बिना मास्क लगाए घर के गेट पर खड़ा होना गुनाह नहीं, कोर्ट ने कोरोना लॉकडाउन में दाखिल प्राथमिकी खारिज की
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोरोना काल में बिना मास्क के घर के बाहर खड़े रहने पर एक वकील के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। अदालत ने वकील पर जुर्माना भरने का आदेश दिया। वकील पर धारा 144 के उल्लंघन का आरोप था, लेकिन अदालत ने माना कि वह किसी भीड़ में शामिल नहीं था।

कोर्ट ने जुर्माना लगाकर प्राथमिकी की रद।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कोरोना महामारी के लॉकडाउन के दौरान अपने आवास के बाहर बिना मास्क के खड़े रहने के आरोप में एक अधिवक्ता के खिलाफ हुई प्राथमिकी को हाई कोर्ट ने जुर्माना लगाकर रद कर दिया। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने अधिवक्ता को चार सप्ताह के अंदर दिल्ली पुलिस कल्याण कोष में 10 हजार रुपये जमा करने का निर्देश दिया।
अधिवक्ता भूपिंदर लाकड़ा ने याचिका दायर कर भारतीय दंड संहिता की धारा-188 (किसी लोक सेवक द्वारा विधिवत जारी आदेश की अवज्ञा) और धारा- 269 (जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलाने की संभावना वाला लापरवाही भरा कार्य) के तहत हुई प्राथमिकी को रद करने की मांग की थी।
धारा 144 के उल्लंघन का दावा
पुलिस का तर्क था कि अधिवक्ता ने सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी आदेश का उल्लंघन किया था। वहीं, आरोपित अधिवक्ता ने कहा कि जब उसे गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले गई, तब उसने अपने आवास के बाहर कदम ही रखा था। यह भी कहा कि एक अधिवक्ता होने के नाते उन्होंने पहले कोई उल्लंघन नहीं किया है।
यह भी कहा कि बिना मास्क के अपने गेट पर कुछ देर तक मौजूद रहना सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश की अवज्ञा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने अधिवक्ता के उक्त तर्क को स्वीकार कर कहा कि अधिवक्ता अपने आवास के द्वार पर या उसके ठीक बाहर था, लेकिन वह किसी भीड़, जुलूस या सभा के बीच नहीं थे।

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