AIIMS और IIT Delhi ने मिलकर तैयार किए दो AI मॉडल, इससे अस्पतालों और मरीजों की बड़ी समस्या का होगा समाधान
आईआईटी दिल्ली और एम्स ने मिलकर एक एआई मॉडल विकसित किया है जो आईसीयू में मरीजों के वेंटिलेटर पर रहने की अवधि का पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा। यह तकनीक डॉक्टरों को बेहतर योजना बनाने और अन्य मरीजों को समय पर भर्ती करने में सहायक होगी। 323 मरीजों पर किए गए अध्ययन में यह 79.1% तक सफल पाया गया। इससे अस्पतालों में मरीजों के इलाज का प्रबंधन बेहतर हो सकेगा।

रणविजय सिंह, नई दिल्ली: जिंदगी के लिए जूझते गंभीर मरीजों को जरूरत पड़ने पर सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड मिल पाना आसान नहीं होता है।
कई बार आईसीयू के लिए दर-दर भटकते मरीजों के मामले भी सामने आते रहे हैं। डाॅक्टरों के लिए भी यह अनुमान लगा पाना आसान नहीं होता कि आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर भर्ती मरीज कितने दिन में बाहर निकल पाएंगे।
ऐसी स्थिति में इलाज के लिए इंतजार कर रहे दूसरे मरीज को भर्ती करने के लिए अनुमानित समय देना भी डाॅक्टरों के लिए मुश्किल होता है।
AI बताएगा, कितने मरीजों को है वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत
अब इस काम को Artificial Intelligence (AI) आसान बनाएगा और यह बताएगा कि जरूरतमंद मरीज को कितने दिन आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखने की जरूरत पड़ेगी।
IIT दिल्ली के सेंटर फाॅर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों और एम्स ने मिलकर ऐसा एआई तकनीक विकसित की है, जो आईसीयू मेंं मरीजों के वेंटिलेटर स्पोर्ट पर भर्ती रहने की अवधि का पूर्वानुमान लगाने में मददगार बनेगी।
IIT दिल्ली के सेंटर फार बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डाॅ. अमित मैहंदीरत्ता के नेतृत्व में हुआ यह शोध हाल ही में डिजिटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
लंबे समय तक मरीज को वेंटिलेटर पर रखना भी खतरनाक
उन्होंने बताया कि लंबे समय तक वेंटिलेटर के इस्तेमाल से निमोनिया का संक्रमण व फेफड़े को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है।
इस एआई माॅडल के पूर्वानुमान से यदि यह पता चलता है कि किसी मरीज को तीन दिन से अधिक समय तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ेगा तो संक्रमण से बचाव के लिए भी डाॅक्टर इलाज में प्लानिंग कर सकते हैं।
मशीन लर्निंग का इस्तेमाल का दो एआई मॉडल बनाए
शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग टूल का इस्तेमाल करके दो तरह के एआई मॉडल विकसित किए। एक मॉडल से यह पूर्वानुमान लगाने का प्रयास किया गया कि मरीज को कितने दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होती है।
दूसरे मॉडल का मकसद यह पूर्वानुमान लगाना था कि मरीज को अल्प अवधि (तीन दिन से कम) के लिए वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होगी या अधिक दिन (तीन दिन से अधिक) के लिए।
AIIMS में 323 मरीजों पर किया गया अध्ययन
एम्स में इसका अलग-अलग तीन आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर भर्ती 323 मरीजों पर अध्ययन किया। इसमें 160 पुरुष व 163 महिला मरीज शामिल थीं।
उनकी औसत उम्र 43 वर्ष थी। 67 प्रतिशत मरीजों को सांस की गंभीर बीमारी एआरडीएस (एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम), 56.6 प्रतिशत मरीजों को दिल की बीमारी, 39.2 प्रतिशत मरीजों को किडनी व 30.9 प्रतिशत मरीजों को लिवर की बीमारी थी।
105 मरीजों को वेंटिलेटर सपोर्ट देने के लिए ट्रेकियोस्टमी प्रोसीजर कर गले में ट्यूब डाली गई थी। आइसीयू में भर्ती किए जाने के दौरान इन सभी मरीजों के क्लीनिकल पैरामीटर दर्ज किए गए थे।
अध्ययन में इन सभी मरीजों के 100 क्लीनिकल पैरामीटर को शामिल किए गए। इसके आधार पर एआई पूर्वानुमान लगाता है।
पूर्वानुमान लगाने में मिली है 79.1 प्रतिशत तक की कामयाबी
शोधकर्ता डाॅ. शिवी मैंदीरत्ता ने बताया कि यह तकनीक आईसीयू में मरीज के भर्ती मरीजों के वेंटिलेटर पर रहने की अवधि का पूर्वानुमान लगाने में 79.1 प्रतिशत कामयाब पाया गया।
ऐसे में 100 में से करीब 80 मरीजों के बारे में काफी हद तक सही-सही अनुमान लगाया जा सकता है। अभी एक अस्पताल के मरीजों के डेटा से यह अध्ययन किया गया है। कई अस्पतालों में ट्रायल के बाद पुख्ता परिणाम सामने आएगा।
डाॅ. अमित मेहंदीरत्ता कहा कि मरीजों की दबाव के तुलना में अस्पतालों में आइसीयू बेड सीमित संख्या में होते हैं।
ऐसे में यह एआई तकनीक अस्पतालों को मरीजों के इलाज का प्लानिंग करने और दूसरे मरीजों को भर्ती लेने की तारीख तय करने में मदद कर सकती है और भारत जैसे देश में इसकी मदद से अस्पतालों के मरीजों के इलाज का प्रबंधन बेहतर हो सकता है।
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