World Asthma Day: महंगी दवाएं और गलत धारणाएं इलाज में बाधा
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 36% अस्थमा रोगी ही इनहेलर का उपयोग करते हैं। दवाओं की ऊंची कीमत और गलत धारणाओं के चलते मरीज इस थेरेपी से वंचित रह जाते हैं। विशेषज्ञ इनहेलर को सुलभ और सस्ता बनाने पर जोर देते हैं ताकि मरीज लाभ उठा सकें। (60 words)
राज्य ब्यूरो, जागरण, नई दिल्ली: धूम्रपान व वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा व COPD (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) जैसी बीमारी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। बड़ी संख्या में बच्चे भी इससे पीड़ित होते हैं, लेकिन अस्थमा से पीड़ित ज्यादातर मरीज सांस के जरिये ली जाने वाली इनहेलर जैसी दवाएं इस्तेमाल नही कर पाते। इसका एक कारण इन दवाओं की महंगी कीमतें भी हैं।
इसके अलावा इन दवाओं के इस्तेमाल को लेकर कुछ गलत भ्रांतियां भी हैं। इस वजह से भी बहुत मरीज इन दवाओं का इस्तेमाल करने से बचते हैं। डाक्टर बताते हैं कि अस्थमा पीड़ित मरीजों को इनहेलर की दवाएं सुगमता से उपलब्ध कराकर बीमारी को नियंत्रित रखा जा सकता है।
देश में 3.43 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं
छह अप्रैल को विश्व अस्थमा दिवस पर इस बार का थीम भी 'सांस से ली जाने वाली दवाएं सबके लिए सुलभ बनाना' रखा गया है। देश में 3.43 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। जिसमें बड़ी संख्या आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की होती है। वे मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए निर्भर होते हैं।
कई अध्ययनों को मिलकर मेडिकल जर्नल लंग इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में अस्थमा की जांच की सुविधाओं की कमी है। इस वजह से शुरुआती लक्षण वाले करीब 70 प्रतिशत व गंभीर लक्षण वाले 82 प्रतिशत मरीजों को गलत क्लीनिकल जांच का सामना करना पड़ता है।
59.28 प्रतिशत मरीज ब्रोंकोडायलेटर के रूप में टैबलेट दवा लेना पसंद करते हैं
59.28 प्रतिशत मरीज ब्रोंकोडायलेटर के रूप में टैबलेट दवा लेना पसंद करते हैं। 36.42 प्रतिशत मरीजों के लिए इनहेलर इलाज के लिए दूसरी पसंद है। अध्ययन में पाया गया है कि सामान्य दवा लेने वाले मरीजों में सांस फूलने की समस्या ठीक से नियंत्रित नहीं रहती।
इस वजह से इन मरीजों को इमरजेंसी में जाने व अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत अधिक पड़ती है। सिर्फ 36 प्रतिशत भारतीय मरीज इसका इस्तेमाल करते हैं। बाकी 64 प्रतिशत मरीज इनहेलर या सांस के जरिये ली जाने वाली अन्य दवा इस्तेमाल नहीं करते।
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डाॅ. विकास मौर्या ने कहा कि धूल मिट्टी से एलर्जी, धूम्रपान, वायु प्रदूषण, धुआं के दुष्प्रभाव के करण सांस की नली में सूजन आ जाती है। इस वजह से सांस की नली में सिकुड़न आ जाती है। बलगम भी अधिक बनता है और मरीज की सांस फूलने लगती है।
सांस की नली में यह सिकुड़न स्थायी नहीं होती। बीमारी नियंत्रित रहने पर सांस की नली भी ठीक रहती है। सांस के माध्यम से ली जाने वाली इनहेलर जैसी दवाएं सीधे फेफड़े में पहुंचती है। इससे मरीज को जल्दी और अधिक फायदा होता है और बीमारी नियंत्रित रहता है।
इस वजह से सांस के माध्यम से ली जाने वाली दवाएं अस्थमा के इलाज में यह मुख्य थेरेपी होती हैं। लेकिन यह दवाएं महंगी होती हैं और इलाज लंबा चलता है। इस वजह से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मरीज इनहेलर का खर्च नहीं उठा पाते। लिहाजा, दवाओं की कीमतें किफायती होना आवश्यक है। साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से जरूरतमंदों को ये दवाएं आसानी से उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
लोगों में गलत धारणा है कि इनहेलर लेने से लत लग जाएगी या दुष्प्रभाव होगा
एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन के एडिशनल प्रोफेसर डाॅ. करण मदान ने बताया कि यह लोगों में गलत धारणा है कि इनहेलर लेने से लत लग जाएगी या दुष्प्रभाव होगा। अस्थमा का सबसे सटीक इलाज यही है। इसके इस्तेमाल से अस्थमा नियंत्रित रहता है।
अस्थमा से पीड़ित बच्चों और कई वयस्क मरीजों में भी एक समय के बाद ये दवाएं बंद हो जाती हैं। जिन लोगों को एलर्जी की समस्या होती है। उन्हें अस्थमा होने की संभावना ज्यादा होती है। मौसम बदलने पर अप्रैल व अक्टूबर में इसके मामले अधिक देखे जाते हैं।
दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर भी अस्थमा की बीमारी बढ़ जाती है। अस्थमा होने पर खांसी व सांस फूलने के अलावा गले से सीटी जैसी आवाज आती है। लक्षण को पहचान कर इलाज करना होता है।
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