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    मस्तिष्क चिकित्सा में अहम कदम, न्यूरॉन्स को पुनर्जीवित कर नर्वस सिस्टम पर हुआ लकवा हो सकेगा ठीक

    By joohi dass Edited By: Geetarjun
    Updated: Mon, 15 Jul 2024 08:16 PM (IST)

    Brain Therapy ब्रेन की कोशिकाओं के न्यूरॉन्स नष्ट होने पर ही व्यक्ति दिव्यांग या लकवाग्रस्त रह जाता है लेकिन अब इसका भी इलाज संभव है। नेशनल ब्रेन एंड रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) के विज्ञानियों ने चूहों और वाम (निमाटोड) पर शोध कर उनके न्यूरॉन को पुनर्जीवित करने में सफलता प्राप्त की है। छह सालों से यह शोध चल रहा था।

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    न्यूरॉन्स को पुनर्जीवित कर मस्तिष्क चिकित्सा में बढ़ाया अहम कदम।

    जूही दास, गुरुग्राम। नर्वस सिस्टम पर चोट लगने, ब्रेन हेमरेज व अन्य वजहों से होने वाला लकवा अब ठीक किया जा सकेगा। नेशनल ब्रेन एंड रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) के विज्ञानियों ने चूहों और वाम (निमाटोड) पर शोध कर उनके न्यूरॉन को पुनर्जीवित करने में सफलता प्राप्त की है। शोधकर्ताओं ने इंसुलिन सिग्नलिंग और मालिक्यूलर क्लाक ठीक करने के साथ ही माइक्रो आरएनए पर काम किया। कोशिकाओं के नष्ट हुए न्यूरॉन्स में 50 प्रतिशत जीवित हो गए।

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    बता दें कि ब्रेन की कोशिकाओं के न्यूरॉन्स नष्ट होने पर ही व्यक्ति दिव्यांग या लकवाग्रस्त रह जाता है। एनबीआरसी में 10 लोगों की टीम ने लंबे समय तक न्यूरॉन्स के पुनर्जीवन पर शोध किया। एक उम्र के बाद नष्ट न्यूरॉन्स ठीक नहीं हो पाते हैं। टीम में इस प्रक्रिया को निदान निकालने के लिए शोध किया। निष्कर्ष निकाला कि मालिक्यूलर क्लाक को ठीक करने से ब्रेन सेल्स को दोबारा उत्पन्न करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। लेट-7 माइक्रोआरएनए और इंसुलिन सिग्नलिंग (आइएस) से भी रिजरेशन में मदद करता है। तीसरा एम काइनेस है। इन तीनों को सममिश्रण करके ब्रेन के न्यूरोंस को दोबारा उत्पन्न कर सकते हैं।

    स्टेम सेल में कृत्रिम रूप से बनाया न्यूरॉन

    एनबीआरसी के एसोसिएट प्रोफेसर अनिंद्य घोष राय ने बताया कि मनुष्य में सीधे ट्रायल नहीं किया जा सकता, इसलिए कृत्रिम रूप से स्टेम सेल में न्यूरॉन्स बनाए गए। एक विदेशी एजेंसी के साथ मिलकर किए जाने वाले इस शोध में स्टेम सेल में इंजरी करते हुए पैरालिसिस किया जाएगा। फिर उपरोक्त विधि से न्यूरान को फिर से जीवित किया जाएगा।

    इस संसाधनों का किया उपयोग

    माइक्रोस्कॉप

    मालिक्यूलर बायोलॉजी

    माइक्रो बायोलॉजी

    जेनेटिक्स

    छह सालों से चल रहा शोध

    एनबीआरसी के एसोसिएट प्रोफेसर अनिंद्य घोष राय बताते हैं कि छह सालों से यह शोध चल रहा है। सबसे पहले लेट-7 माइक्रोआरएनए पर शोध किया गया, इसमें 50 से 60 प्रतिशत सुधार देखा गया। वहीं इंसुलिन सिग्नलिंग (आइएस) में 50 प्रतिशत और एम काइनेस (फिजिकल एक्सरसाइज) 40 प्रतिशत न्यूरान बनने शुरू हुआ।

    मनुष्य में शोध की योजना

    शोधकर्ता की मानें तो जल्द ही मनुष्य पर भी यह शोध किया जाएगा। स्टेम सेल में तीनों मेकानिज्म को लागू कर शोध जारी है। इसके बाद मनुष्य पर यह शोध किया जाएगा, क्योंकि स्टेम सेल सीधे मनुष्य में इनजेक्ट हो सकता है। यह प्रक्रिया सफल रही तो मनुष्य में ब्रेन स्ट्रोक, पैरालिसिस जैसे गंभीर बीमार में न्यूरान्स पुनर्जीवित पर ठीक किया जा सकता है।

    क्या है निमेटोड

    निमेटोड यानी सूत्रकृमि पतले धागे के समान पारदर्शी होते है। शरीर लंबा बेलनाकार व पूरा शरीर बिना खंडों का होता है। फसल के लिए यह परजीवी की तरह होता है, जो मिट्टी या पौधे की उतकों में रहते हैं और जड़ों पर आक्रमण करते हैं।

    लेट-7 माइक्रोआरएनए- यह एक आरएनए मालिक्यूलर है। यह मनुष्य के अंदर के जीन एक्सप्रेशन को कंट्रोल करता है। लेट-7 ऐसा मैकेनिज्म है। जो कई सारे जींस का एक्सप्रेस कर सकती है। तो जीन एक्सप्रेशन को बदलकर यह रिजरेशन में उपयोगी साबित हो सकता है।

    इंसुलिन सिग्नलिंग (आइएस)- इसे सिग्नलिंग कैसकेट ( प्रोटीन को एक्टिवेट करने का काम )कहा जाता है। शरीर के अंदर इंसुलिन होता है। इंसुलिन रिफेक्टर से बाइन करता है। तो कई सारे सिग्नलिंग कैसक्रेट टार्नोन (सक्रिय) हो जाते है। इसकी वजह से भी जीन एक्सप्रेशन चेंज कर रिजरेशन में फायदा मिलता है।

    एम काइनेस- ऐसी एक सिग्नलिंग है। जब फिजिकल एक्सरसाइज करते समय शरीर के अंदर एनर्जी मालिक्यूल एटीपी लेवल डाउन हो जाता है। इसके बाद एम काइनेस एक्टिवेट हो जाता है। एम काइनेस एडेनोसिन ट्राइफास्फेट (एटीपी) जो प्रत्येक जीवित कोशिका के लिए ऊर्जा का स्रोत है। लेवल को मानिटर करता है। वह जीन एक्सप्रेशन में बदलाव करने में मदद करती है।