संवादी में ¨हदी साहित्य को मिलता है नया आयाम
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली 'संवादी' का मंच आज से नवाबों की नगरी लखनऊ में सज जाएगा। तीन दि
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली
'संवादी' का मंच आज से नवाबों की नगरी लखनऊ में सज जाएगा। तीन दिनों तक लखनऊ साहित्य, रंगमंच, परंपरा, सिनेमा, धर्म और खानपान समेत सामाजिक जीवन के अन्य आयामों को समेटे रंग-बिरंगी छटा में नहाई रहेगी। ये तीन दिन और उसके बाद भी देश की राजधानी में गूंज तो लखनऊ की ही होगी। दैनिक जागरण द्वारा 30 नवंबर से दो दिसंबर तक, तीन दिनों का यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी में आयोजित हो रहा है। इसमें सूफी संगीत से लेकर खान-पान तक चर्चा के केंद्र में होगा। ऐसे में समाज में निरंतर संवाद के हिमायती इस कार्यक्रम का गवाह बनने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
:::::::::::
अनामिका मिश्रा, लेखक
यह ¨हदी को आगे बढ़ाने की बहुत ही अच्छी पहल है। भारत भर से लेखक आ रहे हैं। ऐसे आयोजन में लेखक अपने विचार बता पाते हैं। इससे लेखकों और पाठकों के बीच की रुकावट टूटती है। पाठकों के कई सवाल होते हैं। कई भ्रम होते हैं। जो ऐसे सामने बैठकर दूर किए जा सकते हैं। दैनिक जागरण का यह 'संवादी' असल में एक महोत्सव की तरह है, जिसके माध्यम से साहित्य, संगीत और भाषा के साथ कला को बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। नाटक और खाना तो है ही। जागरण सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार है। इसकी मैं नियमित पाठक हूं। उससे संवादी के बारे में जो जाना है उससे इस महोत्सव में शामिल होने को लेकर काफी उत्सुकता है। मेरी पढ़ाई लखनऊ से ही हुई है। ऐसे में छात्र के बाद अब लेखक के तौर पर उस शहर से मिलना एक अलग ही अनुभव वाला होगा। :::::::::: वंदना राग, कहानीकार
साहित्य को लोकप्रिय बनाने की फिराक में साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। तथाकथित लोकप्रिय लेकिन अगंभीर साहित्य को अनेक मंच उपलब्ध कराए जा रहे हैं जिससे यह आभास होता है कि साहित्य का ग्रैंड तमाशा चल रहा है। ऐसे में यदि जागरण संवादी गंभीर साहित्यकारों को मंच देने की कोशिश कर रहा है, तो यह स्वागत योग्य है। लेखक ख़ुशी से, बेखौफ होकर अपनी बात कह सकें, यही किसी भी सुरुचि संपन्न समाज की पहचान होती है। संवादी में यह सम्भव होगा, यही उम्मीद है। कुछ अच्छी, मजेदार और सार्थक बातों के बीच अपनी भी आवाज़ दर्ज करा सकूंगी, यही सोच कर शिरकत कर रही हूं।
::::::::::::
भगवान दास मोरवाल, साहित्यकार
जो प्रमुख ¨हदी के तीन साहित्योत्सव होते हैं, उनमें जयपुर साहित्य महोत्सव व आजतक साहित्य के बाद मैं जागरण संवादी को मानता हूं। वैसे देशभर में हर वर्ष 325 से अधिक साहित्य उत्सव आयोजित होते हैं। जागरण संवादी के मंच पर लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और आमंत्रित वक्ताओं को पूरी स्वतंत्रता होती है कि वह अपनी बात खुले मन से कह सकें। इस रूप से इसको महत्वपूर्ण आयोजन मानता हूं। यह साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए खुला मंच प्रदान कर रहा है। विचारधाराओं से इतर, साहित्य, फिल्म, संगीत जितने भी माध्यम हैं जो भी हमारी पाठक के लिए मानसिक खुराक है, उन सभी विषयों का चयन सोच समझकर रखा जाता है। जिस अवधारणा के साथ इसे लाया गया पूरी तरह से अपने लक्ष्य को कामयाब है। प्रवीण कुमार, कहानीकार
संवाद बहुत जरूरी होता है। देखा जा रहा है कि आजकल साहित्य के बीच संवादों पर विराम लग रहा है। एक संवादहीनता की स्थिति बनती जा रही है। उसमें दैनिक जागरण ने ऐसा मंच मुहैया कराया है। जिसमें बड़े स्तर पर ¨हदी बोलने वाले, लिखने वाले और पढ़ने वाले लोग इकट्ठा होते हैं। यह ¨हदी के स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छी बात हैं। संवादी में नई ¨हदी को जगह मिल रही है। भारतेंदु जो नई ¨हदी लेकर आए, उसके बाद ¨हदी का विकास होता गया। मेरा मानना है कि हर पांच साल में नई ¨हदी आती है। जो अपनी पुरानी परंपराओं को संजोते हुए नई पीढ़ी की कहन शैली से जुड़ी होती है। पीयूष क मार, साहित्यकार
¨हदी के विकास के लिए जागरण निरंतर अभिनव प्रयास कर रहा है। बेस्ट सेलर की सूची से लेकर संवादी जैसे न जाने कितने फलक और मंच हैं जहां ¨हदी और साहित्य निखार पा रहा है। समय के साथ संवादी वयस्क हो रहा है। इस बार तीन दिनों का सत्र है। आज तक ¨हदी दरिद्रों की भाषा थी, लेकिन जागरण जैसे अग्रणी प्रकाशक के जुड़ने से यह मुख्यधारा में आ रही है। इससे अन्य नए संस्थानों के जुड़ने की संभावनाएं भी बढ़ती हैं। इस बार संवादी में कई प्रकाशक भी शामिल हो रहे हैं।