Khan Market: मोदी की वजह से टॉप ट्रेंडिंग में रहा देश का यह मार्केट, राहुल-स्मृति को भी है पसंद
खान मार्केट सिर्फ अपनी चमक-दमक के लिए ही नहीं है। यहां ट्रेड सेंटर भी हैं। खुशवंत सिंह की किताब में खान मार्केट की चमक दमक का जिक्र मिलता है।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। जौक का एक शेर कहूं...‘मैं दुनिया के बाजार से गुजरता हूं, लेकिन मुझे कुछ खरीदना नहीं हैं’ बस आज दिल कर रहा है हरे घने पेड़ों की छांव, बहती ठंडी हवाएं, शांत माहौल, साफ सुथरी सड़क वाले देश के बाजारों के ‘खान’, खान मार्केट को जानने समझने का। बरसों पुराना जिसके पास विश्वास है। चकाचौंध जिसकी पहचान है। शोहरत जिसे हासिल है। नाम में ही जिसके खान है। खान मार्केट उसका नाम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘मोदी की छवि खान मार्केट गैंग या लुटियंस दिल्ली ने नहीं बनाई है। यह 45 वर्षों की कड़ी मेहनत से बनी है। आप इसे ध्वस्त नहीं कर सकते, लेकिन लुटियंस और खान मार्केट गैंग ने एक पूर्व प्रधानमंत्री की इमेज जरूर बनाई थी।’
अब खान मार्केट यूं तो सुनी-जानी देखी सी हर किसी के लिए है, लेकिन जब पीएम नरेंद्र मोदी की जुबान से नाम सुना तो इसकी टीआरपी और बढ़ सी गई। लोग इसके नाम, काम, इतिहास, भूगोल, रीति-परंपरा को जानने को उत्सुक हो गए हैं। जिस जगह आज खान मार्केट है वहां कभी बाजार के नाम पर चंद दुकानें हुआ करती थीं। जिसे बैरक मार्केट कहा जाता था। दरअसल, आजादी के पहले सुजान सिंह पार्क में ब्रिटिश सेना के जवान रहते थे। इनकी तादाद ज्यादा होने के कारण रोजमर्रा की जरूरतों का सामान उपलब्ध कराने वाली कुछ दुकानें भी यहां खुल गई थीं। बुजुर्ग दुकानदारों की मानें तो अधिकतर दुकानें पेड़ों के नीचे ही खुली थीं। ये दुकान सैनिकों को राशन-पानी आदि उपलब्ध कराती थीं। इसलिए इसे लोग बैरक मार्केट ही कहते थे।
शरणार्थियों को मिली थीं दुकानें
यूं तो इस बाजार को देख इसकी चकाचौंध इसके महत्व की बानगी करती है। फिर भी इसके भूगोल-इतिहास का बेहतर विश्लेषण करते हुए मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव मेहरा बताते हैं कि पाकिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी दिल्ली आए थे। पुनर्वास मंत्रालय ने यहां शरणार्थियों को यह जगह अलॉट की थी। मेरे पिता स्वर्गीय दिलबाग राय मेहरा को भी यहां 1951 में यह दुकान अलॉट की गई थी। मंत्रालय ने पहले 50 रुपये किराये पर दी थी। 3 साल बाद नो प्राफिट नो लॉस बेस पर 6516 रुपये में 99 साल के लीज पर दे दी गई थी। पहले 80 से 100 लोगों को कुल 156 दुकानें अलॉट की गई थीं। बाबा बताते थे कि आवंटन के दौरान एक और बात ध्यान रखी गई थी कि पाकिस्तान में जिसका ज्यादा नुकसान हुआ उसे यहां भी उसी आधार पर ज्यादा संपत्ति आवंटित की गई थी। बशर्ते नुकसान संबंधी कागजाज दिखाने पड़ते थे। डॉक्टर समेत कुछ पेशेवरों को एक से ज्यादा दुकान आवंटित की गई थीं। क्योंकि इन्हें एक से ज्यादा कमरे चाहिए थे। संजीव कहते हैं कि समय के साथ बाजार में बहुत कुछ बदल गया है। मालिक भी बदल गए। बहुत से दुकानदार यहां से छोड़कर कहीं और शिफ्ट हो गए हैं।
