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दिल्ली उपहार कांड 1997: तबाही के बाद मिली तन्हाई ने लूटी उनकी जिंदगी की शाम

22 साल पहले किसी ने अपना जवान लड़का खोया तो किसी अपनी जवान लड़की। सच तो यह है कि इस आग में न केवल 59 लोगों की जान गई थी बल्कि उनके परिजन आज भी तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 12 Jun 2019 09:07 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jun 2019 09:26 AM (IST)
दिल्ली उपहार कांड 1997: तबाही के बाद मिली तन्हाई ने लूटी उनकी जिंदगी की शाम
दिल्ली उपहार कांड 1997: तबाही के बाद मिली तन्हाई ने लूटी उनकी जिंदगी की शाम

नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी)। 22 बरस पहले आज ही के दिन (13 जून, 1997) दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में 'बॉर्डर' फिल्म देखने के दौरान लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी, इतना ही नहीं इस आग में 100 से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। इस भीषण अग्निकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस हादसे में अपनों को खोने वाले आज भी जिंदगी और मौत में फ़र्क नहीं कर पाते, क्योंकि इस हादसे ने उन्हें अंदर तक खामोश कर दिया है। ...और इस खामोशी के टूटने से पहले पीड़ित परिजनों की आंखें आंसुओं के जरिये बोल पड़ती हैं कि उनकी तन्हाई ने उनकी जिंदगी की शाम को बेजार कर दिया है। 

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उपहार सिनेमा भीषण अग्निकांड में 22 साल पहले किसी ने अपना जवान लड़का खोया तो किसी ने अपनी जवान लड़की। सच तो यह है कि इस आग में न केवल 59 लोगों की जान गई थी, बल्कि उनके परिजन आज भी तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं। पीड़ित परिजनों की आंखें कल्पना मात्र से ही नम हो जाती हैं कि उनके बेटा-बेटी अगर जिंदा होते आज क्या अालम होता। कुछ मां-बाप तो ऐसे हैं, जो आज तन्हाई में अपनी जिंदगी की आखिरें शाम गुजार रहे हैं और मौत का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आज उनके पास न तो जीवन जीने का कोई सहारा है और न ही कोई मकसद। ऐसे एक नहीं,बल्कि कई लोग हैं, जिनका पूरा परिवार ही इसमें तबाह हो गया। उपहार सिनेमा अग्निकांड में अपने दो बच्चों को खो चुकी कालकाजी निवासी नीलम कृष्णमूर्ति (58) का दर्द जुबान से पहले आंखों से छलक पड़ता है।

उपहार सिनेमा अग्निकांड में जिन लोगों की मौत हुई थी, उनमें नीलम की 17 वर्षीय बेटी उन्नति और 13 वर्षीय बेटा उज्जवल भी शामिल थे। वह यह कल्पना कर रोमांचित तो होती हैं, लेकिन फिर आंखों में आंसू आ जाते हैं। आज उनके दोनों बच्चे जिंदा होते तो उनकी उम्र क्रमशः 39 और 35 होती, यानी जिंदगी कितनी आसान होती?अगर मेरी बेटी जिंदा होती तो उसकी शादी हो चुकी होती और हम नानी-नाना बन गए होते। नीलम का कहना है कि दो दशक बीत गए, लेकिन उनकी जिंदगी तो थम गई है। ...और जो चल रहा है वह बीत भर रहा है।

वहीं, केआरएस राही का दर्द तो पत्थर दिल इंसान का कलेजा भी दहला दें। दरअसल, उनका 22 साल का बेटा सुदीप राही 13 जून को बर्थडे मनाने गया था। इस दौरान दोस्तों के साथ सिनेमा देखने गया, लेकिन वह फिर कभी लौट कर नहीं आया। उनके बेटे का जिस दिन बर्थ डे था उसी दिन उसकी मौत हो गई। राही की यह कहते हुए आंखें नम हो जाती हैं कि हमें तो यह समझ में नहीं आता कि अपने बेटे का 13 जून को बर्थ डे मनाएं या डेथ एनवर्सरी। यह बेहद दुखद था और अगर बेटा जिंदा होता तो 44 साल का होता।

ऐसे हुआ था हादसा

दरअसल शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गई, जो तेजी से अन्य हिस्सों में फैली। आग की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। घटना की जांच के दौरान पता चला था कि सिनेमाघर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। 

13 जून 1997- उपहार सिनेमा में बार्डर फिल्म के प्रसारण के दौरान आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई।

22 जुलाई 1997- पुलिस ने उपहार सिनेमा मालिक सुशील अंसल व उसके बेटे प्रणव अंसल को मुंबई से गिरफ्तार किया।

24 जुलाई 1997- मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआइ को सौंपी गई।

15 नवंबर 1997- सीबीआइ ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल सहित 16 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की।

10 मार्च 1999- सेशन कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हुआ।

27 फरवरी 2001- अदालत ने सभी आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या, लापरवाही व अन्य मामलों के तहत आरोप तय किए।

23 मई 2001- गवाहों की गवाही का दौर शुरू हुआ।

4 अप्रैल 2002- दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत को मामले का जल्द निपटारा करने का आदेश दिया।

27 जनवरी 2003- अदालत ने अंसल बंधुओं की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने उपहार सिनेमा को वापस उसे सौंपे जाने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि यह केस का अहम सबूत है और मामले के निपटारे तक सौंपा नहीं जाएगा।

24 अप्रैल 2003- हाईकोर्ट ने 18 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ितों के परिवार वालों को दिए जाने का आदेश जारी किया।

4 सितंबर 2004- अदालत ने आरोपियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की।

5 नवंबर 2005- बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही शुरू हुई।

2 अगस्त 2006- बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही पूरी।

9 अगस्त 2006- सेशन कोर्ट जज ममता सहगल ने उपहार सिनेमा का निरीक्षण किया।

14 फरवरी 2007- केस में अंतिम जिरह शुरू हुई।

21 अगस्त 2007- उपहार कांड पीड़ितों के संगठन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मामले का जल्द निपटारा किए जाने की मांग की।

21 अगस्त 2007- सेशन कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।

20 नवंबर 2007- अदालत ने सुशील व गोपाल अंसल सहित 12 आरोपियों को दोषी करार दिया। सभी को दो साल कैद की सजा सुनाई।

4 जनवरी 2008- हाईकोर्ट से अंसल बंधुओं व दो अन्य को जमानत मिली।

11 सितंबर 2008- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की जमानत रद की और उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया।

17 नवंबर 2008- दिल्ली हाईकोर्ट ने अंसल बंधुओं की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।

19 दिसंबर 2008- हाईकोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया और छह अन्य आरोपियों की सजा को बरकरार रखा।

30 जनवरी 2009- उपहार कांड पीड़ितों के संगठन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट अंसल बंधुओं को नोटिस जारी किया।

31 जनवरी 2009- सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में भी अभियुक्तों की सजा को बढ़ाए जाने की मांग की।

17 अप्रैल 2013- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं, उपहार कांड पीड़ितों व सीबीआइ की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

5 मार्च 2014- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा।

19 अगस्त 2014- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं पर 30-30 लाख का जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया।

17 दिसंबर, 2018-  दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए थे

दिसंबर 2018- दिल्ली हाई कोर्ट ने उपहार सिनेमा अग्निकांड में सजा पाने वाले उसके मालिक सुशील अंसल का पासपोर्ट जारी करने वाले अधिकारी कि खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया था।

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