Tablighi Markaz Rohingya Muslims: पढ़िए- कैसे रोहिंग्या मुसलमानों ने बढ़ाई नई मुश्किल
Coronavirus Tablighi Markaz Rohingya Muslims सरकारी एजेंसियों को चिंता सता रही है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच कहीं रोहिंग्या मुसलमान जमातियों की तरह खतरा न बन जाएं।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Coronavirus Tablighi Markaz Rohingya Muslims: तब्लीगी मरकज जमात और रोहिंग्या मुसलमानों के कनेक्शन ने सरकार के साथ खुफिया एजेंसियों की भी नींद उड़ा रखी है। दरअसल, यूपी, हरियाणा समेत कई राज्यों से रोहिंग्या शरणार्थी दिल्ली के तब्लीगी मरकज में शामिल तो हुए, लेकिन यहां से वे राहत शिविरों (Relief Camps) में नहीं पहुंचे। सरकारी एजेंसियों को यह चिंता भी सता रही है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच कहीं रोहिंग्या मुसलमान जमातियों की तरह नया खतरा न बन जाएं। इन रोहिंग्या मुसलमानों के पास मोबाइल फोन भी उपलब्ध नहीं हैं, जिसके जरिये इन्हें ट्रेस किया जा सके, यही वजह है कि खुफिया एजेंसिया स्थानीय पुलिस की मदद से सैकड़ों की संख्या में 'गायब' रोहिंग्याओं को तलाश कर रही हैं। आइये जानते हैं कि कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान, जो कोरोना वायरस संक्रमण काल में भारत के लिए नई मुसीबत बनते दिखाई दे रहे हैं।
रोहिंग्या मुसलमान का संबंध सीधे तौर पर म्यांमार से माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार, म्यांमार में तकरीबन 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन्हें म्यांमार की बहुसंख्यक बौद्ध आबादी में इन रोहिंग्याओं को अल्पसंख्यक माना जाता है। दरअसल, म्यांमार शुरू से यह मानता रहा है कि रोहिंग्या मुसलमान मूलरूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। इतिहासकारों के मुताबिक, कॉमन ईरा (सीई) के वर्ष 1400 के आसपास रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार (बर्मा) के अराकान स्टेट में आकर बसे थे। ऐसा कहा जाता है कि इन लोगों ज्यादातर 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में मजदूरी या नौकरी करते थे। इतिहासकारों को तर्क है। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था। रोहिंग्या मुसलमान खुद को सुन्नी इस्लाम से जुड़ा मानते हैं।
कई पीढ़ियों से रह रहे हैं म्यांमार में
म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध बांग्लादेशी कहकर अपने देश से बड़ी संख्या में इन्हें निष्काशित कर चुकी है। वहीं, रोहिंग्याओं की मानें तो वह कई पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं और उसी ही अपना मुल्क मानते हैं। म्यांमार के रखाइन स्टेट में वर्ष 2012 से ही रोहिंग्याओं को लेकर सांप्रदायिक हिंसा जारी है और इस हिंसा में एक लाख से ज्यादा रोहिंग्या विस्थापित हो चुके हैं, जिनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या ज्यादा है। वर्तमान में भी बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश और थाईलैंड के बॉर्डर पर बनाए गए रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं।
अगस्त, 2017 में हुई हिंसा में तकरीबन 2 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को हिंसा के बाद म्यांमार छोड़ना पड़ा।संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के मुताबिक, 25 अगस्त, 2017 को म्यांमार के रखाइन स्टेट में हिंसा से रोहिंग्याओं के पलायन की शुरुआत हुई थी। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ कहते हैं कि तकरीबन 6.5 लाख रोहिंग्या म्यांमार से पलायन कर गए हैं। दरअसल, 1962 में म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद रोहिंग्याओं के अधिकार धीरे-धीरे कम होते गए। 20 साल बाद वर्ष 1982 में एक कानून बना, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों को देश का नागरिक ही नहीं माना गया।
...इसलिए बढ़ी चिंता
यहां पर बता दें कि पिछले महीने 13 से 15 मार्च के बीच मरकज में देश विदेश से करीब 9000 लोग पहुंचे थे। इसमें दिल्ली के विभिन्न कैंपों में रहने वाले करीब 900 रोहिंग्या में से सैंकड़ों रोहिंग्या के भी मरकज में जाने का जांच एजेंसियों को इनपुट मिला है। खास बात यह है कि ये लोग मरकज में जाने के बाद वापस अपने कैंपों में नहीं गए हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों को डर है कि कहीं ये लोग संक्रमण के प्रसार की साजिश को अंजाम तो नहीं दे रहे हैं। खुफिया सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ सालों में 1200 रोहिंग्या मुस्लिम म्यामार से दिल्ली आए, इनमें 300 दूसरे राज्यों में चले गए। 900 रोहिंग्या दक्षिण-पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, बाहरी, द्वारका व पश्चिमी जिले में रहते हैं। इन सभी के पास यूनाइडेट नेशन द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड हैं। इन सभी के अंगुलियों के निशान सहित अन्य जानकारी दिल्ली पुलिस के पास है।
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