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शिक्षक संघ की आंख को खटक रहे उपशिक्षा निदेशक

अगर कोई शिक्षक अगर आवाज बुलंद करता है तो उस पर कार्रवाई कराकर आवाज दबाने की कोशिश की जाती है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 02:40 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 02:40 PM (IST)
शिक्षक संघ की आंख को खटक रहे उपशिक्षा निदेशक
शिक्षक संघ की आंख को खटक रहे उपशिक्षा निदेशक

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। शिक्षा निदेशालय की निजी शाखा में कार्यरत उप शिक्षा निदेशक विकास कालिया आजकल राजकीय विद्यालय शिक्षक संघ की आंख में खटकने लगे हैं। शिक्षक संघ के महासचिव अजय वीर तो जगह-जगह विकास कालिया पर जांच बैठाने की शिकायत करते घूम रहे हैं। उनकी शिकायत में तो पूरा कच्चा चिट्ठा लिखा हुआ है कि साहब पिछले 20 सालों से साहब एक ही कुर्सी पकड़े हैं। ऊपर से बिना किसी शैक्षणिक अनुभव के उप शिक्षा निदेशक बन गए। अपनी कुर्सी का सदुपयोग करने की बजाय निजी उपयोग करने लगे हैं। शिकायत की चर्चा इतनी जोरों पर है कि अब तो लोग कहने लगे हैं कि साहब को किसी बड़े अधिकारी का वरद अस्त प्राप्त है, तभी तो कोई महत्वपूर्ण फाइल उनकी सहमति के बिना टस से मस नहीं हो सकती। और तो और उनके खिलाफ शिक्षक अगर आवाज बुलंद करता है तो उस पर कार्रवाई कराकर आवाज दबाने की कोशिश की जाती है।

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पुरातत्व विभाग की जमीन पर कब्जा

मथुरा रोड स्थित एक निजी स्कूल जिसकी 200 से भी ज्यादा शाखाएं दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश भर में फैली हुई है, उसकी भारतीय पुरातत्व विभाग से अच्छी साठ-गांठ हो गई है। विद्यालय ने पुरातत्व विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा कर निकासी गेट, टॉयलेट तक बना लिया है। जबकि पुरातत्व विभाग की इस जमीन पर 16वीं सदीं में बने स्मारक की जमीन पर निर्माण की सख्त मनाही है। कुछ जागरूक लोगों ने सूचना का अधिकार के तहत पुरातत्व विभाग की जमीन पर अवैध निर्माण की जानकारी जुटा कर विद्यालय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की तो आला अधिकारी ने भी दिखावे के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई कर दी और उसी कागजी कार्रवाई की आड़ में विद्यालय में अपने रिश्तेदार का दाखिला करा लिया। मामले के जानकारी उच्च अधिकारियों को भी लगी, लेकिन सब आंख और कान बंद कर ऐसे बैठे हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।

घटा पाठ्यक्रम बना चर्चा का विषय

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से कक्षा नौवीं से 12वीं का 30 प्रतिशत घटाया पाठ्यक्रम आजकल चर्चा का नया विषय बना हुआ है। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक आजकल कॉल या ग्रुप मैसेज पर सिर्फ इसी बात पर चर्चा करते नजर आ रहे हैं। अभिभावकों के मुताबिक राष्ट्रवाद का पाठ हटा कर बोर्ड ने अच्छा किया, क्योंकि इससे अब हिंसा के मामलो में कमी आएगी। चर्चा में जब लोकतांत्रिक अधिकारों की बात उठी तो सब एक ही स्वर में बोले कि जो बचा नहीं, उसके बारे में क्या ही फायदा जानकर। विविधिता, जाती, धर्म और लिंग भी इस चर्चा से अछूते नहीं रहे, लोग कहने लगे कि यह सब तो बच्चा बिना पढ़े ही सीख जाता है। पड़ोसी राज्यों से रिश्तों पर लोग ने कहा कि जिन रिश्तों के रुप बदल रहे हों, उनसे दूर रहना ही अच्छा। जीएसटी और विमुद्रीकरण तो अभिभावकों के बाएं हाथ का खेल है।

नहीं छूट रहा कुर्सी मोह

सरकारी स्कूलों के छात्रों का परिणाम इस बार सबसे बढि़या रहा। बिना परीक्षा दिए भी छात्रों का 98 फीसद पास प्रतिशत अब किसी से भी नहीं छुपा हुआ है। लोग तो इसे शिक्षा निदेशक की शिक्षा में बदलाव लाने की निष्ठा और लगन का कारण बता रहे हैं। लेकिन, अच्छा परिणाम देने के बाद भी शिक्षा के आला अधिकारी का इस तरह अंडमान व निकोबार तबादला हो जाना कहीं न कहीं पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक रोटियां सेकने की वजह बनता जा रहा है। खैर, इन सभी राजनीतिक रोटियों से बेफिक्र आला अधिकारी तो आजकल मौन धारण किए हैं। आला अधिकारी के कार्यालय में जब भी कोई आजकल फोन कर नए अधिकारी के आने की जानकारी लेता है, तो एक ही जवाब मिलता है कि पुराने साहब अभी भी गद्दी पर विराजमान हैं, उनको इतनी जल्दी जाने थोड़े देंगे। लगता है साहब का कुर्सी मोह नहीं छूट रहा।


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