मांसपेशियों में दर्द को हल्के में न लें, गंभीर बीमारी 'डिस्टोनिया' हो सकता है कारण; प्वाइंट में समझिए लक्षण और इलाज
मांसपेशियों में लगातार दर्द, जकड़न, गर्दन, जबड़ा या आंखों का हिलना डिस्टोनिया (Dystonia) के लक्षण हैं। यह मस्तिष्क संबंधी बीमारी है, जिसमें मांसपेशिया ...और पढ़ें

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। यदि किसी व्यक्ति को मांसपेशियों में लगातार दर्द और जकड़न बनी रहती है, गर्दन, हाथ, जबड़ा या आंखें अपने-आप हिलने या मुड़ने लगती हैं, लिखने-बोलने, चलने या खाने जैसे प्रतिदिन के कार्यों में कठिनाई होती है और किसी भी प्रकार की हरकत करने पर समस्या और बढ़ जाती है तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इनकी अनदेखी आगे चलकर गंभीर बीमारी बन सकती है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार ये लक्षण एक मस्तिष्क संबंधी बीमारी ‘डिस्टोनिया’ (Dystonia) की ओर संकेत करते हैं। ‘क्लिनिकल स्पेक्ट्रम आफ डिस्टोनिया इन अ टर्शियरी केयर मूवमेंट डिसआर्डर्स क्लिनिक इन इंडिया’ विषयक विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में शोध बताते हैं कि डिस्टोनिया एक न्यूरोलाजिकल विकार है, जिसमें मस्तिष्क से मांसपेशियों को जाने वाले संकेतों में गड़बड़ी होने से मांसपेशियां गलत समय पर और आवश्यकता से अधिक सिकुड़ने लगती हैं।
इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में असामान्य गतिविधियां होने लगती हैं। एम्स नई दिल्ली न्यूरोलाजी विभाग के एसोसिएट प्रो. डॉ. अनिमेष दास बताते हैं कि सर्वाइकल डिस्टोनिया में ऐंठन के साथ दर्द भी हो सकता है। प्रारंभिक अवस्था में इसके लक्षण हल्के हो सकते हैं, लेकिन समय पर उपचार न मिलने पर यह व्यक्ति की जीवन-गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डालता है।
एम्स न्यूरोलाजी विभाग की एसोसिएट प्रो. डा. एलावारसी का कहना है कि लक्षणों की समय रहते पहचान और सही उपचार से डिस्टोनिया के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके उपचार में इंजेक्शन, दवा व फिजियोथेरेपी शामिल हैं। इसलिए यदि ऐसे लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो बिना देरी किए किसी न्यूरोलाजिस्ट से परामर्श लेना आवश्यक है। वह कहती हैं कि समय पर सही इलाज से मरीज सामान्य जीवन के काफी करीब लौट सकता है।
भारत में स्थिति भारत में 2018 में शुरू हुए एक अध्ययन के अनुसार, डिस्टोनिया के कुल मामले प्रति एक लाख जनसंख्या पर लगभग 40 से 45 हैं। इस लिहाज से देश में करीब आठ लाख और दिल्ली में करीब 15 लाख इस तरह के रोग से पीड़ित हैं। हाल के दिनों में विभिन्न अस्पतालों में इस प्रकार की शिकायतों के साथ आने वाले मरीजों की संख्या में एक से दो प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में हाल ही में इस समस्या तथा इससे संबंधित अन्य न्यूरोलाजिकल विकारों पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर के लगभग 200 चिकित्सकों को विशेषज्ञ उपचार के लिए प्रशिक्षित किया गया। एम्स भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा, ताकि देश के हर कोने में इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों को विशेषज्ञ उपचार की सुविधा उपलब्ध हो सके।
डिस्टोनिया क्या है?
डिस्टोनिया एक न्यूरोलाजिकल बीमारी है अर्थात यह मस्तिष्क और तंत्रिकाओं से जुड़ी समस्या है। इसमें शरीर की कुछ मांसपेशियां अपने-आप, बार-बार या लंबे समय तक गलत तरीके से सिकुड़ जाती हैं। इसके कारण शरीर का कोई अंग टेढ़ा-मेढ़ा हो सकता है, दर्द हो सकता है और सामान्य कार्य करना कठिन हो जाता है।
सामान्यतः नींद के दौरान इसके लक्षण कम हो जाते हैं। यह क्यों होता है डिस्टोनिया तब होता है जब मस्तिष्क में संवेदी सूचना (सेंसरी इनपुट) और गतिशील प्रतिक्रिया (मोटर आउटपुट) के बीच सामान्य समन्वय में गड़बड़ी आ जाती है। इसके कारण आने वाली संवेदी जानकारी का सही ढंग से प्रसंस्करण नहीं हो पाता, जिससे मांसपेशियां आवश्यकता से अधिक सक्रिय हो जाती हैं।
इसके लक्षण क्या हैं?
- मांसपेशियों में दर्द और जकड़न
- गर्दन, हाथ, जबड़ा या आंखों का अनचाहा हिलना या मुड़ना
- लिखने, बोलने, चलने या खाने में कठिनाई
- किसी भी प्रकार की हरकत करने पर समस्या का बढ़ जाना
शरीर के कौन-कौन से हिस्से प्रभावित हो सकते हैं?
- गर्दन: सिर का एक ओर मुड़ जाना (सर्वाइकल डिस्टोनिया)
- हाथ: लिखते समय हाथ का जकड़ जाना (राइटर्स क्रैम्प)
- जबड़ा, मुंह: बोलने या चबाने में कठिनाई (ओरोमैंडिबुलर डिस्टोनिया)
- आंखें: बार-बार पलकों का झपकना (ब्लेफेरोस्पाज्म)
- चेहरा: चेहरे के आधे हिस्से में अनियंत्रित हरकत (हेमीफेशियल स्पाज्म)
क्या इसका इलाज संभव है?
- डिस्टोनिया लक्षणों के इसका प्रभावी उपचार उपलब्ध है
- बोटुलिनम टाक्सिन इंजेक्शन, दवाइयां, फिजियोथेरेपी
- गंभीर मामलों में डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस)

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।