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    Delhi: जिस बदायूं दरवाजे के पास अलाउद्दीन खिलजी ने खाई थी शराब न पीने की कसम, उसे तलाशेगा ASI

    By Jp YadavEdited By:
    Updated: Wed, 13 Apr 2022 08:52 AM (IST)

    Badaun Darwaza News भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) बदायूं दरवाजे के बारे में जानकारी जुटाकर इसे तलाशा जाएगा। साकेत मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर तीन की ...और पढ़ें

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    Delhi: जिस बदायूं दरवाजे के पास ही अलाउद्दीन खिलजी ने खाई थी शराब न पीने की कसम, उसे तलाशेगा ASI

    नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। दिल्ली में आपने लाहौरी गेट और लखनऊ रोड तो सुना होगा, लेकिन अब बदायूं दरवाजे के बारे में भी जान लीजिए। करीब साढ़े 11 सौ साल पहले यह दरवाजा बनाया गया था, जो पृथ्वीराज चौहान के किला राय पिथौरा के पूर्वी छोर के तीन दरवाजों में से एक है। हालांकि, अभी यह उस स्थान पर दिखाई नहीं दे रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) अब इस दरवाजे की तलाश में खोदाई कराने की योजना बना रहा है। एएसआइ की मानें तो दरवाजा गायब नहीं है, बल्कि साकेत के पास जंगल में जमीन के अंदर दबा है, जिसे बाहर निकालने के लिए खोदाई होगी। इसके लिए एएसआइ के दिल्ली मंडल ने अनुमति ली है। वहीं, बताया जाता है कि बदायूं दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी ने शराब से भरे सारे बर्तन तोड़ दिए थे और शराब न पीने की कसम खाई थी।

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    लाडो सराय, हौजरानी, साकेत, प्रेस एन्क्लेव तथा मित्तल फार्म और महरौली-बदरपुर रोड के आसपास किला राय पिथौरा की चारदीवारी है। इसके बीच कभी हौजरानी दरवाजा, बदायूं दरवाजा और बरका दरवाजा था। किला राय पिथौरा चारदीवारी के साक्ष्य वर्तमान में हैं, लेकिन बदायूं दरवाजा कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। साकेत मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर तीन की तरफ जंगल में इस दरवाजे के होने की संभावना जताई जा रही है। इसके एक तरफ कुतुब गोल्फ कोर्स है, तो दूसरी ओर सीआइएसएफ का परिसर है। पुरात्वविद् बताते हैं कि उस समय इस दरवाजे का प्रयोग बदायूं आवागमन के लिए किया जाता था। इसलिए इस दरवाजे का नाम बदायूं दरवाजा पड़ा।

    अनंगपाल ने बनवाया था यह दरवाजा

    एएसआइ के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डा. बीआर मणि के अनुसार बदायूं दरवाजा राजा अनंगपाल तोमर ने बनवाया था। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान के किला राय पिथौरा का यह एक महत्वपूर्ण दरवाजा बन गया था। उनके शासन के पतन के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश ने इस किले में अपने हिसाब से निर्माण कराया और इस दरवाजे का प्रमुख रूप से उपयोग किया। वहीं, एक अन्य पुरातत्वविद कहते हैं कि जिस समय कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली पर राज कर रहा था, उस समय इल्तुतमिश बदायूं का गवर्नर था। ऐबक की मृत्यु के बाद इल्तुतमिश ने दिल्ली पर राज किया। उस समय उसने भी इस दरवाजे का प्रमुख रूप से उपयोग किया। दिल्ली की स्थापना 736 ई. में राजा अनंगपाल तोमर ने की थी। राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय ने वर्ष 1052 में यहां एक किला लाल कोट बनवाया, जिसे दिल्ली का पहला शहर भी कहा जाता है। इस लाल कोट में 13 दरवाजे बनाए गए थे, जिनमें से सबसे प्रमुख और सबसे बड़ा बदायूं दरवाजा था।

    पृथ्वीराज के किला राय पिथौरा का यह मुख्य दरवाजा था

    अनंगपाल के बाद दिल्ली पर अजमेर के चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान ने 1175 से 1192 ई. तक दिल्ली पर राज किया। पृथ्वीराज चौहान के किले का नाम राय पिथौरा था, उन्होंने लाल कोट में कई निर्माण कराकर इसे बड़ा और मजबूत बनाया। उसके बाद इस किले का नाम किला राय पिथौरा पड़ा। उस समय भी बदायूं दरवाजा किला राय पिथौरा का मुख्य दरवाजा बना रहा। बदायूं दरवाजे का पृथ्वीराज चौहान के बाद के शासकों ने भी पूरा इस्तेमाल किया।

    अलाउद्दीन खिलजी ने बदायूं दरवाजे के पास ही खाई थी शराब न पीने की कसम

    बदायूं दरवाजे के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसी दरवाजे के पास अलाउद्दीन खिलजी ने शराब से भरे सारे बर्तन तोड़ दिए थे और शराब न पीने की कसम खाई थी। यही नहीं, अलाउद्दीन खिलजी के शासन में इस दरवाजे के पास ही दोषियों को सजा भी दी जाती थी। उन्हें यहां प्रताड़ित किया जाता था और लोगों के सामने ही उनका सिर कलम कर दिया जाता था। दिल्ली सल्तनत में बदायूं दरवाजा काफी व्यस्त दरवाजा था, जहां से कारोबार, प्रशासनिक कार्यो और जंग के लिए कारोबारियों, सूबेदारों और फौज का आना-जाना होता रहता था। एएसआइ के लिए 19वीं शताब्दी में जनरल एलेक्जेंडर कनिंघम ने बदायूं दरवाजे समेत दस दरवाजों के अवशेष ढूंढ़े थे।