दिल्ली में फिर दिखेगी मुगल काल से चली आ रही ये अनोखी परंपरा, उपराज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद मिली आयोजन की अनुमति
दिल्ली में मुगल काल की 'फूलवालों की सैर' परंपरा फिर शुरू होगी। उपराज्यपाल के हस्तक्षेप से अनुमति मिली। यह त्योहार सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है, जिसमें हिंदू और मुसलमान मिलकर फूल पंखे चढ़ाते हैं। उपराज्यपाल ने सभी बाधाओं को दूर करते हुए इस पारंपरिक त्योहार को मनाने की अनुमति दी है।

उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के हस्तक्षेप के बाद मिली अनुमति।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली की परंपरागत सांस्कृतिक पहचान मानी जाने वाली ‘फूल वालों की सैर’ अब आखिरकार आयोजित हो सकेगी। यह ऐतिहासिक उत्सव 2 नवंबर को होना तय था, लेकिन अनुमति न मिलने के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था। अब संभावना है कि इसका आयोजन फरवरी या मार्च में किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार, ‘फूल वालों की सैर’ के आयोजन की अनुमति उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के हस्तक्षेप के बाद दी गई है। दरअसल, पिछली आप सरकार के 28 नवंबर 2023 के एक आदेश के चलते दक्षिणी रिज क्षेत्र में ऐसे किसी भी त्योहार या आयोजन की अनुमति रोक दी गई थी। इसी वजह से इस बार कार्यक्रम की फाइल लंबित पड़ी रही।
उपराज्यपाल ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए और देरी पर नाराजगी जताई। उन्होंने चेतावनी दी कि जनता से जुड़े मामलों में अधिकारियों की उदासीनता और अनुत्तरदायी रवैया किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
‘फूल वालों की सैर’ दिल्ली की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक मानी जाती है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदाय मिलकर भाग लेते हैं। अब उपराज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद इस परंपरा को फिर से जीवित देखने की उम्मीद है।
क्या है ‘फूल वालों की सैर’ का इतिहास
दिल्ली का यह सांस्कृतिक उत्सव हिन्दू-मुस्लिम एकता का जीवंत प्रतीक है, जिसकी नींव 1812 में मुगल शासक अकबर शाह सानी के दौर में पड़ी थी। यह आयोजन 1942 तक लगातार चलता रहा, लेकिन ब्रिटिश शासन ने इसे रोक दिया था। फिर 1962 में केंद्र सरकार की मदद से इसे पुनर्जीवित किया गया और तब से हर साल जहाज महल के निकट पार्क में यह परंपरा कायम है।

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