दिल्ली में IAS अफसरों के दो कैडरों में टकराव, DASS और DANICS के बीच शुरू हुई वर्चस्व की जंग!
दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे में दास कैडर और दानिक्स कैडर के बीच 217 पदों को लेकर विवाद है। दास कैडर के अधिकारियों का कहना है कि वे वर्षों से प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं और अब उनके सेवानिवृत्त होने में कुछ ही समय बचा है। वहीं दानिक्स अधिकारियों का कहना है कि ये पद उनके कैडर के लिए बनाए गए हैं।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार में प्रशासनिक ढांचे में आइएएस अधिकारियों के बाद दानिक्स कैडर और फिर दास कैडर आता है। दास कैडर को सरकार के प्रशासनिक ढांचे की रीढ़ माना जाता है।
मगर इन दोनों कैडर के बीच वर्चस्व की लड़ाई के चलते सरकार के 217 पदों को लेकर विवाद हो रहा है। दास (दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन सबोर्डिनेट सर्विस) अधिकारियों के संगठन ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है।
दास कैडर ने की ये मांग
पत्र लिखने वाले दास ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप कुमार मिश्रा का तर्क है कि वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे वरिष्ठ अफसरों को अब प्रमोशन मिलना जरूरी है, खासकर तब जब उनके सेवानिवृत्त होने में कुछ ही समय बचा है। जबकि इस मामले में सभी कुछ प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
वह कहते हैं कि किसी अन्य कैडर को इसमें परेशानी नहीं होनी चाहिए। उधर दानिक्स दिल्ली (अंडमान एंड निकोबार आइसलैंड्स सिविल सर्विस) अधिकारी इनकी मांग का विरोध कर रहे हैं।
प्रमोशन से जुड़ा है मामला
दरअसल विवाद की जड़ 2023 में हाईकोर्ट के एक फैसले से जुड़ी है, अदालत ने प्रमोशन पाए हुए इन दास अधिकारियों के लिए 217 नए पद सृजित करने की अनुमति दी थी, मगर इस फैसले के खिलाफ दानिक्स अधिकारियों ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (सीएटी) में याचिका दाखिल कर दी।
रेखा गुप्ता सरकार की योजना पर पड़ सकता है असर
उनका कहना था कि ये पद दास कैडर के लिए नहीं, बल्कि उनके कैडर के लिए बनाए गए हैं। तभी से यह मामला लटका हुआ है। इस पूरे विवाद के बीच दिल्ली में नई बनी रेखा गुप्ता सरकार की योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
सरकार ने कई विकास योजनाएं शुरू की हैं, जिन्हें लागू करने के लिए अनुभवी और जिम्मेदार अधिकारियों की जरूरत है, ऐसे में ये पद काफी अहम हो जाते हैं।
दास कैडर की स्थापना वर्ष 1967 में हुई थी, दास अधिकारियों का कहना है कि पिछले पांच दशकों से उनके कैडर की समीक्षा नहीं की गई है, जबकि नियम के अनुसार हर पांच साल में समीक्षा होनी चाहिए थी।
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