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चलो गांव की ओर : नानकहेड़ी गांव (मटियाला विधानसभा क्षेत्र)

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : नजफगढ़ के अंतिम छोर पर बसे नानकहेड़ी गांव, हरियाणा के

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Jan 2018 07:34 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jan 2018 07:34 PM (IST)
चलो गांव की ओर : नानकहेड़ी गांव (मटियाला विधानसभा क्षेत्र)
चलो गांव की ओर : नानकहेड़ी गांव (मटियाला विधानसभा क्षेत्र)

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : नजफगढ़ के अंतिम छोर पर बसे नानकहेड़ी गांव, हरियाणा के समृद्ध शहर गुरुग्राम से सटा हुआ है। गुरुग्राम के सामने यह गांव बौना नजर आता है। ग्रामीणों से परिवहन सुविधाएं पहले ही छीन ली गई। ऊंचाई पर पाइप लाइन होने की वजह से जल बोर्ड का पानी गांवों में नहीं पहुंचता है। साफ-सफाई की व्यवस्था पहले ही काफी खराब है। कूड़े से फिरनी की सड़कें भरी हुई हैं। फिरनी की सड़कों पर न तो नालियां बनाई गईं और न ही गांव से गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था की गई। क्षेत्र में विकास कार्य भी अधूरा पड़ा है। दो साल पहले भी स्थिति यही थी, जैसी आज है।

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ऐतिहासिक विशेषता

नानकहेड़ी गांव 1509 में बसा। यहां के पूर्वज हरियाणा के रेहणवा के निवासी थे जो इस समय गुड़गांव क्षेत्र में है। तीन सौ साल पहले बाढ़ और सूखे की वजह से प्रभावित दिल्ली के मुनिरका गांव के निवासी नानकहेड़ी में आकर रुके थे। बाद में वे वापस चले गए। चूंकि, इस गांव में मुनिरका के लोग रह चुके हैं, इसलिए नानकहेड़ी गांव और मुनिरका गांव के लोगों के बीच आपसी भाईचारा है। इस गांव में भगवान शंकर की पूजा होती है। यहीं पर 1980 में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। गुरुग्राम के सेक्टर 107 और 108 इसी गांव के समीप हैं।

गांव की आबादी -1500

मतदाताओं की संख्या-700

साक्षरता : 95 फीसद

बर्बाद हो गई फिरनी की सड़क

2002 में गांव की फिरनी का निर्माण हुआ था। उसी दौरान पक्की सड़क भी बनाई गई थी। तब से आज तक इस फिरनी की सड़क को दोबारा नहीं बनाया गया। अब हालात ये हो गए हैं कि यहां जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं। फिरनी पर रोशनी की व्यवस्था नहीं है। बारिश के दौरान पानी की निकासी की व्यवस्था भी नहीं है। ऐसे में गांव की गलियों और सड़कों पर पानी भर जाता है। चकबंदी के बाद गांव से निकलकर लोगों को मकान बनाने की आजादी मिली, लोगों ने घर बनाना शुरू कर दिया, लेकिन सड़क आज भी कच्ची है। गंदा पानी इन्हीं सड़कों पर बहता है। इसलिए फिरनी की सड़कें चलने लायक नहीं रह गई।

गंदे पानी की निकासी का नहीं है इंतजाम

गांव की गलियों की सड़कें दुरुस्त हैं, नालियां भी बन गई है। लेकिन, गांव के घरों से निकले गंदे पानी की निकासी का इंतजाम नहीं है। आधे गांव से निकला गंदा पानी सड़कों पर फैलता रहता है। जिनके घरों के सामने खेत हैं वे गड्ढे खोदकर पानी जमा करते हैं, बाद में खेतों में पाइप के जरिए पानी को पहुंचा दिया जाता है। गांव के अन्य हिस्से से गंदे पानी की निकासी मंदिर के समीप जोहड़ में है। जोहड़ की सफाई नही होती है अब उसमें जंगली घासें उग आई हैं। गांव में एक प्राचीन मंदिर है बारिश के दौरान गांव का यह मंदिर पानी में डूब जाता है। यहां से जलनिकासी के लिए पंप लगाया जाता है।

बदहाल है सफाई की व्यवस्था

गांव में डलावघर की आज तक व्यवस्था नहीं हुई। सफाई के नाम पर तीन निगमकर्मी को तैनात किया गया है। वे सप्ताह में एक दिन सफाई करने के लिए आते हैं, लेकिन वे भी गांव से कूड़ा उठाकर फिरनी व सड़क के किनारे उड़ेल देते हैं। गांव की नालियां भी बीच-बीच में बंद पड़ी हैं। नालियों में गाद जमा रहता है। इसकी भी नियमित सफाई नहीं होती। यहां तीन प्लास्टिक का डस्टबिन जरूर रखा गया है, लेकिन इसे ऐसी जगहों पर लगाया गया है जहां पर कोई कूड़ा डालने नहीं आता है। फिरनी की सड़क पर कूड़ा फैला रहता है। इसे अभी तक निपटाने का प्रयास नहीं किया गया।

