बच्चों में लगातार बुखार या वजन कम होना कैंसर के लक्षण, शोध में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
बच्चों में लगातार बुखार या वजन घटना कैंसर के लक्षण हो सकते हैं जिसे अक्सर टाइफाइड समझ लिया जाता है। कमजोरी बदन दर्द और पीली त्वचा भी संकेत हैं। भारत में बाल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं खासकर उत्तर भारत में। समय पर पता चलने और सही इलाज से यह ठीक हो सकता है।

मुहम्मद रईस, नई दिल्ली। अगर बच्चों को लंबे समय तक बुखार या वज़न कम हो रहा है, तो सतर्क हो जाइए। इसे अक्सर टाइफाइड समझ लिया जाता है, लेकिन ये कैंसर के लक्षण भी हो सकते हैं। इसके अलावा, कमज़ोरी, बदन दर्द, कमजोर हड्डियां, पीली त्वचा, आंखों में सफेद चमक और भेंगापन भी इसके लक्षण हैं। कैंसर बच्चों समेत सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है।
हालांकि, इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है। इंडियन कैंसर सोसाइटी के अनुसार, देश में हर साल बाल कैंसर के 50,000 से अधिक नए मामले सामने आते हैं। अगर समय रहते पता चल जाए और प्रभावी इलाज हो, तो यह ठीक हो सकता है।
अकेले राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र (RGCIRC), दिल्ली में ही हर साल बाल कैंसर के 15,000 से 20,000 मामले आते हैं, और ठीक होने की दर 50 से 60 प्रतिशत है। एम्स में हर साल आने वाले 400 से ज़्यादा मरीज़ों में से 65 प्रतिशत तक पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
इंडियन पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बाल कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर भारत में हैं। देश भर में 33 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों से 2012 से 2016 के बीच प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, उत्तर भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 156 लड़कों और 97 लड़कियों में कैंसर का निदान किया गया।
दक्षिण भारत में यह आंकड़े क्रमशः 122 और 92 थे। पूर्वोत्तर भारत में बच्चों में कैंसर की दर सबसे कम थी, जहाँ प्रति दस लाख जनसंख्या पर 47 लड़कों और 33 लड़कियों में कैंसर का निदान किया गया। 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2016 तक देश में कुल 430,091 कैंसर के मामले सामने आए।
इनमें से 215,726 पुरुष (50.2 प्रतिशत) और 214,365 महिलाएं (49.8 प्रतिशत) थीं। पुरुषों में कैंसर की दर प्रति 100,000 जनसंख्या पर 105.5 और महिलाओं में 104.5 थी। कुल कैंसर के मामलों में से 8,692 (2 प्रतिशत) बाल कैंसर के थे। इनमें से 5,365 लड़के (61.7 प्रतिशत) और 3,327 लड़कियाँ (38.3 प्रतिशत) थीं।
ठीक हुए बच्चों के स्वास्थ्य का होगा अध्ययन
बच्चों में ल्यूकेमिया, लिंफोमा और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) ट्यूमर सबसे आम मामले हैं। न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर, सॉफ्ट टिशू सार्कोमा, अस्थि कैंसर और रेटिनोब्लास्टोमा के मामले भी सामने आ रहे हैं। 2016 में, एम्स ने एक कैंसर सर्वाइवर रजिस्ट्री शुरू की, जिसमें अब तक 2,000 से ज़्यादा बच्चे शामिल हो चुके हैं। रजिस्ट्री में पंजीकृत कैंसर सर्वाइवर्स पर भविष्य के अध्ययन यह निर्धारित करने में मदद करेंगे कि बच्चे कितने समय तक स्वस्थ रहते हैं।
जीवित रहने की दर में 60 प्रतिशत की होगी बढ़ोतरी
2018 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राज्य अमेरिका के सेंट जूड चिल्ड्रन्स रिसर्च हॉस्पिटल ने ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर चाइल्डहुड कैंसर (GICC) की शुरुआत की। इसका लक्ष्य 2030 तक दुनिया भर में कैंसर से पीड़ित बच्चों की जीवित रहने की दर को 60 प्रतिशत तक बढ़ाना है, साथ ही उनकी पीड़ा को कम करना और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
बच्चों का शरीर अभी भी विकसित हो रहा है। इस वजह से, कैंसर उपचार के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देता है। समय पर निदान और उचित उपचार से कैंसर पूरी तरह ठीक हो जाता है। परिणामस्वरूप, बच्चों में कैंसर के दोबारा होने का जोखिम नगण्य होता है।
-डॉ. कपिल गोयल, कैंसर विशेषज्ञ, आरजीसीआईआरआरसी-दिल्ली।
इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें
- बिना किसी स्पष्ट कारण के वज़न कम होना।
- सुबह बार-बार उल्टी के साथ सिरदर्द।
- हड्डियों, जोड़ों, पीठ या पैरों में सूजन बढ़ना या लगातार दर्द होना।
- पेट, गर्दन, छाती, श्रोणि या बगल में गांठें।
- आंख की पुतली में सफेदी या दृष्टि में परिवर्तन।
- संक्रमण के कारण न होने वाला बार-बार बुखार।
क्षेत्रवार प्रति मिलियन जनसंख्या पर बाल कैंसर दर
क्षेत्र | लड़के | लड़कियां |
---|---|---|
उत्तर | 156 | 97.1 |
दक्षिण | 122 | 92.4 |
मध्य | 97 | 64.2 |
पश्चिम | 75.6 | 54.1 |
पूर्व | 60.6 | 54.2 |
पूर्वोत्तर | 47.3 | 33.6 |
(स्रोत: इंडिया पीडियाट्रिक्स)
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