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    एम्स ने विकसित किया बच्चों में सांस की दुर्लभ बीमारी PCD की जांच का आसान तरीका

    Updated: Thu, 01 May 2025 10:46 PM (IST)

    एम्स ने बच्चों में सांस की एक दुर्लभ बीमारी प्राइमरी सिलिअरी डिस्किनीशिया (PCD) की जांच के लिए एक सरल तरीका विकसित किया है। नाक से लिए गए फ्लूइड सैंपल की ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से जांच करके बीमारी का पता लगा सकते हैं। यह विधि जांच में 70% तक कारगर है।

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    एम्स ने बच्चों में सांस की दुर्लभ बीमारी प्राइमरी सिलिअरी डिस्किनीशिया की जांच का आसान तरीका खोजा है।

    राज्य ब्यूरो, जागरण, नई दिल्ली: बच्चों में सांस की जन्मजात व दुर्लभ बीमारी पीसीडी (प्राइमरी सिलिअरी डिस्किनीशिया) से जांच का आसान तरीका विकसित किया है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के नाक से फ्लूइड का सैंपल लेकर ट्रांसमिशन इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी (टीईएम) से आसानी से इस बीमारी की जांच हो सकती है।

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    पीसीडी की जांच में 70 प्रतिशत कारगर पाया गया तरीका

    यह तरीका पीसीडी की जांच में 70 प्रतिशत कारगर पाया गया है। एम्स के एनाटमी विभाग के प्रोफेसर डा. सुभाष चंद्र यादव के नेतृत्व में यह शोध किया गया है। इसमें पीडियाट्रिक विभाग के प्रोफेसर डा. काना राम जाट भी शामिल रहे।

    मेडिकल जर्नल माइक्रोस्कोपी एंड माइक्रोएनालिसिस में शोध प्रकाशित

    एम्स के डाक्टरों का यह शोध हाल ही में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मेडिकल जर्नल माइक्रोस्कोपी एंड माइक्रोएनालिसिस में प्रकाशित हुआ है। डा. सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि दस हजार में से एक बच्चे को पीसीडी की बीमारी होती है। इस बीमारी में फ्लू जैसे लक्षण होते हैं।

    जीन में म्यूटेशन के कारण फेफड़े के सिलिया सेल में खराबी आ जाती है

    जन्म के समय से ही जीन में म्यूटेशन के कारण फेफड़े के सिलिया सेल में खराबी होती है। सिलिया सेल कफ होने पर उसे बाहर निकालने का काम करता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे का कफ बाहर नहीं निकल पाता। इस वजह से बच्चे बार-बार निमाेनिया व सांस की बीमारी से परेशान होते हैं। इस बीमारी की जांच मुश्किल होती है।

    कोई एक ऐसी जांच नहीं जिससे सभी मरीज की पहचान हो सके। इस वजह से पांच से सात जांच कराने के बाद इस बीमारी की पहचान हो पाती है। इससे इलाज भी प्रभावित होता है। इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर बच्चे 20 वर्ष की उम्र जान गंवा देते हैं। इसके मद्देनजर एम्स में यह शोध शुरू किया गया।

    टीईएम तकनीक से की गई 200 बच्चों की जांच 

    टीईएम तकनीक से 200 बच्चों की जांच की गई। इस जांच से 70 प्रतिशत बच्चों में यह बीमारी होने की पुष्टि हुई। विदेश में टीईएम जांच होती है लेकिन वहां इस जांच के लिए अलग तरीका अपनाया जाता है। विदेश में इस जांच के लिए अपनाए जाने वाले तरीके से 70 प्रतिशत मरीजों की पहचान नहीं हो पाती।

    इसके अलावा विदेश में इस जांच का शुल्क 70 हजार से एक लाख रुपये है। जबकि एम्स अपने मरीजों के लिए निशुल्क यह सुविधा दे रहा है। जांच के इस तरीके में और बदलाव करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि शत प्रतिशत मामलों की पहचान सुनिश्चित हो सके।

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