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    Delhi: ब्लड सैंपल से हो सकेगी ब्रेन कैंसर की जांच, शुरुआती स्टेज में बीमारी की पहचान कर होगा इलाज

    By Jagran NewsEdited By: Abhi Malviya
    Updated: Sun, 21 May 2023 07:43 PM (IST)

    गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने शोध कर ब्लड में मौजूद एक विशेष प्रकार के प्रोटीन (ग्लैक्टिन-3 बाइंडिंग प्रोटीन) की पहचान की है जिससे मस्तिष्क के कैंसर ...और पढ़ें

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    जांच की इस तकनीक से यह भी पता चल सकेगा ब्रेन का कैंसर किस स्टेज का है।

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने शोध कर ब्लड में मौजूद एक विशेष प्रकार के प्रोटीन (ग्लैक्टिन-3 बाइंडिंग प्रोटीन) की पहचान की है, जिससे मस्तिष्क के कैंसर (ब्रेन ट्यूमर) की पहचान की हा सकती है। इसलिए ब्लड सैंपल से ही ब्रेन ट्यूमर की जांच आसानी से की जा सकेगी।

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    खास बात यह है कि जांच की इस तकनीक से यह भी पता चल सकेगा ब्रेन का कैंसर किस स्टेज का है। इससे मरीजों के इलाज में मदद मिलेगी। शुरुआती स्टेज में ही बीमारी की पहचान कर जल्दी इलाज हो सकेगा। इसके मद्देनजर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर जांच के लिए किट तैयार करने में जुट गए हैं।

    आईसीएमआर जारी किया फंड

    अस्पताल के शोध विभाग की विशेषज्ञ डॉ. रश्मि राणा ने बताया जांच की इस तकनीक को पेटेंट कराया गया है। इसके बाद जांच किट तैयार करने के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने गंगाराम अस्पताल को फंड जारी किया है। इसलिए जांच किट तैयार करने पर शोध चल रहा है। जल्द ही जांच किट तैयार कर ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा।

    उन्होंने बताया कि 40 प्रतिशत ब्रेन ट्यूमर प्राथमिक होता है, जिसमें से 70 प्रतिशत ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क कैंसर युक्त होते हैं। मस्तिष्क कैंसर से पीड़ित ज्यादातर मरीज ग्लियोमा ट्यूमर से पीड़ित होते हैं। सामान्य तौर पर सीटी स्कैन व एमआरआई जांच से ब्रेन ट्यूमर की जांच की जाती है, लेकिन सर्जरी के बाद बायोप्सी जांच से ही पता चलता है कि ब्रेन ट्यूमर किस स्टेज का है।

    ग्लियोमा ट्यूमर के मरीजों की मृत्यु दर बहुत अधिक

    ग्लियोमा ट्यूमर से पीड़ित मरीजों में मृत्यु दर बहुत अधिक है, क्योंकि बीमारी बहुत देर से पता चलती है। इस वजह से इस बीमारी से पीड़ित मरीज छह से 15 माह ही बच पाते हैं। इलाज के बेहतर परिणाम के लिए बीमारी की जल्दी पहचान आवश्यक है।

    इसलिए वर्ष 2017 में ब्लड से ब्रेन ट्यूमर की जांच के लिए शोध शुरू किया गया। इसके तहत 40 मरीजों के ब्लड का सैंपल लेकर प्लाज्मा अलग किया गया और कई तरह के प्रोटीन की पहचान की गई। इसी क्रम में गैलेक्टिन-3 बाइंडिंग प्रोटीन की भी पहचान की गई।

    शोध में पाया गया कि ग्लियोमा ट्यूमर होने पर ब्लड में इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। शोध में यह भी देखा गया कि जैसे-जैसे यह बीमारी एक स्टेज से दूसरे, तीसरे और फिर चौथे (एडवांस स्टेज) में बढ़ती जाती है इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ती जाती है। लिहाजा इस जांच से बीमारी के स्टेज का पता भी लगाया जा सकता है।

    ब्रेन ट्यूमर होने पर उल्टी, आंख की रोशनी धुंधली होना, सिर दर्द, दौरे पड़ना इत्यादि इसके लक्षण होते हैं। उन लक्षणों के आधार पर ब्लड जांच कराकर शुरुआती स्टेज में भी ग्लियोमा ट्यूमर की पहचान कर कीमोथेरेपी शुरू की जा सकती है। उन्होंने बताया कि यदि शुरुआती स्टेज में मरीजों को इलाज मिले तो ज्यादातर मरीज ठीक हो सकते हैं।