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    कंजर्वेशन एग्रीकल्चर से करें खेती तो कम मेहनत में समय की बचत के साथ मिलेगा ज्यादा रिटर्न

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Sat, 11 Dec 2021 04:25 PM (IST)

    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा विज्ञानियों का कहना है कि कृषि क्षेत्र में आजकल ऐसी तकनीकों की कमी नहीं है जिससे खेती अब पहले की तुलना में काफी आसान ...और पढ़ें

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    उपज की बात करें तो गेहूं में 15 फीसद, धान में 26 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है।

    नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। कृषि क्षेत्र में आई नवीन तकनीकों का प्रयोग करें तो इससे खेतीबाड़ी की लागत, इसमें लगने वाली मेहनत और समय की बचत होगी, लेकिन मुनाफा ज्यादा होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा विज्ञानियों का कहना है कि कृषि क्षेत्र में आजकल ऐसी तकनीकों की कमी नहीं है जिससे खेती अब पहले की तुलना में काफी आसान हो गई है। खास बात यह है कि नई तकनीक आर्थिक दृष्टि से तो लाभप्रद है ही, पर्यावरण की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद है। कृषि शब्दावली में ऐसी तकनीक को संरक्षण कृषि (कंजर्वेशन एग्रीकल्चर) के नाम से जाना जाता है।

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    उठी हुई क्यारी पर बोआई

    इस तकनीक का इस्तेमाल रबी मौसम की सभी फसलों के लिए किया जा सकता है। खासकर गेहूं और चने की फसल के लिए यह विधि काफी उपयोगी है। इस विधि की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें एक साथ गेहूं और गन्ने की खेती की जा सकती है। इससे खेत खाली रहने की समस्या से निजात मिल जाएगी। इस तकनीक में मशीन से जुताई और बोआई होती है।

    इस तरह करें खेती

    इसमें उठी हुई क्यारियों के बीच एक नाली बनाई जाती है। एक क्यारी में गेहूं के पौधा के लिए 15-15 सेंटीमीटर की दूरी पर तीन लाइन बनाई जाती है। खेत में लगी गेहूं की फसल के बीच फरवरी के महीने में क्यारी के बीच बनाई गई नाली में गन्ने लगाई जा सकती है। इससे गेहूं की कटाई के उपरांत और गन्ने की फसल लगाने के बीच में खेत के खाली रहने की समस्या से निजात तो मिलती ही है, साथ ही इस बीच की जुताई, सिंचाई भी नहीं करनी पड़ती है।

    लेजर लेवलर तकनीक

    इस तकनीक में खेत को लेजर तकनीक के इस्तेमाल से पूरी तरह समतल किया जाता है। उसके बाद खेत के प्रत्येक हिस्से में समान रूप से पानी और खाद की मात्रा पहुंचती है। इससे फसल की परिपक्वता में भी एकरूपता होती है और पैदावार भी समान रहता है। खास बात यह है इस तकनीक में एक बार खेत के समतलीकरण करने के बाद यह तीन वर्ष तक प्रभावी रहती है। इस विधि के इस्तेमाल से सिंचाई में 25 से 30 फीसद पानी की बचत होती है। वहीं, उपज की बात करें तो गेहूं में 15 फीसद, धान में 26 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है।

    जीरो सिडिल तकनीक

    धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल लगाने के लिए किसानों को खेत तैयार करने में काफी परेशानी होती है। परंपरागत रूप से फसल की कटाई के उपरांत कई बार जुताई की जाती है, उसके बाद बुवाई होती है, लेकिन जीरो सिडिल तकनीक में विशेष मशीन के सहारे बुवाई होती है। इस तकनीक के तहत खेत में लगी धान की फसल की कटाई के साथ ही गेहूं की बोआई हो जाती है। इस तकनीक के कई फायदे हैं। पहली बात तो यह कि इससे समय की बचत के साथ-साथ पानी, जुताई, जुताई में लगने वाला ईंधन सभी की बचत होती है। खास बात यह है कि मशीन द्वारा कटाई के बाद धान की फसल की जो ठूंठ खेत में रह जाती है, वह सड़ने के बाद खाद का काम करता है।