38 साल पहले हुई थी दिल्ली में हैवानियत, दो भाइयों को सरेआम जला दिया था जिंदा
फैसला आने पर उन परिवार वालों के चेहरे पर थोड़ी खुशी की लहर जरूर देखने को मिली, लेकिन उन्हें मलाल इस बात का है कि इंसाफ मिलने में बहुत समय लग गया।
नई दिल्ली [शुजाउद्दीन] दिल्ली के त्रिलोकपुरी में रहने वाले सिख समुदाय के लोग आज भी 1984 के दंगे को याद करते हैं तो वह सहम जाते हैं। दंगे में जान गंवाने वाले परिवार वालों की आंखें आज भी रोती हैं। सिख दंगों पर कोर्ट का फैसला आने पर उन परिवार वालों के चेहरे पर थोड़ी खुशी की लहर जरूर देखने को मिली, लेकिन उन्हें मलाल इस बात का है कि इंसाफ मिलने में बहुत समय लग गया। दंगे के बाद सिखों की एक बड़ी आबादी इस इलाके को छोड़कर सिख बहुल इलाके में जाकर बस गई है।
आंखों के सामने भाइयों को जिंदा जलते देखा
सरदार कंवलजीत सिंह अपने परिवार के साथ त्रिलोकपुरी-30 ब्लॉक में रहते हैं। 31 अक्टूबर 1984 की सुबह उनके लिए आम सुबह की तरह थी, घर से नाश्ता करने के बाद वह अपने बड़े भाई बलजीत सिंह और छोटे भाई रणवीर सिंह के साथ हर रोज की तरह लक्ष्मी नगर में काम पर जाने के लिए निकले। बस से जब वह लक्ष्मी नगर पहुंचे तो रास्ते का जो मंजर देखा उसे देखकर उनका दिल दहल गया। लक्ष्मी नगर में दंगा करने वाले लोगों ने उनकी बस को रोक लिया और सभी यात्रियों को बीच सड़क पर उतरवा दिया। उस वक्त तीनों भाइयों ने किसी तरह से भागकर लक्ष्मी नगर गुरुद्वारे पहुंचकर जान बचाई, लेकिन दंगाई यहां भी पहुंच गए और गुरुद्वारे को आग लगा दी। यहां से भी उन्हें भागना पड़ा। रातभर वह लक्ष्मी नगर में एक रिश्तेदार के घर छुपे। सूरज उगने से पहले ही तीनों यह सोचकर पैदल ही त्रिलोकपुरी के लिए निकल पड़े कि वहां पर सिख ज्यादा है उन्हें कुछ नहीं होगा, जब त्रिलोकपुरी-36 ब्लॉक पर वह पहुंचे तो यहां पर दंगाइयों ने तीनों को पकड़ लिया। कंवलजीत के सामने उनके दोनों भाइयों के गले में टायर डालकर उन्हें जिंदा जला दिया, कंवलजीत सिर्फ इसलिए बच गए, क्योंकि जिन लोगों ने उन्हें पकड़ा हुआ था वह अन्य सिखों को पकड़ने लगे। कोर्ट के फैसले से वह खुश हैं, लेकिन जो जख्म सिख दंगे ने उनके परिवार को दिए है, वह कभी भर नहीं पाएंगे।
गुरु ग्रंथ साहिब को भी जला दिया था
त्रिलोकपुरी-32 ब्लॉक गुरुद्वारे के सेवादार व 84 दंगे के पीड़ित प्रताप सिंह ने बताया कि वह परिजनों के साथ सिख दंगे के समय कल्याणपुरी में रहते थे, वह नोएडा की एक निजी कंपनी में काम करते थे। इलाके में इतने दंगे हुए कि सिख अपने घरों में कैद हो गए। दंगइयों ने घरों से निकालकर उन्हें जिंदा जला दिया। उनके घर के आसपास जो भी सिख रहते थे, सभी को मार दिया गया। उनका परिवार चार दिन तक घर की छत पर रहा। पुरुषों ने अपनी पग कटवा ली, जो छोटे बच्चे थे उनके बाल खोलकर उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनाए गए। दंगे के कुछ दिनों बाद वह 32 ब्लॉक के गुरुद्वारे में रहने आ गए। इसी गुरुद्वारे में दंगाइयों ने गुरु ग्रंथ साहिब तक को जला दिया।
जान बचाने को पिता ने मेरी भी कटवा दी थी पग: चरणजीत
सिख कौम की पहचान पगड़ी (पग) होती है। त्रिलोकपुरी-29 ब्लॉक में रहने वाले चरणजीत सिंह व उनके पिता को अपनी जान बचाने के लिए अपनी पग कटवानी पड़ी। तीन दिन तक चरणजीत व उनके पिता अलग-अलग इलाकों में हिंदू व मुस्लिम परिवारों के घरों में छुपे रहे। उस वक्त चरणजीत सरकारी स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन वह इलाके में बने ग्राउंड में अन्य बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे, तभी जोर-जोर की आवाज आनी शुरू हुई कि सिखों को मार दो। बच्चों ने उन्हें किसी तरह घर पहुंचाया। सभी को पता था कि घर सरदारों का है, इसलिए उनकी मां घर के अन्य सदस्यों को लेकर पड़ोसी के घर में छुप गईं। पता न चले की वह सिख है इसलिए पिता ने अपनी व बेटे की पग कटवा दी। दंगइयों ने उनके घर को जलाने के साथ ही तोड़फोड़ की। कई दिनों तक परिवार भूखा-प्यासा रहा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।