पहली दुकान की जिज्ञासा
आपके मन में इसे पढ़ते-पढ़ते यही सवाल आ रहा होगा न कि आखिर यहां सबसे पहली दुकान कौन सी है? चलिए आपकी इस जिज्ञासा को शांत करते हैं। संजीव मेहरा बताते हैं कि बैरक मार्केट से खान मार्केट तक के सफर की बात करते हैं तो सबसे पहले आनंद जनरल स्टोर का नाम आता है। इसकी नींव 1943 में मातादीन गोयल ने रखी थी। उस समय यह बनिया स्टोर के नाम से प्रसिद्ध थी। मातादीन गोयल के बेटे श्रीराम गोयल कहते हैं कि जब बैरक मार्केट था तो यहां न के बराबर दुकान थीं। बनिया शॉप ग्राहकों द्वारा दिया हुआ नाम है। इसके बाद तो बाबू जी ने दुकान के बाहर ही बनिया शॉप की तख्ती लगा दी थी। खैर, जब खान मार्केट बना तो बनिया शॉप का नाम बदलकर आनंद जनरल स्टोर किया गया। बकौल गोयल, यह दुकान सिर्फ पंडित जवाहर लाल नेहरू, सीडी देशमुख, इंदिरा गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी ही नहीं बल्कि भाजपा के कई वरिष्ठ नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडीस समेत स्मृति ईरानी, आदि नेताओं की भी पसंद है। इसके अलावा स्वर्गीय लालाराम, दुग्रदास, स्व आरवी मारवाह, स्व. सूरज प्रकाश मारवा, स्व. बाला जी आदि पहली पंक्ति के दुकानदार थे। जिनकी अब तीसरी- चौथी पीढ़ी दुकान संभाल रही है।
ट्रेड सेंटर है खान मार्केट
खान मार्केट सिर्फ अपनी चमक-दमक के लिए ही नहीं है। यहां ट्रेड सेंटर भी हैं। खुशवंत सिंह की किताब में खान मार्केट की चमक दमक का जिक्र मिलता है। जन्नत और अन्य कहानियां में वो लिखते हैं कि विजय को ना तो मंदिर में स्थापित अनेक देवताओं की जरूरत थी, और न खान मार्केट में मिलने वाली चीजों की। वो बस वहां से एक सिगरेट और दो पान खरीदा करता था। वो एक पान मुंह में रखता था और दूसरा डिनर के बाद खाने के लिए जेब में। वो सिगरेट जलाता और घंटे भर की चहलकदमी पर निकल जाता था। जब कोई उससे पूछता कि रोजाना शाम को वो खान मार्केट में क्यों घूमता है तो कहता कि रौनक देखने के लिए। मुझे खुश लोगों को देखना अच्छा लगता है। विजय जैसे और भी लोग थे जो रोजाना शाम को खान मार्केट की रंग बिरंगी रोशनियों, लग्जरी कार और फैशनेबल लोगों को देखने जाते हैं। लेकिन इस चकाचौंध के इतर खान मार्केट एक ट्रेड सेंटर भी है। संजीव मेहरा कहते हैं कि दिल्ली में बर्थडे पार्टियों आदि को दमदार इवेंट के रूप में मनाने का श्रेय हमें जाता है। इसी तरह टेंट हाउस को थीम पार्टियों पर केंद्रित कर सजाने का श्रेय हरीश और किशन मलिक को जाता है। खान मार्केट की थीम एवं डेकोरेशन और मलिक टेंट हाउस आज भी दिल्ली में फेमस है।
मंत्री से संतरी तक की पसंद
खान मार्केट को देखकर आपको लगता होगा न कि महंगे शोरूम। लग्जरी जैसी दिखने वाली लाइफ यहां की पहचान है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। इसकी असल पहचान, छाप तो इसकी बौद्धिकता है। यहां बुद्धिजीवी वर्ग खूब उठता- बैठता दिखेगा। यहां बड़े सितारे, राजनेता, लेखक, पत्रकार अक्सर खरीदारी करते दिख जाएंगे। कोई किताब खरीद रहा होगा तो कोई कैफे में बातचीत कर रहा होगा। संजीव मेहरा के अनुसार किसी भी मार्केट किसी भी बाजार में ग्राहक चार चीजें देखता है। सुरक्षा, सेनिटेशन, ब्रांड और पार्किंग सुविधा। यहां ये चारों सुविधाएं मौजूद हैं। हर उत्पाद की गुणवत्ता और विश्वसनीयता का यहां पूरा ध्यान रखा जाता है। अब आनंद जनरल स्टोर को ही ले लीजिए, वो सामान खरीदते एवं फिर साफ करवाकर अपने दुकान पर ही पैक कराते हैं। कई बार तो बाहर के दस पैकेट के आम या अन्य फल से यहां की सिर्फ एक पेटी तैयार हो पाती है।
