कोर्ट ने कहा- किसी व्यक्ति के खिलाफ समन जारी करने के लिए एफआइआर दर्ज करना अनिवार्य है, जानें क्या है पूरा मामला?
कुलविंदर की याचिका पर पीठ ने यह भी कहा कि जांच को कानूनी और वैध होने के लिए भी पुलिस अधिकारी को सीआरपीसी के प्रविधानों के अनुसार कार्य करना पड़ता है। मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बगैर पुलिस प्रारंभिक जांच करके अपनी शक्तियों से परे कार्य नहीं कर सकती है।

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। बिना एफआइआर दर्ज किए पंजाब की एसएएस नगर की साइबर अपराध शाखा द्वारा अधिवक्ता और फ्रैंकफिन एविएशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक कुलविंदर सिंह कोहली को जारी समन पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कानून की स्थिति को स्पष्ट किया है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने अहम टिप्पणी करते हुए माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-160 के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ समन जारी करने के लिए एफआइआर दर्ज करना अनिवार्य है।
पीठ ने कहा कि एफआइआर दर्ज किए बिना यह नहीं कहा जा सकता है कि उक्त धारा के तहत जांच शुरू की गई थी। धारा-160 के तहत एक अधिकारी द्वारा केवल अपने आसपास के क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों को ही समन जारी किया जा सकता है। कुलविंदर सिंह कोहली की याचिका पर पीठ ने यह भी कहा कि जांच को कानूनी और वैध होने के लिए भी पुलिस अधिकारी को सीआरपीसी के प्रविधानों के अनुसार कार्य करना पड़ता है। मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बगैर पुलिस प्रारंभिक जांच करके अपनी शक्तियों से परे कार्य नहीं कर सकती है। यदि किसी मामले में किसी व्यक्ति को समन भेजा जाना है तो पहले उसके खिलाफ किसी भी थाने में मामला दर्ज होना बहुत जरुरी है। इसके बिना ये माना जाएगा कि पुलिस ने वर्दी का खौफ दिखाते हुए एक्शन लिया है।
पीठ ने यह भी कहा कि पंजाब पुलिस ने मामला दर्ज करने से पहले कोहली को समन जारी किया था। यह वास्तव में पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता दिल्ली में रहता है, इसके बावजूद भी एसएएस नगर पुलिस ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर के व्यक्ति के खिलाफ समन जारी किया। ऐसे में अदालत एसएएस नगर साइबर अपराध शाखा द्वारा जारी किए गए तीन समन आदेशों को रद करती है। कुलविंदर सिंह ने एसएएस नगर के पुलिस साइबर अपराध द्वारा जारी समन को चुनौती दी थी। कोहली समेत एक अन्य के खिलाफ अशांति फैलाने, अपमानजनक सामग्री को प्रिंट करना, धमकी देना आदि के तहत आरोप लगाए गए थे।
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