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    दिल्ली में खोई जमीन वापस पाना AAP के लिए मुश्किल, एक के बाद एक सत्ता फिसलती गई; जानें कहां हुई चूक

    Updated: Sat, 26 Apr 2025 06:00 AM (IST)

    लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हार के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की सत्ता भी खो दी है। भ्रष्टाचार के आरोपों और पार्टी के भीतर कलह के कारण आप अपने पार्षदों को एकजुट रखने में विफल रही। इससे पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है और दिल्ली में खोई जमीन वापस पाना आप के लिए मुश्किल हो गया है।

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    एमसीडी में बीजेपी का मेयर बनते ही आप का शासन खत्म।

    संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव और उसके विधानसभा चुनाव हारने के बाद अब नगर निगम की सत्ता भी आम आदमी पार्टी के हाथ से चली गई। दिसंबर 2022 में हुए चुनाव में आप ने भाजपा को हराकर निगम की सत्ता प्राप्त की थी। लेकिन, वह उसे कायम नहीं रख सकी। अपने पार्षदों को एकजुट रखने में असफल रही पार्टी ने महापौर चुनाव में बिना लड़े हथियार डाल दिए। इससे जनता के साथ ही कार्यकर्ताओं में भी उसकी पकड़ कमजोर होगी। इस कारण सत्ता में उसकी वापसी के रास्ते मुश्किल हो गए हैं।

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    भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी 10 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता में रही। नवंबर, 2012 में आप का जन्म हुआ और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई और मुफ्त बिजली-पानी के मुद्दे पर वर्ष 2013 में वह दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने में सफल रही। कांग्रेस की मदद से बनी पहली सरकार मात्र 48 दिनों तक चली। उसके बाद वर्ष 2015 व वर्ष 2020 में बड़ी जीत के साथ आप ने सरकार बनाई।

    पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे

    वर्ष 2022 में वह 15 वर्षों से नगर निगम का शासन संभालने वाली भाजपा को हराने में सफल रही। इस तरह से दिल्ली सरकार के साथ ही निगम का शासन भी उसके हाथ में आ गई। लेकिन, यहीं से पार्टी की मुश्किल शुरू हो गई। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का वादा कर सत्ता में आने वाली आप सरकार पर शराब घोटाले सहित कई गंभीर आरोप लगे। पार्टी के मुखिया व तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कई मंत्री व नेता जेल गए।

    सीएम आवास के नवीनीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप

    केजरीवाल पर नियमों का उल्लंघन कर मुख्यमंत्री आवास के नवीनीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप लगा। भाजपा ने मुख्यमंमत्री आवास को शीशमहल का नाम देकर उन्हें कठघऱे में खड़ा किया। इससे पार्टी की छवि खराब हुई। यही कारण है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ समझौता करने के बाद भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। एक भी सीट नहीं जीत सकी।

    भ्रष्टाचार के आरोप से कई नेता और कार्यकर्ता नाराज

    विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आप सरकार व नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार व शीशमहल के मुद्दे को आक्रामक ढंग से उठाया। आप सरकार के मुफ्त बिजली-पानी की योजना को भाजपा ने जारी रखने की घोषणा कर उसके वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने में सफल रही। इस तरह से भाजपा ने दिल्ली की सत्ता से बाहर करने के साथ ही उससे मुफ्त बिजली-पानी का मुद्दा भी छीन लिया। आप सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से पार्टी के कार्यकर्ता व कई नेता भी नाराज हो गए।

    आप के पास सिर्फ 113 पार्षद ही रह गए

    विधानसभा चुनाव से पहले कई विधायक ने पार्टी छोड़ दी। पार्षदों को भी एकजुट रखने में आप नेतृत्व असफल रहा। यही कारण है कि निगम के 250 में से 134 वार्डों में जीत प्राप्त करने वाली पार्टी के पास मात्र 113 पार्षद रह गए। महापौर चुनाव में अपनी संभावित हार को देखते हुए उसने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया। इससे कार्यकर्ताओं में निराशा है और आने वाले दिनों में पार्टी की परेशानी बढ़ेगी। उसके लिए अपनी खोई जमीन पाना आसान नहीं रह गया है।

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