भारतीय परंपरा पर आधारित किताबें हों पाठ्यक्रम का हिस्सा
राहुल मानव, नई दिल्ली दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्थायी समिति की बैठकों में काफी हंगामा हो रहा है।
राहुल मानव, नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्थायी समिति की बैठकों में काफी हंगामा हो रहा है। प्रोफेसरों के बीच बहस शुरू हो गई है कि पश्चिमी सभ्यता पर आधारित किताबों को ही डीयू के पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए या भारतीय परंपरा पर आधारित इतिहास की किताबों को शामिल किया जाए। प्रोफेसर अपनी विचारधारा से प्रेरित होकर भी कई किताबों को प्रस्तावित कर रहे हैं।
स्थायी समिति के सदस्य रबींद्रनाथ दुबे ने कहा कि डीयू के पाठ्यक्रम में पश्चिमी सभ्यता पर आधारित किताबों को शामिल किया जाता रहा है। इतिहास और अन्य विभागों में भारत की विविधता से जुड़ी शानदार किताबों को भी शामिल किया जाना चाहिए। दुबे ने कहा कि च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) के तहत अर्थशास्त्र और भाषा विभाग के प्रोफेसरों ने पाठ्यक्रम को तैयार ही नहीं किया है। वहीं समाज शास्त्र, राजनीतिक शास्त्र एवं इतिहास विभाग ने भी सीबीसीएस के तहत पाठ्यक्रम को तैयार नहीं किया। उन्हें फिर से इसे तैयार करने को कहा गया है। यूजीसी के नियम के अनुसार भी ऐसा जरूरी है।
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विवादित किताब हटाने का फैसला कार्यकारी परिषद में होगा
डीयू के कार्यकारी परिषद के सदस्य प्रो. अजय भागी ने कहा कि कुछ प्रोफेसर विवादित किताबों को इतिहास के पाठ्यक्रम के कोर पेपर में अनिवार्य रूप से पढ़ाना चाहते हैं, जोकि सही नहीं है। इन किताबों को हिस्ट्री ऑनर्स के स्नातक पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश स्थायी समिति ने की है। सितंबर में यह मामला अकादमिक परिषद में और उसके बाद कार्यकारी परिषद में जाएगा। कार्यकारी परिषद के पास प्रशासनिक मुद्दों पर अन्य समितियों की ओर से मिली किसी भी सिफारिश को मंजूर व नामंजूर करने का अधिकार है। वह स्थायी समिति की सिफारिश को या तो मंजूर, नामंजूर या वापस अकादमिक परिषद के पास भेज सकता है।
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