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    दिल्ली विधानसभा समन पर विवाद: केजरीवाल और सिसोदिया फिर अनुपस्थित, कोर्ट ने सुनवाई 12 दिसंबर तक टाली

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 01:18 AM (IST)

    दिल्ली विधानसभा द्वारा जारी समन पर विवाद जारी है। मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री सिसोदिया की अनुपस्थिति के कारण कोर्ट ने सुनवाई 12 दिसंबर तक स्थगित कर दी। केजरीवाल और सिसोदिया ने समन को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया है, जिससे कोर्ट अब इस मामले पर गहराई से विचार करेगी।

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। फांसी घर के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा की विशेषाधिकारी समिति द्वारा समन जारी होने के बावजूद भी पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समिति के समक्ष पेश नहीं हुए।

    विधानसभा सचिवालय ने सोमवार को यह तर्क केजरीवाल व सिसोदिया की उस याचिका पर दिया, जिसमें उन्होंने फांसी घर मुद्दे पर जारी समन को चुनौती दी है। विस सचिवालय की तरफ से न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ के समक्ष कहा गया कि पेश न होने के पीछे उन्होंने अदालत में उनकी याचिका लंबित होना बताया है।

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    सचिवालय की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की तरफ से लगातार सहयोग नहीं किया जा रहा है। वे एक बार भी समिति के सामने पेश नहीं हुए हैं। इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत इस मामले में कोई अंतरिम आदेश पास नहीं किया है।

    मेहता ने कहा कि अदालत के सामने यह बयान देने के बावजूद कि वे अंतरिम राहत के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं, याची समिति के सामने पेश नहीं हुए हैं और याचिका के लंबित होने का हवाला दिया। उक्त दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने मामले की सुनवाई 12 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

    याचिका में केजरीवाल और सिसोदिया ने तर्क दिया है कि विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही किसी शिकायत, रिपोर्ट या विशेषाधिकार हनन या अवमानना के प्रस्ताव पर आधारित नहीं है। उन्होंने तर्क दिया है कि विधानसभा नियमों के नियम 66, 68, 70, 82 या अध्याय 11 के तहत विशेषाधिकार समिति के लिए लागू किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।

    यह भी कहा कि समिति का उद्देश्य ढांचे की प्रामाणिकता की जांच करना प्रतीत होता है, जो दिल्ली विधानसभा और विशेष रूप से इसकी विशेषाधिकार समिति के अधिकार क्षेत्र से बाहर का कार्य है। समन को रद करने का निर्देश देने की मांग करते हुए केजरीवाल व सिसोदिया ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।

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