस मायने में भी खास है कि यह सिर्फ भोजन का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि परंपरा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम है। बच्चों और युवाओं के लिए यह अवसर होता है अपनी जड़ों से रूबरू होने का- यह जानने का कि एक साधारण पायेश या लाबड़ा में कितनी पुरानी यादें और संस्कार छिपे हैं।
इस उत्सव में रंग भरती हैं प्रतियोगिताएं- बेस्ट डिश, बेस्ट मिठाई से लेकर बेस्ट टेबल डेकोरेशन तक। सीआर पार्क निवासी अजंता भट्टाचार्या और डॉ. सोमा तालुकदार कहती हैं कि सीआर पार्क की दुर्गा पूजा हमें यही सिखाती है कि संस्कृति किताबों में बंद होकर नहीं बचती। वह तभी जिंदा रहती है, जब उसे रोजमर्रा की जिंदगी और उत्सवों में जिया जाए, साझा किया जाए और अगली पीढ़ी को सौंप दिया जाए। इसीलिए हम सबके लिए दुर्गा पूजा, संस्कृति को पुष्पित पल्लवित की खूबसूरत माध्यम बनी हुई है।
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