Manish Murder Case: 'दया नहीं, न्याय जरूरी', मनीष हत्याकांड में दो दोषियों को आजीवन कारावास
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 2015 के मनीष हत्याकांड में गुरचरण सिंह और शीशराम को उम्रकैद की सजा सुनाई। न्यायाधीश ने दोषियों पर जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने अपराध को गंभीर माना पर दुर्लभतम नहीं कहा इसलिए मौत की सजा नहीं दी। अदालत ने पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की सिफारिश की क्योंकि दोषियों के पास मुआवजा देने की क्षमता नहीं है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तीस हजारी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने वर्ष 2015 में मनीष नामक युवक की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए गुरचरण सिंह और शीशराम उर्फ राम को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार खर्ता ने दोनों दोषियों पर एक-एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न चुकाने पर दोषियों को दो माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर प्रकृति का है, लेकिन दुर्लभतम अपराध की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए मौत की सजा नहीं दी गई।
अदालत ने दोनों दोषियों को पहली बार अपराध में लिप्त होने के आधार पर न्यूनतम सजा की दलील को खारिज कर दिया। मामले में अदालत ने स्पष्ट किया कि गरीबी दया का आधार नहीं हो सकती और कानून का मकसद पीड़ित को न्याय देना है।
वहीं, अदालत ने मनीष के स्वजन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना 2018 के तहत उसके परिजनों को मुआवजा दिए जाने की सिफारिश की है। चूंकि दोषियों के पास मुआवजा देने की क्षमता नहीं है, यह मामला दिल्ली जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को भेजा गया है।
दोषियों के अधिवक्ता ने अदालत से नरमी बरतने की अपील की थी, जिसमें कहा गया कि दोनों गरीब परिवारों से हैं, पहली बार अपराध किया है, और उनके परिवार की जिम्मेदारियां हैं।
लोक अभियोजक ने यह दलील दी कि मनीष की हत्या एक सोची-समझी साजिश के तहत की गई और समाज में इसका व्यापक असर पड़ा है, ऐसे में अधिकतम सजा दी जानी चाहिए।
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