Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राकेश टिकैत के करीबी किसान नेता के घर मिला यूपी गेट के 'आवारा' को ठिकाना

    पिछले एक साल से 24 घंटे यूपी गेट पर रहने वाला भूरा टाइगर किसान आंदोलन स्थगित होने के बाद उजड़ते धरना स्थल और हटाए जाते टेंट को लेकर बेचैन है लेकिन किसान नेता रविंद्र चौधरी ने उसकी बेचैनी दूर करने का निर्णय लिया है।

    By Jp YadavEdited By: Updated: Wed, 15 Dec 2021 04:59 AM (IST)
    Hero Image
    किसान आंदोलन से चर्चा में आए 'भूरा टाइगर' को मिला वफादारी का इनाम

    नई दिल्ली/गाजियाबाद, आनलाइन डेस्क। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से जारी किसान आंदोलनल अब स्थगित हो चुका है।  अगले कुछ दिनों में इन इलाकों में जिंदगी पुराने ढर्रे पर लौट आएंगी, लेकिन दिल्ली बार्डर पर किसान आंदोलन के दौरान अच्छे-बुरे अनुभव लोगों के जेहन में रह जाएंगे।  इस बीच पिछले एक साल से किसान आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल 'भूरा टाइगर' नाम का कुत्ता चर्चा में है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दरअसल, पिछले एक साल से 24 घंटे यूपी गेट  पर रहने वाला भूरा टाइगर किसान आंदोलन स्थगित होने के बाद उजड़ते धरना स्थल और हटाए जाते टेंट को लेकर बेचैन है। वह इधर-उधर घूमने के बाद वह किसान प्रदर्शनकारियों के पास जाता है। यह सिलसिला पिछले शुक्रवार के बाद से दिन में सैकड़ों बार चलता है।

    इस बीच भूरा टाइगर की इस बेचैनी को देखकर दरौला के किसान रविंद्र दौरालिया ने इस अपने साथ ले जाने के फैसला किया है। यहां पर बता दें कि रविंद्र चौधरी ने इस कुत्ते का भूरा टाइगर नाम दिया है। रविंद्र दौरालिया मेरठ के रहने वाले हैं और पिछले एक साल से किसान नेता राकेश टिकैत के साथ किसान आंदोलन में मजबूती से खड़े रहे।

     एक साल का साथ कैसे छोड़ दूं

    पिछले एक साल से भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत की अगुवाई में यूपी गेट पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल रविंद्र दौरालिया भावुक होकर कहते हैं- 'कैसे छोड़ दूं इस बेजुबान का साथ। एक साथ का साथ कम नहीं होता है। अब भूरा टाइगर के साथ एक अनजाना आत्मीय रिश्ता कायम हो गया है। इस दौरान जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ा भूरा टाइगर से लगाव बढ़ता गया।'

    किसान नेता रविंद्र दौरालिया का कहना है कि जब आंदोलन शुरू हुआ तब यह छोटा सा बच्चा था। जैसे-जैसे आंदोलन परवान चढ़ा भूरा भी पलता-बढ़ता गया। यह आंदोलन स्थल पर बने खाने को खाता था और वही पानी पीता था, जिसे हर आंदोलनकारी पीता था। जानवर है तो क्या हुआ, है तो यह जीव है। इसके भीतर दुख, दर्द और खुशी है। जब से यहां से टेंट हटने लगे हैं तो यह उदास रहने लगा। ऐसे में मैंने इसे अपने साथ ले जाने का फैसला किया है। 

    रविंद्र के बच्चे की तरह पला है भूरा

    दौराला के किसान रविंद्र चौधरी कहते हैं 'इसे मैंने अपने ही बच्चे की तरह पाला है। किसान आंदोलन के दौरान खाली समय में इसे ट्रेनिंग भी दी। उसी ट्रेनिंग का परिणाम है कि भूरा हमेशा उनके साथ ही रहता है। उनके टेंट में ही सोता था। गाजीपुर बार्डर पर साथ-साथ घूमता था।

    वहीं, अन्य किसान प्रदर्शनकारियों का कहना है कि भूरा टाइगर अपने मालिक रविंद्र दौरालिया की भाषा भी भली-भांति जानता और समझता है। इन दोनों में ऐसा रिश्ता कायम हुआ कि 380 दिन के बाद अब भी दोनों साथ-साथ ही रहेंगे। रविंद्र दौरालिया इस भूरा को अपने साथ गांव ही ले जाएंगे।