Heatwave: गर्मियों में सबसे ज्यादा तपने वाले शहर ही बचाव के प्रति लापरवाह, SFC रिपोर्ट में देखें शहरों की लिस्ट
एसएफसी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ये शहर हीटवेव से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपायों के बजाय अल्पकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रभावी दीर्घकालिक रणनीतियों के अभाव में भविष्य में लगातार तीव्र और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी से संबंधित अधिक मौतें होने की संभावना है। शहरों की लिस्ट यहां देखें।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से अब भारतीय शहर भी अछूते नहीं हैं। इसके बावजूद बचाव के उपाय सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रह गए हैं। इससे ज्यादा हैरानी की बात क्या होगी कि भीषण गर्मी की मार सबसे ज्यादा झेलने वाले नौ शहर ही इससे बचाव के प्रति लापरवाह बने हुए हैं।
एसएफसी की रिपोर्ट में दावा
शोध संगठन सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (एसएफसी) की एक अध्ययन रिपोर्ट इस पर विस्तार से प्रकाश डालती है। बुधवार को जारी इस रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है कि गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले शहर इसके खतरों से निपटने के लिए क्या उपाय कर रहे हैं।
भीषम गर्मी की चपेट में आने वाली शहर
अध्ययन में नौ प्रमुख शहरों को शामिल किया गया है, जैसे कि बेंगलुरु, दिल्ली, फरीदाबाद, ग्वालियर, कोटा, लुधियाना, मेरठ, मुंबई और सूरत। इन शहरों में भारत की शहरी आबादी का 11% से अधिक हिस्सा रहता है (जनगणना 2011 के अनुसार)। इनमें से कुछ शहर भविष्य में गर्मी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। यह विभिन्न भारतीय शहरों में गर्मी शमन उपायों के कार्यान्वयन का आकलन करने वाली पहली रिपोर्ट है।
गर्मी से बचने के लिए दीर्घकालिक उपाय नहीं
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सभी नौ शहर हीटवेव से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपायों के बजाय अल्पकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, दीर्घकालिक उपाय काफी दुर्लभ हैं और उनके लक्ष्य भी शहरों के अनुसार भौगोलिक रूप से ठीक से निर्धारित नहीं किए गए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रभावी दीर्घकालिक रणनीतियों के अभाव में भविष्य में लगातार, तीव्र और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी से संबंधित अधिक मौतें होने की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी नियोजन सहित अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों ने अपनी नीतियों में गर्मी की चिंता को शामिल नहीं किया है।
बजट में अल्पकालिक उपायों का प्रबंधन
इन शहरों में गर्मी के प्रभावों को रोकने के बजाय उनके उपचार पर ध्यान दिया जाता है। शहर मौजूदा बजट से अल्पकालिक उपायों का प्रबंधन करते हैं। उनके पास संरचनात्मक परिवर्तनों के लिए भी धन की कमी है, जैसे शहर को ठंडा रखने के लिए बुनियादी ढांचा बदलना। स्थिति यह है कि यदि उपरोक्त राज्य प्रयास भी करते हैं, तो दीर्घकालिक उपायों को लागू करने में बहुत समय लगेगा।
रिपोर्ट से पता चलता है कि इन शहरों में जिला और राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे अल्पकालिक उपायों में केवल पीने के पानी की उपलब्धता, काम के शेड्यूल में समायोजन और गर्मियों में अस्पतालों की क्षमता बढ़ाना शामिल है।
यहां तक कि उनकी गर्मी कार्य योजनाओं में आपातकालीन उपाय भी शामिल नहीं हैं क्योंकि ये राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य विभागों द्वारा संचालित किए जाते हैं।
हालांकि उनकी योजनाओं में पेड़ लगाने और छतों पर सौर ऊर्जा जैसी पहलों का भी उल्लेख है, लेकिन इनसे गर्मी में काम करने वाले श्रमिकों को कोई लाभ नहीं होता है।
दीर्घकालिक समाधानों के लिए विशेषज्ञों की सलाह
अध्ययन में शामिल विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि सरकारें दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने और सबसे कमजोर क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कार्य योजना बना सकती हैं। राज्य सरकारें गर्मी के खतरों को कम करने और दीर्घकालिक समाधानों के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा कोष में निवेश कर सकती हैं।
विशेषज्ञों ने शहरों में एक मुख्य ताप अधिकारी की नियुक्ति करने की भी मांग की है, जिसके पास अत्यधिक गर्मी और लू से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए अधिकार और संसाधन होने चाहिए।
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