दिल्ली-NCR के लोगों की चिंता बढ़ाने वाली खबर, वायु प्रदूषण से हो सकता है फेफड़ों का कैंसर
लंबे समय तक खराब हवा में सांस लेना स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। इसके दीर्घकालिक प्रभाव से फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। वहीं बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। देश राजधानी दिल्ली में करीब 10 दिनों तक हवा की गुणवत्ता खतरनाक रहने के बाद रविवार को प्रदूषण के स्तर में कुछ सुधार तो हुआ है लेकिन डाक्टर कहते हैं कि लंबे समय तक खराब हवा में सांस लेना स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। इसके दीर्घकालिक प्रभाव से फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। वहीं बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है। गर्भस्थ शिशुओं में जन्मजात विकार व अपंगता की समस्या बढ़ सकती है। लिहाजा, प्रदूषण को स्थायी रूप से दूर करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो यह नौनिहालों का भविष्य बिगाड़ देगा।
मणिपाल अस्पताल के नियोनेटालाजी के विशेषज्ञ डा. विनय राय ने कहा कि प्रदूषण के कारण बच्चों में एलर्जी, खांसी, सर्दी व सांस की बीमारी बढ़ गई है। इस वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन हो रहा है। खांसी, सर्दी व नाक जाम होने से नवजात बच्चों को फी¨डग में दिक्कत आ रही है। इस वजह से बच्चों को भाप देने व नेबुलाइज करने की जरूरत पड़ रही है। इसके अलावा बच्चे निमोनिया की बीमारी के साथ भी अस्पताल में पहुंच रहे हैं।
बता दें कि पिछले कुछ सालों से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या ज्यादा रही है। प्रदूषण भरे वातावरण में अधिक समय तक रहने से फेफड़े की क्षमता प्रभावित होती है। इससे बच्चों के फेफड़े का विकास प्रभावित हो सकता है। इस वजह से बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है। कई अध्ययनों में यह बात भी साबित हो चुकी है कि प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं का समय पूर्व प्रसव खतरा हो सकता है। इस वजह से बच्चे सामान्य से कम वजन के हो सकते हैं।
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डा. विकास मौर्या ने कहा कि ओपीडी में सांस के मरीज करीब 40 फीसद बढ़ गए हैं। अस्थमा के कई पुराने मरीजों को भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। जिन्हें पहले से कोई सांस की बीमारी नहीं है उन्हें भी प्रदूषण के कारण आगे चलकर अस्थमा व सीओपीडी (क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की बीमारी हो सकती है। इस तरह के अध्ययन भी सामने आए हैं जिसमें बताया गया है कि प्रदूषण के दुष्प्रभाव से शरीर के मेटाबोलिक सिस्टम पर असर पड़ता है। इस वजह से बच्चों में मोटापे की समस्या भी बढ़ सकती है।
एम्स के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. नीरज निश्चल ने कहा कि प्रदूषण का दीर्घकालिक असर ज्यादा खतरनाक हो सकता है। क्योंकि अधिक समय तक खराब हवा में ही सांस लेते रहे तो फेफड़े खराब होंगे। प्रदूषण के दौरान वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कण सांस के जरिये फफड़े व ब्लड में पहुंचकर शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करते हैं। इससे फेफड़े की गंभीर बीमारी तो होगी ही, दिल व न्यूरो की गंभीर बीमारियां भी बढ़ सकती है।
गंगाराम अस्पताल में चेस्ट मेडिसिन के विशेषज्ञ डा. बाबी भलोत्रा ने कहा कि सांस के पुराने मरीजों की बीमारी तो बढ़ ही गई है, जिन लोगों को पहले फेफड़े की बीमारी नहीं थी वे भी गले में दर्द, सांस लेने में परेशानी व सीने में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। ओपीडी में 40 से 45 फीसद मरीज बढ़ गए हैं। स्थिति यह है कि मरीजों को ओपीडी में इलाज के लिए जल्दी अप्वाइंटमेंट नहीं मिल पा रहा है।