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    दिल्ली सरकार के मसौदे के खिलाफ आइएमए

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं मह

    By JagranEdited By: Updated: Fri, 01 Jun 2018 10:29 PM (IST)
    दिल्ली सरकार के मसौदे के खिलाफ आइएमए

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय द्वारा दिल्ली नर्सिग होम एक्ट में संशोधन के लिए तैयार किए गए मसौदे व एडवाइजरी से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) सहमत नहीं है। उसने इसमें संशोधन की मांग की है। आइएमए के डॉक्टरों का कहना है कि यदि मांगे नहीं मानी गई तो सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी।

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    सरकार ने पिछले दिनों मसौदे के प्रावधानों को जारी करते हुए कहा था कि निजी अस्पतालों के डॉक्टरों को जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में दर्ज दवाएं ही लिखनी होंगी। इस सूची से अलग डॉक्टर कोई दवा लिखते हैं तो इसका कारण मरीज को बताना पड़ेगा। ऐसी दवाओं पर अस्पताल खरीद की कीमत से 60 फीसद से अधिक मुनाफा नहीं कमा सकते। सरकार ने मसौदे पर 30 दिन में लोगों से सुझाव मांगे हैं। इसके बाद यह प्रावधान लागू हो जाएंगे। इस मसौदे को तैयार करने वाली नौ सदस्यीय कमेटी में आइएमए के तात्कालिक अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल शामिल थे। फिर भी एसोसिएशन ने प्रावधानों पर सवाल खड़े किए हैं।

    एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेडकर ने कहा कि सरकार द्वारा तैयार प्रावधान व्यावहारिक नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं में सुधार करने के बजाए निजी अस्पतालों को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल ने कहा कि मसौदे में ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि यदि उसमें संशोधन नहीं किया गया तो निजी अस्पताल गंभीर मरीजों को भर्ती लेने से मना करने लगेंगे। एलोपैथ में मरीजों के इलाज के लिए 20 हजार से ज्यादा दवाएं हैं, जबकि जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में बहुत कम दवाएं दर्ज हैं। दवाओं की एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) नियंत्रित करने के बजाए डॉक्टरों पर यह दबाव बनाना मरीजों के हित में नहीं कि वे सिर्फ राष्ट्रीय सूची में दर्ज दवाएं ही लिखें। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर मामले को उपराज्यपाल कार्यालय में उठाया जाएगा व अदालत में अपील की जाएगी। एसोसिएशन के महासचिव डॉ. आरएन टंडन ने कहा कि मसौदे के अनुसार अस्पताल में गंभीर मरीज के भर्ती होने के छह घंटे के अंदर मौत होने पर अस्पताल प्रशासन को कुल बिल में से 50 फीसद कम करना होगा और 24 घंटे के अंदर मौत होने पर 20 फीसद बिल कम करना होगा। ऐसा प्रावधान समझ से परे है। इलाज का बिल अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि पर नहीं बल्कि इलाज में इस्तेमाल उपकरणों, दवाओं व सुविधाओं के आधार पर तय किया जाता है।