पहले हर आधे घंटे पर दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसें दौड़ती रहती थी। अब इस गांव में डीटीसी की बसें आनी बंद हो चुकी हैं। डीटीसी की एक और दो बसें समीप के गांव वडुसराय में रोक दी जाती हैं। गांव में सिर्फ रविवार को ही डीटीसी की बसें इक्का दुक्का दिखती है। वह भी गांव में पहुंचने के दो घंटे बाद चलती हैं। गांव में कुछ लोग ऐसे हैं जो डीटीसी का बस के अलावा किसी और वाहन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते।

अतर ¨सह

गांव में जमीन की कमी नहीं है, फिर भी बच्चों के खेलने के लिए कोई पार्क नहीं बना। स्टेडियम की भी व्यवस्था नहीं की गई है। गांव की लड़कियों को भी दिल्ली व गुरुग्राम पढ़ने आने जाने के लिए बसों की खोज में द्वारका एक्सप्रेस-वे जाना पड़ता है। नजफगढ़ की ओर आने जाने के लिए छावला गांव उतरना पड़ता है। फिर वहां से गांव तक पैदल पांच किलोमीटर जाना पड़ता है।

र¨वद्र कुमार

छावला से कांगनहेड़ी तक की सड़क काफी पतली है। ऐसे में आमने-सामने से वाहन नहीं निकल सकते हैं। गांवों की फिरनी इतनी पतली है कि यहां पर भी किसी न किसी के वाहन खड़े होते हैं। ऐसे में यहां से बसों का निकलना मुश्किल होता जा रहा है। प्रशासन को छावला से नानकहेड़ी तक बसें चलाने की दिशा में काम करना चाहिए।

मुकेश कुमार

पिछले तीन साल से यही कहा जा रहा है कि गांव की सड़कों को दुरुस्त किया जाएगा। बीच-बीच में यह भी बताया गया कि गांव की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए टेंडर हो चुका है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। इन तीन सालों के बीच गांव से निकलने वाली सड़क पूरी तरह से चौपट हो गई। मरम्मत की जरूरत भी नहीं समझी गई।

सुरेंद्र

मंदिर के पीछे की गली में बिजली के तीन खंभे पर स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। तीनों ही लाइटें बंद पड़ी हैं। लोगों को आने जाने में परेशानी होती है। बिजली के कंपनी के अधिकारी छापामारी करने के लिए जरूर आते हैं। बिजली की लाइन में गड़बड़ी होने पर नहीं आते हैं।

संग्राम

गांव में रास्तों पर रोशनी का उचित प्रबंध नहीं है। अधिकांश स्ट्रीट लाइटें बंद पड़ी हैं। शिकायत करने के कई दिन बाद एक बिजलीकर्मी आता है और एक दो खंभों की लाइटों को दुरुस्त करने के बाद चला जाता है। ऐसे में गांव के लोगों को इन स्ट्रीट लाइटों को दुरुस्त करानी पड़ती है। अघोषित बिजली की कटौती भी हो रही है।

हरीश

सड़क, सीवर की व्यवस्था हर गांव में हो रही है। जो गांव बच गए हैं अगले वित्तीय वर्ष के दौरान उन गांवों की सड़कें दुरुस्त करा दी जाएंगी। गांवों में विकास की भी पूरी संभावना है। इसमें यहां के संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। गांवों के लोगों के पास भी व्यवस्थाएं पहुंचे, इसके लिए हर संभव प्रयास होगा। सड़कों को दुरुस्त कराया जाएगा। बसें भी चलेंगी। जोहड़ का सुंदरीकरण और गंदे पानी की निकासी का भी इंतजाम होगा। प्राथमिकता के आधार पर विकास को अंजाम दिया जाएगा।

गुलाब ¨सह, विधायक, मटियाला

निगम के सफाईकर्मियों को हिदायत भी दी गई है कि कूड़ा डलावघर में डालें। गांव के लोगों को अगाह करने के लिए बोर्ड भी लगाया गया है। चूंकि, यह सब पहले से चला आ रहा है, इसलिए कोई सुनने को तैयार नहीं है। फिर भी कोई कूड़ा डालते पकड़ा जाएगा तो उसका चालान होना भी तय है। गांव में डलावघर की योजना पर काम चल रहा है। इसके लिए जमीन की तलाश चल रही है। गांव में एक पार्क बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है।

दीपक मेहरा, निगम पार्षद (घुम्मनहेड़ा वार्ड)


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