राहुल को बर्गर स्मृति को पास्ता है पसंद
राहुल गांधी और स्मृति ईरानी अमेठी सीट से इस चुनावी महासमर में एक-दूसरे को चित करने में भले जुटे हों लेकिन उनकी मार्केट च्वाइस एक जैसी है। एक दुकानदार बताते हैं कि राहुल गांधी खान मार्केट में स्मोक हाउस डेली में आते हैं। उन्हें यहां का बर्गर बहुत ही पसंद है। जब वो यहां आते हैं तो टेरेस पर बैठकर एक कप काफी के साथ बर्गर खाना पसंद करते हैं। वहीं स्मृति ईरानी भी अक्सर यहां आती हैं एवं पिज्जा एवं पास्ता खाना पसंद करती हैं। शीला दीक्षित और रेल मंत्री पीयूष गोयल भी अक्सर यहां दिख जाते हैं। यहां स्थित पर्च के बारे में कहा जाता है कि राजनेता यहां गर्मागर्म काफी की चुस्कियों संग चर्चा करते दिख जाते हैं। राबर्ट वाड्रा भी यहां आते हैं। सलमान खान भी अपनी फिल्म ‘भारत’ की शूटिंग के दौरान खान मार्केट खाना खाने आए थे, जबकि ‘लव यात्री’ की तो पूरी टीम ने ही खान चाचा के रोल का स्वाद चखा था।
गांधी परिवार की पसंद
महेश दत्त शर्मा अपनी पुस्तक ‘सोनिया गांधी’ में लिखते हैं कि 1977 के चुनाव में पराजय के बाद इंदिरा जी अपने परिवार के साथ 12, विलिंगडन क्रिंसेट पर आकर रहने लगीं। यह घर प्रधानमंत्री आवास से अपेक्षाकृत छोटा था। सोनिया अपने बच्चों राहुल और प्रियंका की देखभाल खुद करती थीं। वे दोनों समय खाना भी स्वयं बनाती थीं। निकट के खान मार्केट में जाकर सोनिया स्वयं सब्जी व घर की जरूरत का सामान खरीदकर लाती थीं। विगत साल अचानक सर्दियों के दिनों में सोनिया और प्रियंका गांधी का मार्केट पहुंच र्शांपग करना भी इसकी लोकप्रियता की कहानी सुनाता है।
आखिर क्यों है खान
इस बाजार के नाम खान से मतलब यहां दुकानों की ‘खान’ जैसा कुछ नहीं है इसके नाम के पीछे क्या है इस पर इतिहासकार आरवी स्मिथ बताते हैं कि सन् 1968-69 के आसपास खान अब्दुल गफ्फार खान दिल्ली आए थे। गांधी परिवार के निमंत्रण पर वो भारत आए थे। उन्हीं के नाम पर इस मार्केट का नाम खान मार्केट रखा गया था। मार्केट पृथ्वीराज रोड एवं चाणक्यपुरी के पास है। दरअसल, गफ्फार खान ने दिल्ली की सरजमीं पर रामलीला मैदान में भाषण भी दिया था। 2 अक्टूबर के दिन उनका भाषण सुनने रामलीला मैदान में देशभर से लोग आए थे।
- 24 वें स्थान पर है खान मार्केट दुनिया के सर्वाधिक महंगे बाजारों में।
- 1350 रुपये प्रति स्क्वायर फीट किराया है खान मार्केट में जबकि मळ्ंबई के लिंक रोड पर 800 व हैदराबाद के एमजी रोड पर 120 रुपये प्रति स्क्वायर फीट किराया है।
(अमेरिकन कमर्शियल रियल स्टेट सर्विस की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार)
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप