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    यहां होते हैं सादगी, ईमानदारी और दृढ़ता के दर्शन

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 01 Oct 2018 10:07 PM (IST)

    फोटो: 1 डेल 221 से 225 तक - जनपथ रोड स्थित 1 मोती लाल नेहरू प्लेस में हैं पूर्व प्रधानमंत्री

    यहां होते हैं सादगी, ईमानदारी और दृढ़ता के दर्शन

    नेमिष हेमंत, नई दिल्ली

    जनपथ रोड स्थित 1 मोती लाल नेहरू प्लेस बंगला, सादगी, ईमानदारी और दृढ़ प्रतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन को आत्मसात किए हुए है। शास्त्री जब प्रधानमंत्री बने तब भी उन्होंने इस बंगले को नहीं छोड़ा। अब भी उनके द्वारा यहां की खाली जमीन में खेती कर उगाई गई गेहूं की बालियां संभाल कर रखी गई हैं। देश में जब अकाल पड़ा तो हर सोमवार को उपवास रखने का संकल्प उन्होंने लिया, जिसे तब पूरे देश ने अपना लिया था। यहीं से शास्त्री जी ने 'जय जवान-जय किसान' का नारा दिया। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इसी बंगले के एक कमरे में बने वॉर रूम से वह युद्ध पर नजर रखते थे और सेना को आवश्यक दिशा-निर्देश देते थे।

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    यहां का हर कमरा और हर सामान उनके आचार-विचार और व्यवहार को अब भी शिद्दत से जी रहा है। इस भंवन को लाल बहादुर शास्त्री स्मारक नाम दिया गया है।

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    जमीन पर बैठकर खाते थे खाना

    खाने के लिए टेबल व कुर्सियां होने के बावजूद वह जमीन पर बैठकर खाना खाते थे। सिर्फ मेहमानों के लिए खाने का टेबल प्रयोग में आता था। वह पलंग की जगह चौकी पर पतले गद्दे पर सोते थे तो साधारण बुनाई वाली कुर्सी पर बैठते थे।

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    बचत की कद्र, धूप में सुखाते थे साबुन

    शास्त्री जी बचत तो तवज्जो देते थे। नहाने के बाद साबुन धूप में रख देते थे। ताकि वह जल्द न गले और ज्यादा दिनों तक चले। साबुन की टिक्की के साथ दिनचर्या में प्रयोग होने वाले सामान उनके साधारण जीवन की कहानी बताते हैं।

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    नेहरू ने दिया कोट तो इंदिरा ने दी टीवी

    एक बार कश्मीर में तनाव पसर गया था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मंत्रिमंडल के सदस्य शास्त्री को कश्मीर जाने को कहा। जब वह कश्मीर जाने लगे तो उनके बैग में मात्र दो कपड़े थे। तब नेहरू ने उनको अपना कोट दे दिया, क्योंकि कश्मीर में उन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। वह कोट आज भी संभाल कर रखी हुई है। इसी तरह भारत में आया पहला रंगीन टेलीविजन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शास्त्री जी की पत्नी ललिता को उपहार में दिया था। वह भी चालू हालत में रखी हुई है।

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    शास्त्री की याद को संजोएगा पीएनबी

    शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बने तो घर वालों के दबाव में उन्होंने कार लेना मंजूर किया। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने लोन दिया। पूरा लोन शास्त्री जी नहीं चुका पाए कि ताशकंद में संदिग्ध हालत में उनका निधन हो गया। तब उनकी पत्नी ने पेंशन से किस्त चुकाना शुरू किया। आखिरकार अंतिम के चार किस्त बैंक ने माफ कर दिए। अब द्वारका में बन रहे पीएनबी की इमारत में बैंक शास्त्री जी से जुड़ी यादों का जिक्र करेगा।

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    जब शास्त्री ने छू लिए थे बेटे के पैर

    शास्त्री जी संस्कारों को लेकर संजीदा थे। उनके पुत्र अनिल शास्त्री याद करते हुए बताते हैं कि एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बड़ों का पैर सही से नहीं छूता, घुटना छूकर उठ जाता हूं। मैंने इससे अनभिज्ञता जताई तो उन्होंने मुझे खड़ा होने को कहा। जब मैं खड़ा हुआ तो उन्होंने झुक कर मेरे पैर छू लिए और बोला ऐसे पैर छूते हैं। उनके पैर छूने से उन्हें ग्लानि हुई और वो रो पड़े थे।