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    अब आदिवासी समाज तक आसानी से पहुंचेगी स्वास्थ्य सेवाओं और योजनाओं की जानकारी, मंत्रालय ने बनाया यह एप

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 10:24 PM (IST)

    जनजातीय कार्य मंत्रालय ने आदिवासी भाषाओं जैसे भीली संथाली के संरक्षण हेतु आदि वाणी एप बनाया है। आईआईटी दिल्ली के नेतृत्व में विकसित यह ऐप हिंदी और अंग्रेजी संदेशों को आदिवासी भाषाओं में अनुवादित करेगा। फिलहाल बीटा वर्जन लॉन्च हो रहा है जिसमें संथाली भीली मुंडारी और गोंडी भाषाएं शामिल हैं। इसका उद्देश्य भाषाओं का संरक्षण और आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ना है।

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    अब आदिवासी समाज तक आसानी से पहुंचेगी स्वास्थ्य सेवाओं और योजनाओं की जानकारी। फाइल फोटो

    उदय जगताप, नई दिल्ली। भारत की विलुप्त हो रही आदिवासी भाषाओं जैसे भीली, संथाली के संरक्षण और उनके बोलने वालों तक स्वास्थ्य सेवाओं व सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुँचाने का काम आदि वाणी ऐप के ज़रिए किया जाएगा। एआई आधारित ऐप में हिंदी और अंग्रेज़ी में संदेश डालते ही वह आदिवासी भाषाओं में टेक्स्ट या ऑडियो के रूप में उपलब्ध होगा।

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    इसे जनजातीय कार्य मंत्रालय ने तैयार किया है। इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के नेतृत्व में देश के आदिवासी केंद्रों और तकनीकी संस्थानों ने तैयार किया है। फ़िलहाल इसका बीटा वर्ज़न लॉन्च किया जा रहा है। जो जल्द ही प्ले स्टोर पर उपलब्ध होगा।

    यह ऐप जनजातीय गौरव वर्ष के तहत विकसित किया गया है और इसका उद्देश्य आदिवासी भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और डिजिटल पुनरुत्थान के साथ-साथ आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ना है।

    ऐप तैयार करने में शामिल आईआईटी दिल्ली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफ़ेसर संदीप कुमार ने बताया कि "आदि वाणी" एक उन्नत एआई-आधारित अनुवाद प्लेटफ़ॉर्म है, जो हिंदी-अंग्रेज़ी और आदिवासी भाषाओं के बीच रीयल-टाइम अनुवाद (टेक्स्ट और स्पीच) की सुविधा प्रदान करेगा। ऐप के अलावा, इसका इस्तेमाल एक समर्पित वेब पोर्टल के ज़रिए भी किया जा सकेगा।

    इस परियोजना को तैयार करने में बिट्स पिलानी, आईआईआईटी हैदराबाद और आईआईआईटी नवा रायपुर जैसे अग्रणी संस्थान शामिल हैं। इसके साथ ही, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मेघालय के जनजातीय शोध संस्थान भी इस कार्य में सहयोगी रहे हैं।

    फ़िलहाल, चार और भाषाएं जोड़ी जाएंगी

    शुरुआत में, ओडिशा की संथाली, मध्य प्रदेश की भीली, झारखंड की मुंडारी और छत्तीसगढ़ की गोंडी (छत्तीसगढ़) को 'आदि वाणी' में शामिल किया गया है। भविष्य में ओडिशा की कुई और मेघालय की गारो भाषा को भी जोड़ा जाएगा।

    ऐप ऐसे काम करेगा

    यह ऐप दो हफ़्तों में प्ले स्टोर पर उपलब्ध होगा। आईआईटी दिल्ली की शोध छात्रा पूजा सिंह ने बताया कि ऐप में "अबाउट यूज़र" कॉलम होगा। इसमें इसके इस्तेमाल की जानकारी मिल सकेगी। हिंदी और अंग्रेज़ी में टेक्स्ट डालने पर, यह उसका चारों जनजातीय भाषाओं में अनुवाद कर देगा।

    इसके नीचे एक माइक आइकन होगा, जिस पर क्लिक करने के बाद टेक्स्ट ऑडियो के रूप में उपलब्ध होगा। इसमें ऑडियो डालने पर चारों भाषाओं में टेक्स्ट भी उपलब्ध होगा। ऑडियो भी ऑडियो फॉर्म में प्राप्त किया जा सकेगा। चारों भाषाओं की पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा सकेगा।

    द्विभाषी शब्दकोश और डिजिटल रिपॉजिटरी तैयार की जाएगी। सरकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री के भाषणों के उपशीर्षक आदिवासी भाषाओं में उपलब्ध कराए जाएँगे। स्वास्थ्य अभियानों के प्रसार और संचार में यह महत्वपूर्ण होगा। आदिवासी इलाकों में सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुँचाई जा सकेगी।

    काम आसान नहीं था

    पूजा सिंह ने बताया कि गोंडी, संथाली, भीली और मुंडारी भाषाओं में बहुत कम साहित्य उपलब्ध है। इन्हें जानने वाले शिक्षक ढूँढे गए। उन्हें छुट्टी देकर काम पर लगाया गया। उन्होंने हाथ से लिखकर डेटा उपलब्ध कराया है। जिसे टाइप करके ऐप में डाला गया है।

    इन भाषाओं के टाइपिस्ट ढूँढना चुनौतीपूर्ण था। सभी लोगों को मध्य प्रदेश से आईआईटी दिल्ली लाया गया और उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। उनकी कड़ी मेहनत के बाद लगभग एक साल में ऐप तैयार हो सका।

    जनजातीय भाषाओं का संरक्षण किया जाएगा

    भारत में अनुसूचित जनजातियों की 461 भाषाएं और 71 मातृभाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें से 81 भाषाएँ संवेदनशील हैं और 42 भाषाएँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। इन भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण सीमित है और पीढ़ियों के बीच संवाद कम हो रहा है। "आदि वाणी" इस चुनौती का समाधान प्रस्तुत करती है।