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    AIIMS डॉक्टर ने एक IVF महिला मरीज के अंडाणु उसकी सहमति के बिना दो महिलाओं को दिए, NMC ने चेतावनी देकर छोड़ा

    By Ranbijay Kumar SinghEdited By: Geetarjun
    Updated: Mon, 14 Aug 2023 12:53 AM (IST)

    एम्स के आईवीएफ केंद्र में एक महिला के अंडाणु (एग) उसकी सहमति के बगैर दो अन्य महिला मरीजों के आईवीएफ के लिए इस्तेमाल करने का मामला सामने आया है। उस अंडाणु से विकसित भ्रूण दोनों महिला मरीजों को प्रत्यारोपित किए गए थे। पांच वर्ष पुराने इस मामले में एनएमसी (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग) ने नरमी दिखाते हुए दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के आदेश को पलट दिया।

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    AIIMS डॉक्टर ने एक IVF महिला मरीज के अंडाणु उसकी सहमति के बिना दो महिलाओं को दिए।

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। एम्स के आईवीएफ केंद्र में एक महिला के अंडाणु (एग) उसकी सहमति के बगैर दो अन्य महिला मरीजों के आईवीएफ के लिए इस्तेमाल करने का मामला सामने आया है। उस अंडाणु से विकसित भ्रूण दोनों महिला मरीजों को प्रत्यारोपित किए गए थे। पांच वर्ष पुराने इस मामले में एनएमसी (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग) ने नरमी दिखाते हुए दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के आदेश को पलट दिया।

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    साथ ही डॉक्टर को भविष्य में सतर्क रहने की चेतावनी दी है। एनएमसी ने अपने आदेश में कहा है कि डॉ. नीता सिंह ने रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम किया है। उनका मकसद गरीब मरीज को मदद करना था। उन्हें कोई व्यक्तिगत कोई फायदा नहीं था, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कि जा सकता है आईसीएमआर के नियमों का उल्लंघन हुआ है।

    दूसरे विभाग में किया ट्रांसफर

    इसलिए उन्हें सतर्क रहने की चेतावनी दी जाती है। एम्स की जांच कमेटी ने भी नियमों के उल्लंघन होने की बात कहकर भ्रूण विज्ञानी को दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया था।

    क्या है पूरा मामला?

    इस मामले डीएमसी को 30 अगस्त 2017 को एक शिकायत मिली थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि एम्स में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) कराने पहुंची एक महिला और उसका इलाज करने वाली डॉक्टर की सहमति के बगैर उस महिला से लिए गए 14 अंडाणु का इस्तेमाल दो अन्य महिला मरीजों को आईवीएफ करने में किया गया।

    उन दोनों महिलाओं का इलाज डॉ. नीता सिंह कर रही थीं। यह चिकित्सकीय पेशे और आईसीएमआर के निर्देशों के खिलाफ है। इस मामले में डीएमसी की अनुशासन समिति ने एम्स के गायनेकोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. नीता सिंह व तत्कालीन विभागाध्यक्ष सहित तीन डॉक्टरों और आईवीएफ यूनिट के भ्रूण विज्ञानी का लिखित बयान मांगा। सभी ने अपना पक्ष रहा।

    क्या कहा अपने जवाब में?

    डॉ. नीता सिंह ने डीएमसी को दिए अपने जवाब में कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता का नाम नहीं है। ऐसे गुमनाम शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता है। किसी महिला से सुरक्षित निकाले गए अंडाणु भ्रूण विज्ञानी की देखरेख में सुरक्षित रहता है। उसे किसी दूसरे मरीज से साझा करने के लिए डोनर से सहमति लेने का काम काउंसलर और रेजिडेंट डॉक्टरों का है।

    एम्स में जब आईवीएफ की सुविधा नहीं थी, संसद में इसको लेकर बार-बार सवाल उठ रहे थे। तब उन्हें एम्स में आईवीएफ की सुविधा शुरू कराने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने वर्ष 2008 में एम्स में आईवीएफ से पहला प्रसव कराया। इसके बाद से गरीब परिवारों की हजारों महिलाओं ने इसका लाभ उठाया है।

    भ्रूण विज्ञानी ने अपने जवाब में कहा कि अंडाणु दूसरे महिला मरीजों से साझा किए जाने की जानकारी डोनर महिला मरीज का इलाज करने वाले डॉक्टरों की टीम को दी गई थी और पूरा रिकॉर्ड रजिस्टर में पंजीकृत है। सभी पक्षों को सुनने के बाद डीएमसी की अनुशासन समिति ने माना कि नियमों का उल्लंघन हुआ, लेकिन डॉक्टर को चेतावनी देकर शिकायत का निपटारा कर दिया।

    डॉ. नीता क्या बोलीं?

    इसके बाद पिछले वर्ष 10 अगस्त को डीएमसी ने आदेश जारी कर कहा कि ऐसे गंभीर मामले में सिर्फ चेतावनी न्याय संगत नहीं है। लिहाजा एक माह के लिए डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित कर दिया। इसके बाद डॉ. नीता सिंह ने एनएमसी में अपील की थी। उन्होंने इस मामले को राजनीति से प्रेरित और छवि खराब करने वाला बताया है।

    उन्होंने कहा निजी अस्पतालों में आईवीएफ बहुत महंगा है। कुछ लोग नहीं चाहते कि गरीब परिवारों की महिलाओं को यह सुविधा मिले। यदि पैसा कमाना होता तो निजी अस्पतालों से अब भी भारी भरकम पैकेज मिल जाएगा. लेकिन वह गरीब महिलाओं की मदद करना चाहती हैं।