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    बिहार के मलखाचक गांव गौरवपूर्ण है इतिहास, क्या दो बहादुर बेटियों की कहानी जानते हैं आप

    बिहार के दिघवारा क्षेत्र में एक गांव है -मलखाचक। इस गांव ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। आल्हा-ऊदल के समकालीन मलखा कुंवर राजस्थान से चलकर पटना आए थे वहां से गंगा तैरकर दिघवारा। मलखाचक गांव उन्होंने ही बसाया था यानी गांव के साथ शौर्य की परंपरा पहले से ही जुड़ी थी।

    By GeetarjunEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2022 05:21 PM (IST)
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    बिहार के मलखाचक गांव गौरवपूर्ण है इतिहास, क्या दो बहादुर बेटियों की कहानी जानते हैं आप

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। बिहार के दिघवारा क्षेत्र में एक गांव है -मलखाचक। इस गांव ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। आल्हा-ऊदल के समकालीन मलखा कुंवर राजस्थान से चलकर पटना आए थे, वहां से गंगा तैरकर दिघवारा। मलखाचक गांव उन्होंने ही बसाया था यानी गांव के साथ शौर्य की परंपरा पहले से ही जुड़ी थी।

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    1857 की क्रांति में भी इस गांव के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। फिर गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दिनों में एक ओर जहां इस गांव में चरखा चलता था तो दूसरी ओर अंग्रेजों से लडऩे के लिए बम भी बनते थे।

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    भारत छोड़ो आंदोलन में जुटे कई लोग

    1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के नौजवान और स्कूली छात्र-छात्राएं जुट गए थे। गांव के रामविनोद सिंह को 12 अगस्त को क्रांतिकारी गतिविधि के नेतृत्व के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था। 20 अगस्त को अंग्रेजों ने पूरे गांव को घेर लिया और रामविनोद सिंह के घर को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया।

    दोनों बेटियों ने उठाया नेतृत्व का बीड़ा

    परिवार के सदस्य बेघर होकर दाने-दाने को मोहताज हो गए। उनकी मदद करने वाले को गोली मारने का फरमान जारी कर दिया गया था। रामविनोद सिंह की दो लड़कियां थीं- शारदा और सरस्वती। इन दोनों किशोरी लड़कियों ने नेतृत्व का बीड़ा उठाया और उनके साथ मलखाचक गांव का बच्चा-बच्चा सड़कों पर निकल पड़ा। हर कोई शहादत को तैयार, अंग्रेज सरकार को जो करना हो, कर ले।

    11 और 14 साल की ये दोनों किशोरियां जान हथेली पर लेकर आगे आ गईं, तो गांववासी कैसे पीछे रहते। दोनों बहनें हाथ में झंडा लेकर दिघवारा थाने पर फहराने के लिए बढ़ीं और गिरफ्तार कर ली गईं। उनकी उम्र कम न होती तो उन्हें गोली मार दी गई होती। उन्हें उनकी उम्र के बराबर यानी 11 व 14 साल की सजा मिली। पिता पहले ही जेल में थे। दोनों बहनें खुशी-खुशी जेल गईं। हालांकि आजादी मिलते ही सभी क्रांतिकारी कैदियों को छोड़ दिया गया।

    विडंबना यह है कि मलखाचक गांव के सर्वाधिक लोग पीड़ित किए गए, सर्वाधिक बलिदान हुए, पर अंग्रेजों ने इसे अपने रिकार्ड में शामिल नहीं किया। शायद शर्म के कारण। परिणामत: दिघवारा प्रखंड में बने शहीद स्मारक में बीस स्वतंत्रता सैनिकों के नाम खुदे हैं, जिनमें मलखाचक गांव के एक भी शहीद का नाम नहीं है। बहुत दिनों बाद खोजकर्ता इस गांव की कुर्बानियों को सामने लाए, तब शारदा और सरस्वती भी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पहचानी गईं, अन्यथा दोनों अनचीन्ही रह जातीं।