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दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेलेबस से हटेगी नक्सलवाद को जायज ठहराने वाली किताब!

दोनों किताबों पर सितंबर में होने वाली अकादमिक परिषद की बैठक में फैसला होगा और इसके बाद मामला कार्यकारी परिषद के पास जाएगा। इसके बाद ही इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 31 Aug 2018 10:14 AM (IST)Updated: Fri, 31 Aug 2018 12:27 PM (IST)
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेलेबस से हटेगी नक्सलवाद को जायज ठहराने वाली किताब!
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेलेबस से हटेगी नक्सलवाद को जायज ठहराने वाली किताब!

नई दिल्ली (जेएनएन/राहुल मानव)। बिहार के बस्तर में नक्सलवाद और जनजातीय धर्मांतरण पर आधारित दो किताबों को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की स्थायी समिति ने इतिहास विभाग के पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश की है। इनमें डीयू की समाजशास्त्र की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर की किताब ‘सबाल्र्टनस एंड सॉवरेंस : एन एंथ्रोपोलॉजिकल हिस्ट्री ऑफ बस्तर (1854-2006)’ और जेएनयू के सेंटर फॉर इनफार्मल सेक्टर एवं लेबर स्टडीज की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद की किताब ‘अगेंस्ट इकोलॉजिकल रोमांटिसिज्म वेरियर एल्विन एंड द मेकिंग ऑफ एन एंटी मॉडर्न ट्राइबल आइडेंटिटी’ किताब शामिल है।

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इन दोनों किताबों पर सितंबर में होने वाली अकादमिक परिषद की बैठक में फैसला होगा और इसके बाद मामला कार्यकारी परिषद के पास जाएगा। इसके बाद ही इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। अकादमिक मामलों की स्थायी समिति के सदस्य रबींद्रनाथ दुबे ने कहा कि स्नातक व परास्नातक पाठ्यक्रमों में विवादित किताबों को कोर्स में शामिल करना सही नहीं। हम राष्ट्रविरोधी किताबों को नामंजूर करेंगे।

वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्थायी समिति की बैठकों में काफी हंगामा हो रहा है। प्रोफेसरों के बीच बहस शुरू हो गई है कि पश्चिमी सभ्यता पर आधारित किताबों को ही डीयू के पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए या भारतीय परंपरा पर आधारित इतिहास की किताबों को शामिल किया जाए। प्रोफेसर अपनी विचारधारा से प्रेरित होकर भी कई किताबों को प्रस्तावित कर रहे हैं। स्थायी समिति के सदस्य रबींद्रनाथ दुबे ने कहा कि डीयू के पाठ्यक्रम में पश्चिमी सभ्यता पर आधारित किताबों को शामिल किया जाता रहा है। इतिहास और अन्य विभागों में भारत की विविधता से जुड़ी शानदार किताबों को भी शामिल किया जाना चाहिए। दुबे ने कहा कि च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) के तहत अर्थशास्त्र और भाषा विभाग के प्रोफेसरों ने पाठ्यक्रम को तैयार ही नहीं किया है। वहीं समाज शास्त्र, राजनीतिक शास्त्र एवं इतिहास विभाग ने भी सीबीसीएस के तहत पाठ्यक्रम को तैयार नहीं किया। उन्हें फिर से इसे तैयार करने को कहा गया है। यूजीसी के नियम के अनुसार भी ऐसा जरूरी है।

विवादित किताब हटाने का फैसला कार्यकारी परिषद में होगा

डीयू के कार्यकारी परिषद के सदस्य प्रो. अजय भागी ने कहा कि कुछ प्रोफेसर विवादित किताबों को इतिहास के पाठ्यक्रम के कोर पेपर में अनिवार्य रूप से पढ़ाना चाहते हैं, जोकि सही नहीं है। इन किताबों को हिस्ट्री ऑनर्स के स्नातक पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश स्थायी समिति ने की है। सितंबर में यह मामला अकादमिक परिषद में और उसके बाद कार्यकारी परिषद में जाएगा। कार्यकारी परिषद के पास प्रशासनिक मुद्दों पर अन्य समितियों की ओर से मिली किसी भी सिफारिश को मंजूर व नामंजूर करने का अधिकार है। वह स्थायी समिति की सिफारिश को या तो मंजूर, नामंजूर या वापस अकादमिक परिषद के पास भेज सकता है।


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