Shahi Imam of Jama Masjid: नियम दरकिनार, इमाम का पद परिवार में बरकरार; शाबान बुखारी की होगी दस्तारबंदी
ऐतिहासिक जामा मस्जिद का शाही इमाम शाबान को बनाने की घोषणा 2014 में की गई थी। उसी वर्ष इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले में सुनवाई लंबित है। रविवार के कार्यक्रम को अनधिकृत और अवैध बताते हुए याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान ने इसकी शिकायत दिल्ली पुलिस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की है। साथ ही इस पर रोक लगाने की मांग की है।

अजय राय, नई दिल्ली। ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद में इमाम पद पर नई नियुक्ति एक बार फिर विवादों में आ गई है। वर्तमान इमाम सैयद अहमद बुखारी रविवार को अपने बेटे उसामा शाबान बुखारी की इस पद पर ताजपोशी करेंगे।
इसके पहले शाबान को वर्ष 2014 में नायब इमाम घोषित किया गया था। उसी वर्ष इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले में सुनवाई लंबित है। रविवार के कार्यक्रम को अनधिकृत और अवैध बताते हुए याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान ने इसकी शिकायत दिल्ली पुलिस, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की है। साथ ही इस पर रोक लगाने की मांग की है।
जामा मस्जिद में पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा चल रहे बुखारी परिवार को कब्जे पर याचीकाकर्ता सुहैल अहमद खान ने अपने ईमेल में कहा है कि इस तरह की नियुक्ति इस्लामी कानून के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। इमाम का चयन पारिवारिक संबंधों के बजाय योग्यता और विशिष्ट इस्लामी मानदंडों के पालन पर आधारित होना चाहिए। केवल पारिवारिक संबंधों के आधार पर इमाम की नियुक्ति इस्लामी परंपरा में निष्पक्षता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध है।
नियुक्ति के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लंबित
सुहैल अहमद खान ने बताया है कि उप इमाम के रूप में शाबान बुखारी की नियुक्ति के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका लंबित है। चल रही कानूनी कार्यवाही और अदालत में दिल्ली वक्फ बोर्ड के बयान के बावजूद, जिसमें इमाम की नियुक्ति के लिए एक विशिष्ट मानदंड का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, इमाम अहमद बुखारी व्यक्तिगत लाभ और वित्तीय लाभ के लिए अपने बेटे की नियुक्ति के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
शाबान बुखारी की नियुक्ति को रोकने की कोशिश
उन्होंने कहा है कि अदालती मामले की विचाराधीन स्थिति और दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा प्रस्तुत कानूनी दलीलों को देखते हुए, यह जरूरी है कि जामा मस्जिद के मुख्य इमाम के रूप में शाबान बुखारी की नियुक्ति के लिए निर्धारित समारोह को तुरंत रोक दिया जाए। दैनिक जागरण से सुहैल ने कहा कि मामला जब कोर्ट में चल रहा है तो अहमद बुखारी जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं।
इस मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होनी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड फिलहाल प्रशासक के हवाले और इमाम की नियुक्ति का अधिकार वक्फ बोर्ड को है। ऐसे में मौके का फायदा उठाकर अहमद बुखारी अपने बेटे की ताजपाशी कर रहे हैं।
वक्फ ने बुखारी की नियुक्ति पर जताई थी आपत्ति
सुहैल अहमद खान ने बताया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इसके खिलाफ कई बार आवाज उठाई। वक्फ बोर्ड का तर्क है कि बुखारी उसके मुलाजिम हैं, इसलिए इमाम की नियुक्ति का अधिकार केवल उसे है। वक्फ ने साल 2000 में खुद अहमद बुखारी की नियुक्ति के दौरान आपत्ति जताई थी, करीब आठ साल बाद बुखारी की नियुक्ति को मान्यता मिली थी।
पीढ़ी दर पीढ़ी कब्जा
भारत में शाही इमाम जैसा कोई पद नहीं है। यह ऐसी उपाधि है जिस पर बुखारी परिवार अपना हक जताता आया है। तबसे यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता चला आ रहा है। वर्ष 1650 के बाद से अब तक मौलाना अब्दुल गफूर शाह बुखारी के परिवार के लोग ही जामा मस्जिद के शाही इमाम बनते चले आए हैं। मुगल शासन के खत्म होने के बाद, उन्होंने अपने आप को ही यह उपाधि दे दी है। सरकार ने कभी भी इस पद को न तो बनाया और न ही इसे स्वीकृति दी है।
राजनीतिक में भी है प्रभाव
भले ही शाही इमाम पद का कोई आधिकारिक आधार न हो, लेकिन देश की राजनीति में बुखारी परिवार का भी खासा रसूख है। अहमद बुखारी के पिता अब्दुल्ला बुखारी अलग-अलग मुस्लिम दलों को अपना समर्थन दे चुके हैं। अहमद बुखारी के पिता ने 1977 में जनता पार्टी और 1980 में कांग्रेस को भी समर्थन दिया था। उसके बाद से देश की अलग-अलग पार्टियां शाही इमाम का समर्थन लेने जामा मास्जिद के दर पर आने लगीं।
इनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ ही सोनिया गांधी का भी नाम शामिल है। वर्ष 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को भी शाही इमाम के समर्थन की जरूरत पड़ी थी. तब बुखारी ने मुसलमानों से भाजपा को समर्थन देने की अपील की थी।
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