दिल्ली के इस मंदिर में 80 साल बाद भी महात्मा गांधी की छाप बरकरार
राष्ट्रपिता जहां भी जाते थे, वहां अपनी छाप छोड़ देते थे। ऐसी ही एक जगह है नई दिल्ली इलाके के मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर, जहां महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 214 दिन गुजारे थे। इस मंदिर में
नई दिल्ली (किशन कुमार)। राष्ट्रपिता जहां भी जाते थे, वहां अपनी छाप छोड़ देते थे। ऐसी ही एक जगह है नई दिल्ली इलाके के मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर, जहां महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 214 दिन गुजारे थे। इस मंदिर में 80 साल बाद भी उनकी छाप बरकरार है। महर्षि वाल्मीकि मंदिर के स्वामी कृष्णन शाह विद्यार्थी महाराज बताते हैं कि आजादी से पहले राष्ट्रपिता यहां पर एक अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच आते रहे। इस दौरान वह 214 दिन यहां रुके।
स्वामी ने बताया कि जब गांधी जी मंदिर में आए तो उन्होंने वाल्मीकि समाज के लोगों से यहां ठहरने की इजाजत मांगी। इस पर वाल्मीकि समाज के लोगों ने हामी भर दी। स्वामी ने बताया कि गांधी जी जिस कमरे में रुके थे, उसमें वाल्मीकि समाज के साधु-संत रहा करते थे। इसके साथ यहां एक स्कूल भी चलता था, जिसे देखकर गांधीजी ने भी बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जताई थी।
जब राष्ट्रपिता यहां रुके तो उन्होंने बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया। गांधीजी इस कमरे में बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा दिया करते थे। स्वामी ने गांधी जी की दिनचर्या के बारे में बताया कि वे बहुत ही सादगी वाले इंसान थे। प्रात:काल उठकर वह पहले पानी पीते थे। स्नान करने के बाद वह मंदिर के प्रांगण में बैठकर ध्यान लगाते थे, इसके बाद वह मिलने आए लोगों से मिलते थे।
स्वामी ने बताया कि बापू से मिलने के लिए उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल, कृपलानी समेत अन्य लोग आया करते थे। इसके साथ अंग्रेजी शासन के सैन्य अधिकारी भी मिलने के लिए पहुंचते थे, जिनमें लार्ड पैथिक लारेंस व लेडी माउंटबेटन थीं। बापू की भजन कीर्तन में भी रुचि थी। यही कारण था कि यहां ठहरने के दौरान शाम में मंदिर के प्रांगण में चबूतरे पर बैठ कबीर भजन, गीता पाठ आदि किया करते थे।
यह चबूतरा आज भी मौजूद है। स्वामी ने बताया कि बापू सभी धर्मों को एक समान मानते थे, इसलिए भजन कीर्तन के दौरान शाम को कुरान शरीफ की आयतें भी पढ़ी जाती थीं। बापू द्वारा प्रयोग में लाया गया तखत, टेबल व पेन स्टैंड आज भी कमरे में उनके होने का अहसास दिलाता है। लोग आज भी बापू को याद करते हुए उनका पता खोज ही लेते हैं और यहां उनसे जुड़ी चीजों व तस्वीरों को देख उनके होने का अहसास महसूस करते हैं।
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