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    जिहाद का एलान कर घिरे मौलाना, मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने महमूद मदनी को बताया 'विभाजनकारी'

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 12:32 PM (IST)

    महमूद मदनी के 'जिहाद' वाले बयान से विवाद उत्पन्न हो गया है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मदनी को 'विभाजनकारी' बताते हुए उनकी आलोचना की है, और उनके बयान को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताया है। बुद्धिजीवियों ने युवाओं को गुमराह करने का आरोप लगाया और माफी की मांग की है। सोशल मीडिया पर भी इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

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    जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की फाइल फोटो। 

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारत में जिहाद का एलान कर देश के बहुसंख्यकों में चिंता की लहर पैदा करने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी अब मुस्लिम समाज में ही घिरने लगे हैं। देश के प्रतिष्ठित मुस्लिम नेतृत्व ने मौलाना महमूद मदनी के बयानों की कड़ी निंदा की है। साथ ही उनके चाचा मौलाना अरशद मदनी को भी निशाने पर लेते हुए दोनों को 'विभाजनकारी' बताया है।

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    मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने कहा है कि ये दोनों मदनी, जो दारुल उलूम देवबंद जैसे पवित्र धार्मिक संस्थान से जुड़े हैं, ने समुदाय के नाम पर विवादित और विभाजनकारी बयान दिए हैं, जिन्हें भारतीय मुसलमान नहीं मानते। महमूद मदनी ने हाल ही में भोपाल में जमीयत की बैठक में कहा है कि “इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने जिहाद जैसी इस्लाम की पवित्र अवधारणा को दुर्व्यवहार, अव्यवस्था और हिंसा से जुड़े शब्दों में बदल दिया है।

    महमूद मदनी ने क्या बायन दिया था?

    लव जिहाद, लैंड जिहाद, तालीम जिहाद और थूक जिहाद जैसे जुमले इस्तेमाल करके मुसलमानों को गहरी ठेस पहुंचती है और उनके धर्म का अपमान होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार और मीडिया में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई शर्म महसूस नहीं करते। न ही उन्हें पूरे समुदाय को ठेस पहुंचाने की परवाह है। ये तो पुराने दौर से चला आ रहा है। कहीं पर कोई आतंकवादी घटना हो जाती है तो उसको जिहाद बता दिया जाता है।
    मुसलमानों के ऊपर गलत आरोप लगाए जाते हैं। जब-जब जुल्म होगा तब-तब जिहाद होगा।”

    इन बयानों की प्रतिक्रिया में मौलाना उमर अहमद इलयासी (मुख्य इमाम, ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन), फिरोज बख्त अहमद (पूर्व कुलपति व मौलाना आजाद के परपोते), प्रो. डॉ. मोहम्मद तैयब सिद्दीकी (प्रसिद्ध वकील), इकबाल मोहम्मद मलिक (व्यवसायी), और मोहम्मद अहमद (संस्थान और समाचार के प्रबंधक) ने मदनी के इस बयान के खिलाफ एकजुट होकर अपनी निंदा जताई है।

    संयुक्त सार्वजनिक पत्र जारी कर सभी बुद्धिजीवियों ने कहा कि ये बयान देश की शांतिपूर्ण सामाजिक स्थिति को खराब करने वाली नफरत और दंगा फैलाने वाली बातें हैं, और ये भारत के सद्भाव एवं शांति के दर्शन के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि भारत सद्भाव के धर्म, सूफी और भक्ति संतों का देश है, और हमें इसे "जगत गुरु" के रूप में स्थापित करना चाहिए।

    इस बयान में मदनियों के राजनीतिक रूप से बदलते हुए रुख और उनकी विवादास्पद बयानबाजी को देश में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाली बताया गया है। हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि मदनी परिवार भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता और वे भारत को "दारुल अमन" यानी शांति का घर मानते हैं, जहां सभी धर्मों का सम्मान हो। इस प्रकार यह बयान भारत के मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की ओर से तमाम मुसलमानों के नाम पर एकता, सद्भाव और शांति की बात करता है, और देश को धर्मनिरपेक्षता एवं सहिष्णुता के पथ पर आगे बढ़ाने का आह्वान करता है।