बढ़ते प्रदूषण से सांस के मरीजों की हालत हुई बदतर, शहर छोड़ने की कर रहे तैयारी; पढ़ें क्या कह रहे दिल्लीवासी
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण ने सांस के मरीजों की हालत बद से बदतर कर दी है। सांस लेने में तकलीफ आंखों में जलन और लगातार बेचैनी के कारण कई लोग शहर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। प्रदूषण से बचने के लिए लोग कोटा अहमदाबाद नागपुर पुणे हैदराबाद गोवा बेंगलुरू पांडिचेरी और कोचीन जैसे शहरों का रुख कर रहे हैं।
रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। दम घुटती सांसें, जलती आंखें और हर पल बेचैन करने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की हवा में घुला जहर अपने ही देश में लोगों को दूसरे राज्यों की तरफ कदम बढ़ाने पर मजबूर कर रहा है। बच्चे और बुजुर्गाें के स्वास्थ्य पर खासा असर डाल रहे प्रदूषण को देखते हुए दिल्लीवासी अब प्रदूषण प्रवासी बनने को मजबूर हाे रहे हैं।
आइटीओ चौराहे पर अपनी कैब का इंतजार कर रही वास्तुविद अंकिता ने बताया कि वो बीते कई वर्षों से दिल्ली में रह रही हैं। वो बताती हैं कि बीते वर्ष अस्थमा की बीमारी पता चलने के बाद उनको अब यहां रहने में ज्यादा दिक्कत हो रही है। सांस लेने में तकलीफ के साथ-साथ आंख भी जलन से दर्द होने लगी है। ऐसे में उन्होंने अपनी सेहत को ध्यान में रखते शहर छोड़ने का विकल्प ही सही समझा है। वो अब कुछ दिनों में अपना सारा समान लेकर नागपुर जाएंगी और वहीं से काम करेंगी।
प्रदूषण से बच्ची के स्वभाव पर पड़ रहा असर
करोल बाग में रहने वाली निशी ने बताया कि उनकी पांच वर्ष की बेटी को बीते वर्ष फेफड़े की समस्या शुरू हुई थी। दिल्ली में प्रदूषण देखकर एक-एक दिन उनको कचोटता था। वो बताती हैं कि उनकी बेटी मुरझाएं जा रही थी। वह पार्क में खेलने नहीं जा सकती थी, क्योंकि हवा में प्रदूषण बहुत ज्यादा था। धीरे-धीरे वो एक खुशमिजाज बच्ची से, चिड़चिड़ी और जिद्दी हो गई थी। ऐसे में उन्होंने और उनके पति ने बेटी के लिए शहर छोड़ना ही सही समझा और दोनों पति-पत्नी अपनी बेटी के साथ कोटा में रहने चले गए। उन्होंने कहा कि यहां उनका भाई और भाभी पहले से ही रहते थे। ऐसे में घर खोजने या नौकरी तलाशने में ज्यादा समस्या नहीं आई थी।
कई लोग अपने मूल गृह स्थान की ओर निकले
प्रदूषण के चलते शहर छोड़ने वालों में ये अकेले ही नहीं हैं। दिल्ली में छोटे बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों वाले कई ऐसे परिवार हैं, जो स्वस्थ जीवन जीने के लिए अपने अच्छे-खासे करियर को जोखिम में डालकर देश के विभिन्न हिस्सों में या तो जा चुके हैं या फिर जाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि प्रदूषण के दंश से पीछा छुड़ा सके। कोटा, अहमदाबाद, नागपुर, पुणे, हैदराबाद, गोवा, बेंगलुरू, पांडिचेरी और कोचीन जैसे शहर नौकरीपेशा के लिए लोकप्रिय विकल्प बन गए हैं। वहीं, कई अपने मूल गृह स्थान ही चले गए हैं।
दिल के मरीज के लिए हवा खतरनाक
पीआर कंसल्टेंट शालिनी से जब उनकी शहर छोड़ने की वजह के बारे में पूछा तो उन्होंने पूछा कि गैस चैंबर में आखिर कौन ही रहना चाहता है? उन्होंने बताा कि उनके लिए शहर छोड़ने का निर्णय मुश्किल था, लेकिन जब उनके माता-पिता की प्रदूषण से खराब हुई सेहत नियमित दवा के बावजूद ठीक नहीं हुई तो वो पुणे शिफ्ट हो गई। उन्होंने बताया कि उनकी मां दिल की बीमारी की मरीज हैं। ऐसे में वो कार्डियोलाजिस्ट के पास ले जाने में अपना अधिकांश समय बिताती थीं। उन्होंने कहा कि उन्होंने हर संभव उपाय जैसे एयर प्यूरीफायर, ऑक्सीजन मास्क और इनडोर प्लांट आजमाया, लेकिन समस्या ठीक नहीं हुई।
एक निजी कंपनी में वित्तीय लेखाकार अक्षय सिंह ने बताया कि 10 वर्षों से दिल्ली में रह रहे थे। लेकिन तीन वर्ष पहले उनकी पत्नी को सांस लेने में काफी दिक्कत होने लगी। उसे घरघराहट, खांसी और फेफड़ों में जलन की शिकायत थी। अपनी पत्नी को पीड़ित देखकर अक्षय ने दिल्ली से बाहर नौकरी के अवसरों की तलाश शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि दिल्ली की जहरीली हवा ने उनकी पत्नी की हालत और खराब कर दी थी। बीते वर्ष अप्रैल माह में दोनों बेंगलुरु शिफ्ट हो गए।
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