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    जलवायु परिवर्तन ने बदली बादलों की प्रकृति, बदला बारिश का पैटर्न; भूजल स्तर और कृषि हो रही प्रभावित

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 06:59 AM (IST)

    वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले ढाई दशकों में बादलों के गरजने छाने और बदलने का तरीका बदला है। पहले अल्टो स्ट्रेटस बादल बनते थे जो रुक-रुक कर बरसते थे लेकिन अब थंडर क्लाउड बन रहे हैं जो अचानक और तेज़ी से बरसते हैं। इससे भूजल स्तर और कृषि प्रभावित हुई है और मानसून में उमस बढ़ गई है।

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    जलवायु परिवर्तन ने बदली बादलों की प्रकृति, बदला वर्षा का पैटर्न

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के असर से बादलों की प्रकृति भी पहले जैसी नहीं रही। खासकर पिछले ढाई दशक के दौरान बादलों के गरजने, छाने एवं बदलने का स्वरूप बहुत हद तक बदल गया है। इससे भूजल का स्तर, खेतीबाड़ी और सुहाने मौसम का अनुभव... सभी कुछ बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है।

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    स्काईमेट वेदर के अनुसार तकरीबन ढाई दशक पहले जो बादल बनते थे, वो अल्टो स्ट्रेटस होते थे। इनमें अपेक्षाकृत एकरूपता होती थी और वो रुक रुककर समूची दिल्ली में बरसते थे। वर्षा भी कई- कई दिनों तक चलती रहती थी। लेकिन अब थंडर क्लाउड बनने लगे हैं। इसमें समानता नहीं होती।

    इनमें पानी सोखने की क्षमता भी काफी कम होती है। इसीलिए ऐसे बादल एकाएक छाते हैं, गरजते हैं और फिर कुछ ही घंटों में बरस भी जाते हैं। कई दिन की वर्षा भी एक साथ कर देते हैं। हैरत की बात यह कि कुछ इलाकों में अत्यधिक वर्षा हो जाती है तो कुछ में सामान्य वर्षा का आंकड़ा भी नहीं हो पाता पूरा।

    विशेषज्ञों के अनुसार बादलों की प्रकृति बदलने और वर्षा का पैटर्न भी पहले जैसा नहीं रहने से मानसून सीजन का एहसास और नफा-नुकसान भी बदला है। अब इस सीजन में भी सुहाना मौसम कम जबकि उमस ज्यादा बनी रहती है। दिनों की वर्षा घंटों में हो जाने से ना भूजल रिचार्ज हो पाता है और न खेतीबाड़ी में सिंचाई के ही काम आ पाता है।

    25 साल पहले वर्षा के पैटर्न में ज्यादा एकरूपता थी। सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में ज्यादा वर्षा होती थी जबकि राजस्थान और गुजरात जैसे इलाके अपेक्षाकृत सूखे रहते थे। पहले रिमझिम वर्षा तीन-तीन, चार-चार दिन तक लगातार होती थी। लेकिन, धीमी गति से और देर तक बरसने वाले अल्टो स्ट्रेटस बादल बनना अब कम हो गए हैं। अब इनकी बजाय थंडर क्लाउड अधिक बनते हैं। ये क्लाउड एक बार में बहुत ज्यादा वर्षा देते हैं। पहले जो वर्षा तीन-चार दिन में होती थी अब तीन-चार घंटे में ही हो जाती है। -महेश पलावत, उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन), स्काईमेट वेदर

    अल्टो स्ट्रेटस बादल और थंडर क्लाउड में तकनीकी अंतर

    अल्टो स्ट्रेटस बादल शांत, स्थिर मौसम में फैले हुए और परतदार बादल होते हैं। इसके विपरीत थंडर क्लाउड गरज, बिजली और भारी वर्षा के साथ शक्तिशाली और ऊर्ध्वाधर बादल होते हैं।

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